हिंदू महासभा स्वराज्य के लिए मुसलिम सहयोग की आवश्यकता समझकर कांग्रेस ने जब मुसलमानों के तुष्टीकरण की नीति अपनाई तो कितने ही हिंदू देशभक्तों को बड़ी निराशा हुई। फलस्वरूप सन् १९१० में पूज्य पं. मदनमोहन मालवीय के नेतृत्व में प्रयाग में हिंदू महासभा की स्थापना की गई।

सन् १९१६ में लोकमान्य तिलक की अध्यक्षता में लखनऊ में कांग्रेस अधिवेशन हुआ। यद्यपि तिलक जी भी मुस्लिमपोषकनीति से क्षुब्ध थे, फिर भी लखनऊ कांग्रेस ने ब्रिटिश अधिकारियों के प्रभाव में पड़कर एकता और राष्ट्रहित की दोहाई देकर मुस्लिम लीग से समझौता किया जिसके कारण सभी प्रांतों में मुसलमानों को विशेष अधिकार और संरक्षण प्राप्त हुए। अंग्रेजों ने भी अपनी कूटनीति के अनुसार चेम्सफोर्ड योजना बनाकर मुसलमानों के विशेषाधिकार पर मोहर लगा दी।

हिंदू महासभा ने सन् १९१७ में हरिद्वार में महाराजा नंदी कासिम बाजार की अध्यक्षता में अपना अधिवेशन करके कांग्रेस लीग समझौते तथा चेम्सफोर्ड योजना का तीव्र विरोध किया किंतु हिंदू बड़ी संख्या में कांग्रेस के साथ थे अत: सभा के विरोध का कोई परिणाम न निकला।

अंग्रेजों ने स्वाधीनता आंदोलन का दमन करने के लिए रौलट ऐक्ट बनाकर क्रांतिकारियों को कुचलने के लिए पुलिस और फौजी अदालतों को व्यापक अधिकार दिए। कांग्रेस की तरह हिंदू महासभा ने भी इसके विरुद्ध आंदोलन चलाया, पर मुसलमान आंदोलन से दूर थे। उसी समय गांधी जी ने तुर्की के खलीफा को अंग्रेजों द्वारा हटाए जाने के विरुद्ध तुर्की के खिलाफत आंदोलन के समर्थन में भारत में भी खिलाफत आंदोलन चलाया। हजारों हिंदू इस आंदोलन में जेल गए परंतु खिलाफत का प्रश्न समाप्त होने ही मुसलमानों ने पुन: कोहाट, मुलतान और मालावार आदि में मार काट कर सांप्रदायिकता की आग भड़काई।

हिंदू महासभा भी राष्ट्रीय एकता समर्थक है किंतु उसका मत यह रहा है कि देश की बहुसंख्यक जनता हिंदू है, अत: उसका हित ही वस्तुत: राष्ट्र का हित है। सभा इसे सांप्रदायिकता नहीं समझती। मुसलमान इस देश में न रहें, यह उसका लक्ष्य नहीं।

हिंदू महासभा का काशी अधिवेशन - सन् १९२३ के अगस्त मास में हिंदू महासभा का अधिवेशन काशी में हुआ, जिमें सनातनी, आर्यसमाजी, सिक्ख, जैन, बौद्ध आदि सभी संप्रदाय के लोग बड़ी संख्या में एकत्र हुए। हिंदू महासभा के इस अधिवेशन ने हिंदुओं को सांत्वना एवं साहस प्रदान किया और वे पूज्य मालवीय जी, स्वामी श्रद्धानंद, लाला लाजपत राय के नेतृत्व में हिंदू महासभा द्वारा दिखाए गए मार्ग पर चलने पर प्रयत्न करने लगे। अधिवेशन में संपूर्ण देश में बलपूर्वक मुसलमान बनाए गए हिंदुओं को शुद्ध करने का निश्चय किया गया। तदनुसार संपूर्ण देश में शुद्धि का आंदोलन चल पड़ा जिसमें पूज्य स्वामी श्रद्धानंद प्राणपण से जुट गए। फलस्वरूप शीघ्र हो ५०-६० हजार मलवाना राजपूत पुन: शुद्ध होकर हिंदू बन गए। इसपर एक धर्मांध मुसलमान अब्दुल रशीद ने पूज्य स्वामी श्रद्धानंद जी की हत्या कर दी।

सन् १९२६ का साधारण निर्वाचन - सन् १९२५ में कलकत्ता नगरी में ला. लाजपत राय जी की अध्यक्षता में हिंदू महासभा का अधिवेशन हुआ जिसमें प्रसिद्ध कांग्रेसी नेता डा. जयकर भी सम्मिलित हुए।

