हुमायूँ (१५०८-१५५६) प्रथम मुगल सम्राट्, जहीरुद्दीन मुहम्मद बाबर के ज्येष्ठ पुत्र नसीरुद्दीन मुहम्मद हुमायूँ मिर्जा का जन्म बाबर की शिया पत्नी माहम बेगम के गर्भ से, काबुल के दुर्ग में हुआ था। उसे सैनिक शिक्षा के अतिरिक्त, अरबी फारसी तथा तुर्की भाषा की समुचित शिक्षा दी गई थी। १५२३ से १५२९ तक व बदख्शाँ का शासक रहा। बाबर के भारतीय अभियान में वह अपने पिता के साथ था तथा पानीपत के प्रथम युद्ध में मुगल सेना के दाहिने चक्र का सेनापति था। उसके पश्चात् उसने आगरे पर अधिकार किया। खानवा के युद्ध में वह मुगल सेना के दाहिने चक्र का नेता था। अप्रैल, १५२७ में वह बदख्शाँ लौट गया तथा दो वर्ष पश्चात् पुन: भारत वापस आया। १५३० ई. की ग्रीष्म ऋतु में अल्पविरामी ज्वर से उसकी अवस्था अत्यंत शोचनीय हो गई। अपने पुत्र की जान बचाने के लिए बाबर ने हुमायूँ के स्थान पर अपना जीवन देने की भगवान् से प्रार्थना की। संयोगवश हुमायूँ स्वस्थ हो गया और बाबर की अवस्था बिगड़ती गई। २६ दिसंबर को बाबर की मृत्यु हुई और उसके चार दिन बाद हुमायूँ गद्दी पर बैठा।

हुमायूँ को अपने पिता से रिक्त राजकोश, असंगठित साम्राज्य तथा अविश्वसनीय सेना प्राप्त हुई। सबसे कठिन समस्या उसके भाइयों की थी। हुमायूँ के तीन भाई कामरान, अस्करी तथा हिंदाल थे। इनमें कामरान सबसे उग्र था। तैमूरी परंपरा के आधार पर हुमायूँ ने साम्राज्य का विभाजन कर दिया। इस तरह कामरान को काबुल तथा कंधार, अस्करी को संभल तथा हिंदाल को अलवर प्राप्त हुआ। कामरान के पंजाब में प्रवेश करने के पश्चात् उसे संतुष्ष्ट करने के लिए उसे पंजाब तथा हिसार फिरोजा भी दे दिए गए। इस तरह मुगल साम्राज्य को गृहयुद्ध से बचा लिया गया। हुमायूँ के बाह्य शत्रुओं में अफगान तथा गुजरात के शासक प्रमुख थे।

प्रारंभिक घटनाओं में अफगानों की दादरा के युद्ध में पराजय (जुलाई-अगस्त, १५३१) तथा दीनपनाह नामक नगर (दिल्ली में) की स्थापना थी। गुजरात का शासक बहादुरशाह योग्य, जनप्रिय, शक्तिशाली तथा महत्वाकांक्षी था। उसने मालवा रायसीन तथा निकट के कई स्थानों पर अधिकार कर लिया। मुगलों के शत्रुओं को उसने अपने दरबार में शरण दी तथा दिल्ली पर अधिकार करने की योजना बनाई। हुमायूँ ने प्रारंभ में शांति से समस्या का समाधान करना चाहा, किंतु इसमें विफल होकर उसने गुजरात पर आक्रमण किया। नवंबर, १५३४, में बहादुशाह चित्तौड़ के दुर्ग का घेरा डाले हुए था। हुमायूँ के अभियान की सूचना पाकर वह शीघ्रता से चित्तौड़ से संधि कर गुजरात की तरफ बढ़ा। मंदसौर नामक स्थान पर दोनों सेनाएँ एक दूसरे को घेरे पड़ी रहीं। अपने विश्वसनीय उमराओं से विश्वासघात के भय से बहादुरशाह मंदसौर से भाग गया। हुमायूँ ने उसका पीछा किया। बहादुरशाह ने ड्यू में शरण ली। बिना किसी विशेष संघर्ष के पूरा गुजरात हुमायूँ के अधिकार में आ गया। अपने भाई अस्करी को गुजरात का गवर्नर नियुक्त करके बादशाह स्वयं मालवा चला गया। इसी बीच अस्करी की मूर्खताओं तथा बहादुरशाह की जनप्रियता के कारण गुजरात में मुगलों के विरुद्ध मुक्ति आंदोलन प्रारंभ हुआ और कुछ ही दिनों में अस्करी को वहाँ से भागना पड़ा। हुमायूँ को फरवरी, १५३७ ई. में आगरा वापस आना पड़ा।

