हिपार्कस (Hipparchus, संभवत: १९० से १२५ वर्ष ई. पू.), यूनानी खगोलज्ञ, का जन्म लघु एशिया के बिथिनिया (Bithynia) प्रदेश के नाइसीया (Nicaea) में हुआ था। यूनानी खगोलविज्ञान की दृढ़ नींव डालने का श्रेय इन्हीं को प्राप्त है।
इन्होंने सूर्य की गति (अर्थात् वर्ष का निर्धारण), उसकी असंगतियाँ तथा आनति, पृथ्वी की कक्षा के पात तथा भूम्युच्च और चंद्रमा की कक्षा की कुछ विशेषताओं का पता लगाया था। कहा जाता है, इन्होंने गोलीय त्रिकोणमिति का आविष्कार किया तथा गोलों के समतल पर प्रक्षेप बनाए। इनकी तैयार की हुई योजना के अनुसार ग्रहों की गतियाँ वृत्तीय हैं और दृश्य गतियों से इस योजना का मेल बैठाने के लिए, इन्होंने पूर्ववर्ती रेखागणितज्ञ तथा खगोलज्ञ, ऐपॉलोनियस (तृतीय शताब्दी ई. पू.) का अनुगमन कर अधिचक्रों तथा उत्केंद्रों का आश्रय लिया। हिपार्कस अन्य खगोलीय गणनाओं के अतिरिक्त, चंद्रग्रहणों की गणना करने में भी समर्थ थे।
खगोलविज्ञान को इनकी मुख्य देन विषुव अयनों का आविष्कार तथा तत्संबंधी गणनाएँ थीं। इन्होंने १,०८० तारों की एक सारणी भी तैयार की थी, जिसमें भोगांशों तथा शरों द्वारा तारों के स्थान भी निश्चित किए थे। (भगवान दास वर्मा)