हिप्पोपॉटेमस (Hippopotamus) एक बृहत्काय स्तनी प्राणी है। हिप्पोपॉटेमस का अर्थ है दरियाई घोड़ा पर घोड़ा जाति से इसका कोई संबंध नहीं है बल्कि सूअर जाति के प्राणियों के साथ इसकी निकटता है। हिप्पोपॉटेमस अफ्रीका की नदियों, झीलों और दलदलों में पाया जाता है। एक समय यह संसार के अनेक भागों में जैसे, यूरोप, भारत, बर्मा, मिस्र अलजीरिया आदि देशों में फैला हुआ था जैसा उनके जीवाश्मों से पता लगता है। स्थल के स्तनी प्राणियों में हाथी के बाद यही सबसे भारी दूसरा प्राणी है, यद्यपि गैंडा इससे बड़ा होता है, तथापि भार में कम होता है।
हिप्पोपॉटेमस की औसत लंबाई ३.६ मी, कंधे के पास की ऊँचाई १.५ मी और पेट का अधिकतम घेरा शरीर की लंबाई के प्राय: बराबर ही होता है। इसका थूथन (muzzle) बहुत ही चौड़ा और गोलाकार होता है। मुख बहुत बड़ा होता है। कृंतक (incisor) मूलयुक्त नहीं होते उसमें बराबर वृद्धि होती रहती है। रदनक (Canine) बहुत बड़े और मुड़े हुए और लगातार बढ़नेवाले होते हैं। आमाशय जटिल होता है और अंघनाल (Caecum) अनुपस्थित होता है। आँखें सिर के सबसे ऊँचे भाग में कान की सतह से थोड़ा नीचे स्थित होती हैं। कान बहुत छोटे छोटे और लचीले होते हैं। टाँगें छोटी और पैर चौड़े होते हैं जिनमें प्रत्येक में चार खुरदार असम अंगुलियाँ होती हैं। त्वचा बालरहित और किसी किसी भाग में दो इंच तक मोटी होती है। इनका रंग गहरा भूरा से लेकर नीला भूरा होता है। नर की अपेक्षा मादा कुछ छोटी और प्राय: हल्के रंग की होती है।
हिप्पोपॉटेमस झुंडों में रहनेवाला प्राणी है और २० से ४० के गिरोह में नदियों में या नदी के किनारों पर रहता है जहाँ उसे अनुकूल भोजन उपलब्ध हो सके। इसका मुख्य भोजन घास तथा जलपौधे हैं जिनका यह बहुत अधिक मात्रा में भोजन करता है। इसके आमाशय में ५ से ६ बुशेल तक भोजन अँट सकता है। यह दिन में जल में किसी छाये के नीचे सोता, जलाशय में क्रीड़ा करता अथवा नरकट की शय्या पर विश्राम करता है। रात्रि में ही भोजन की तलाश में नदी के बाहर निकलता है। यदि स्थान शांत है तो दिन में भी बाहर निकल सकता है। यह कुशल तैराक तथा गोताखोर होता है। कम पानी में तेज चल भी सकता है। जमीन पर भारी भरकम स्थूल शरीर होते हुए मनुष्य से भी तेज दौड़ सकता है। जल के अंदर ५ से १० मिनट तक डुबकी लगाए रह सकता है। जल की सतह पर नाक से जल का फव्वारा छोड़ता है। खेतों को चरकर और रौंदकर अपार क्षति पहुँचाता है। किसान आग जलाकर से भगाते है। हिप्पोपॉटेमस नदी के मुहाने पर नदी से निकलकर समुद्र में कभी कभी चला जाता है।
हिप्पोपॉटेमस सरल प्रकृति का आरामप्रिय और मनुष्य की छाया से दूर रहनेवाला प्राणी है, पर अपने बच्चे की सुरक्षा के लिए अथवा घायल होने पर कभी कभी भीषण और विकराल क्रुरता का प्रदर्शन कर सकता है। भीषण प्रहार से वह देशी नावों तक को उलट और तोड़ सकता है। क्रोधित होने पर उसकी गुर्राहाट और डकार एक मील की दूरी से सुनाई पड़ सकती है। कुछ वृद्ध हिप्पोपॉटेमस भी हाथियों का भांति चिड़चिड़े और आवारा (rogue) बन जाते हैं और तब खतरनाक होते हैं तथा व्यक्तियों पर आक्रमण कर सकते हैं।
अफ्रीकावासी हिप्पोपॉटेमस का मांस और चर्बी खाते हैं। इसकी खाल से मूँठ, चाबुक तथा अन्य सामान बनते हैं। दाँत दृढ़ तथा सघन होता है और पीला नहीं पड़ता। एक समय उससे कृत्रिम दाँत बनता था। अफ्रीकावासी इस पशु का शिकार करते हैं। जमीन पर ही इसका शिकार आसान है, जल में निरापद नहीं है। इसकी खाल गोली से अभेद्य होती है। मस्तिष्क पर निशाना मारने से ही यह मरता है।
मादा हिप्पोपॉटेमस को रस्सी से बाँधकर बर्छी से मारकर जल से बाहर निकालते हैं। उसके पीछे बच्चे उसके साथ साथ बाहर आते हैं और उन्हें पकड़कर बंदी और पालतू बनाकर चिड़ियाघरों में रखते हैं। बंदी अवस्था में भी यह प्रजनन और संतानवृद्धि करता है। हिप्पोपॉटेमस आठ मास में लगभग १०० पाउंड भर के बच्चे का जन्म देता है। बच्चा जब तक तैरना नहीं सीखता तब तक मादा अपनी गर्दन पर उसे लिए फिरती है।श् छह साल में बच्चा वयस्क होता है और लगभ ३० वर्ष तक जीता है।
हिप्पोपॉटेमस
दो प्रकार का होता है। एक वृहत्काय हिप्पोपॉटेमस (Hippopotamus
amphibias) जिसका औसत भार लगभग ८०० पाउंड और
दूसरा बौना हिप्पोपॉटेमस (Hippopotamus biberieusis)
का भार ४०० से ६०० पाउंड होता है। यह ६ फुट लंबा और २
फुट ऊँचा
होता है।
बौना हिप्पोपॉटेमस प्राय: लुप्त हो रहा है। यह अब बहुत कम देखा जाता है जबकि एक समय यह अनेक देशों भारत, बर्मा, उत्तरी अफ्रीका, सिसिली, माल्टा, क्रीट आदि में बहुतायत से पाया जाता था। बृहत्काय हिप्पोपॉटेमस अब अफ्रीका के कुछ सीमित स्थानों में ही पाया जाता है जबकि एक समय यह अनेक देशों में यूरोप तथा एशिया में, पाया जाता था जैसा उसके पाए जानेवाले जीवाश्मों से ज्ञात होता है। (भृगुनाथ प्रसाद)