हेतु तर्कशास्त्र का पारिभाषिक शब्द। धुएँ को देखकर आग का अनुमान होता है। इस अनुमान में धुएँ को हेतु कहते हैं। धूम और अग्नि में अविनाभाव संबंध होना चाहिए। साध्य (अग्नि) का पक्ष में (पर्वत, गाँव आदि जहाँ धूम दिखाई पड़ता हो) अस्तित्व तभी ज्ञात हो सकता है जब हेतु या लिंग ऐसा हो जो सर्वदा साध्य के साथ वर्तमान देखा गया हो। अनुमान की मानसिक प्रक्रिया को जब दूसरे के लिए शब्दों में व्यक्त करते हैं तो हम न्यायशास्त्र के अनुसार पाँच अवयवों के वाक्यों का तथा बौद्ध एवं पाश्चात्य तर्कशास्त्र के अनुसार तीन अवयवों के वाक्यों का प्रयोग करते हैं। पाँच अवयवोंवाले वाक्य में दूसरा अवयव हेतु कहलाता है- जैसे :

१.����� पर्वत में आग है (प्रतिज्ञा)।

२.����� क्योंकि उसमें धुआँ है (हेतु)।

३.����� जहाँ जहाँ धूम होता है वहाँ वहाँ आग रहती है, जैसे रसोई में (उदाहरण)।

४.����� इस पर्वत में जो धूम है वह आग के साथ व्याप्त है (उपनय)।

५.����� अत: पर्वत में धूम है। (निगमन)।

इसी अनुमान को तीन अवयवोंवाले वाक्य में इस तरह कहा जाएगा :

१.����� जहाँ जहाँ धुआँ है वहाँ आग होती है।

२.����� पर्वत में धुआँ है।

३.����� अत: पर्वत में आग है।

इन तीन अवयवोंवाले वाक्य में हेतु के लिए कोई अलग वाक्यावयव नहीं आता, हेतु का प्रयोग केवल पद के रूप में होता है।

हेतु के लिए पाँच बातों का होना अवश्यक माना गया है - १. इसे पक्ष में वर्तमान रहना चाहिए, २. इसे उन स्थानों पर होना चाहिए जहाँ साध्य वर्तमान रहता है, ३. इसे वहाँ नहीं रहना चाहिए जहाँ साध्य नहीं रहता, ४. इसे अबाधित होना चाहिए अर्थात् इसे पक्ष के विरुद्ध नहीं होना चाहिए, और ५. इसे इसके विरोधी तत्वों से रहित होना चाहिए।

हेतु तीन प्रकार के होते हैं : १. अन्वयतिरेकी वह हेतु है जो साध्य के साथ रहता है और साध्य के अभाव में नहीं रहता - जैसे धूम और आगे। २. केवलान्वयी हेतु सर्वदा साध्य के साथ रहता है-उनका अभाव संभव नहीं है-जैसे ज्ञेय और प्रमेय। ३. केवलव्यतिरेकी हेतु अपने अभाव के साथ ही साध्य से संबद्ध होता है - जैसे-गंध और पृथ्वी से इतर द्रव्य।

दूषित अनुमानों में हेतु वास्तव में हेतु नहीं होता अत: उसको हेत्वाभास कहते हैं। (रामचंद्र सिन्हा)