इस बीच शेरखाँ ने बंगाल तथा बिहार में अपनी शक्ति बढ़ा ली थी। १५३७ में हुमायूँ शेरखाँ के विरुद्ध आगरे से रवाना हुआ। मार्ग में चुनार के दुर्ग पर अधिकार करने में उसे काफी समय लगा (जनवरी से जून, १५३८ ई.)। मनेर में हुमायूँ तथा शेरखाँ के बीच संधि की शर्तें निश्चित सी हो गई थीं, किंतु इसी बीच बंगाल के पराजित शासक के पहुँचने तथा बंगाल विजय की आशा दिलाने पर वह बंगाल की तरफ अग्रसर हुआ। शेरखाँ ने खुलकर मुगलों से युद्ध नहीं किया तथा बंगाल की राजधानी गौड़ पर हुमायूँ का अधिकार हो गया। दुर्भाग्यवश हुमायूँ कई महीने गौड़ में पड़ा रहा। उसने शासन में भी विशेष रुचि नहीं ली। इस बीच उसका भाई हिंदाल बंगाल से भागकर आगरा पहुँच गया। कामरान भी आगरा पहुँच गया। १५३९ ई. के प्रारंभ में हुमायूँ गौड़ से रवाना हुआ। चौसा के मैदान में अफगानों तथा मुगलों के बीच २६ जून को भीषण संघर्ष हुआ। मुगल पराजित हुए तथा हुमायूँ को निजाम नामक भिश्ती के मशक की सहायता से नदी पार करनी पड़ी। आगरे लौटकर हुमायूँ ने अपने भाइयों को संगठित करना चाहा किंतु उसे सफलता न मिली। इस बीच शेरखाँ ने पूर्वी भागों पर अधिकार कर लिया था तथा आगरा की ओर बढ़ रहा था। हुमायूँ ने पुन: अपना भाग्य आजमाना चाहा, किंतु कन्नौज की लड़ाई में (१७ मई, १५४०) पुन: पराजित हुआ। यहाँ से भागकर वह आगरा होते हुए लाहौर पहुँचा। यहाँ भी उसके भाइयों ने उसका विरोध किया और विवश होकर उसे सिंध तथा राजपूताना के भागों में जाना पड़ा। पंजाब पर शेरशाह ने अधिकार कर लिया।

२१ अगस्त, १५४१ को सिंध में हुमायूँ ने हमीदा बानो से विवाह किया। मई, १५४२ में वह जोधपुर गया। यहाँ के शासक मालदेव ने लगभग एक वर्ष पूर्व उसे आमंत्रित किया था। इस बीच परिस्थिति बदल चुकी थी। उसे संदेह हुआ कि सहायता के स्थान पर कहीं मालदेव उसे बंदी न बना लें क्योंकि शेरशाह का दूत जोधपुर में पहँुच चुका था। हुमायूँ को अमरकोट में शरण मिली। यहीं १५ अक्टूबर, १५४२ ई. को अकबर को जन्म हुआ। भारत में कोई आशा न देखकर हुमायूँ ईरान की तरफ रवाना हुआ।

ईरान निवास के समय वहाँ के शिया शासक शाह तहमास्प से हुमायूँ का मतभेद हो गया किंतु बाद में शाह ने उसे एक सेना दी। हुमायूँ ने कंधार तथा काबुल पर अधिकार किया। १५४५ से १५५३ का समय भाइयों के संघर्ष की करुण कहानी है। चार बार काबुल पर कामरान ने अधिकार किया और चार बार हुमायूँ ने पुन: वापस लिया। अंत में हिंदाल मारा गया, अस्करी निष्कासित हुआ तथा कामरान अंधा बना दिया गया।

इसी समय शेरशाह के पुत्र इस्लामशाह की मृत्यु से सूर साम्राज्य विघटित हो गया। नवंबर, १५५४ में हुमायूँ ने पंजाब पर आक्रमण किया तथा माछीवाड़ा और सरहिंद के युद्धों में अफगानों को पराजित कर दिल्ली तथा आगरे पर अधिकार किया। इन विजयों में बैरमखाँ का प्रमुख हाथ था। २६ जनवरी, १५५६ ई. को अपने पुस्तकालय की सीढ़ी से गिर जाने के परिणामस्वरूप उसकी मृत्यु हो गई।

हुमायूँ अच्छे डील डौल का, गेहुएँ रंग का आकर्षक व्यक्ति था। वह कई भाषाओं का विद्वान था। वह फारसी में कविताएँ लिखता था तथा गणित, ज्योतिष और नक्षत्रशास्त्र में उसकी विशेष रुचि थी। उसका धार्मिक दृष्टिकोण उदार था तथा उसके ऊपर सूफी प्रभाव था। उसने शिया स्त्री से विवाह किया तथा अनेक शिया अमीरों को प्रमुख स्थान दिया। हिंदुओं के प्रति भी वह उदार था। उसने मुगल चित्रकला को जन्म दिया। मुगल सांस्कृतिक परंपरा में उसका विशेष योगदान था। उसका वास्तविक राजत्व काल ग्यारह वर्ष से अधिक नहीं था (१५३०-४० तथा १५५५-५६)। उसका अधिक समय आंतरिक तथा बाह्य संघर्षों में बीता। मुगल शासनीय संगठन में उसका योगदान शून्य है। उसकी असफलता के लिए उसके चारित्रिक दोष - आलस्य, कठिन परिस्थितियों में तत्काल निर्णय न कर पाना, अंधविश्वास, विलासिता तथा परिस्थितियाँ उत्तरदायी हैं। उसने साहित्य, वास्तुकला, चित्रकला, सांस्कृतिक तथा धार्मिक सहिष्णुता के आधार पर साम्राज्य के निर्माण की कल्पना की जिसे उसके योग्य पुत्र अकबर महान् ने साकार किया।श्श् (हरिशंकर श्रीवास्तव.)