सन् १९२६ में देश में प्रथम निर्वाचन होने जा रहा था। अंग्रेजों ने कांग्रेस लीग गठ-बंधन को असफल बनाने एवं मुसलमानों को राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम में विद्रोह और विद्वेष फैलाए रखने के लिए अपनी ओर से असंबलियों में मुसलमानों के लिए स्थान सुरक्षित कर दिए। इस बात की चेष्टा होने लगी कि हिंदू सीटों पर कट्टर हिंदू सभाइयों के बजाय ढुलमुल मुस्लिमसमर्थक कांग्रेसी ही चुने जाएँ। हिंदूमहासभा ने पृथक् निर्वाचन के सिद्धांत और मुसलमानों के लिए सीटें सुरक्षित करने की तीव्र विरोध किया और निश्चय किया कि चुनाव में अपने प्रखर राष्ट्रवादी प्रतिनिधि भेजे जाएँ, जो अंग्रेज-मुस्लिमषड्यंत्र का डटकर विरोध कर सकें, हिंदू महासभा के प्रमुख नेता संपूर्ण देश में दौरा करके हिंदुओं में नया जीवन और चेतना उत्पन्न करने लगे। परिणामस्वरूप हिंदू सभा को चुनाव में अच्छी सफलता मिली। इसी समय बंगाल के मुसलमानों ने पुन: अपने अंग्रेज मित्रों के संकेत पर कलकत्ता में समाज के जुलूस पर आक्रमण करके दंगे आरंभ कर दिए परंतु इसका परिणाम उनको महँगा पड़ा।

साइमन कमीशन और हिंदू महासभा - जब अंग्रेजों का साइमन कमीशन, रिफार्म ऐक्ट में सुधार के लिए भारत आया, तो हिंदू महासभा ने भी कांग्रेस के कहने पर इसका बहिष्कार किया। लाहौर में हिंदू महासभा के अध्यक्ष लाला लाजपत राय हिंदू महासभा के हजारों स्वयंसेवकों के साथ काले झंडे लेकर कमीशन के बहिष्कार के लिए एकत्र हुए। पुलिस ने बहुत ही निर्दयता से लाठी प्रहार किया, जिसमें लाला जी को भी काफी चोट आई और वह फिर बिस्तर से न उठ सके। थोड़े ही समय में लाहौर में उनका स्वर्गवास हो गया।

ब्रिटिश सरकार ने लंदन में गोलमेज सम्मेलन आयोजित करके हिंदू, मुसलमान, सिक्ख आदि सभी के प्रतिनिधियों को बुलाया। हिंदू महासभा की ओर से डा. धर्मवीर, मुंजे, बैरिस्टर जयकर आदि सम्मिलित हुए। गांधी जी ने लंदन गोलमेज सम्मेलन में पुन: मुस्लिम सहयोग प्राप्त करने के लिए मुसलमानों को कोरा चेक दे दिया, परंतु फिर भी सौदेबाज में वह अंग्रेजों से जीत न सके। अंग्रेजों ने अपनी ओर से सांप्रदायिक निर्णय देकर हिंदुओं के अधिकार घटाकर मुसलमानों के अधिकार और अधिक बढ़ा दिए। हिंदूमहासभा ने इसका तीव्र विरोध किया। सन् १९२९ से लेकर सन् १९३६ तक श्री रामानंद चटर्जी तथा केलकर आदि अध्यक्ष होते हुए भी वस्तुत: भाई परमानंद जी तथा डा. मुंजे ही हिंदू सभा की बागडोर चलाते रहे। डा. मुंजे ने नासिक में हिंदुओं को सैनिक शिक्षा देने के लिए भोसला मिलिट्री कालेज की भी स्थापना की। हिंदू महासभा ने सिंध प्रांत को बंबई से अलग करने का भी तीव्र विरोध किया।

वीर सावरकर का आगमन - सन् १९३७ में जब हिंदू महासभा काफी शिथिल पड़ गई थी और हिंदू जनता गांधी जी की ओर झुकती चली जा रही थी, तब भारतीय स्वाधीनता के लिए अपने परिवार को होम देनेवाले तरुण तपस्वी स्वातंत््रय वीर सावरकर कालेपानी की भयंकर यातना एवं रत्नागिरि की नजरबंदी से मुक्त होकर भारत आए। स्थिति समझकर उन्होंने निश्चय किया कि राष्ट्र की स्वाधीनता के निमित्त दूसरों का सहयोग पाने के लिए सौदेबाजी करने की अपेक्षा हिंदुओं को ही संगठित किया जाए।

वीर सावरकर ने सन् १९३७ में अपने प्रथम अध्यक्षीय भाषण में कहा कि हिंदू ही इस देश के राष्ट्रीय हैं और आज भी अंग्रेजों को भगाकर अपने देश की स्वतंत्रता उसी प्रकार प्राप्त कर सकते हैं, जिस प्रकार भूतकाल में उनके पूर्वजों ने शकों, ग्रीकों, हूणों, मुगलों, तुर्कों और पठानों को परास्त करके की थी। उन्होंने घोषणा की कि हिमालय से कन्याकुमारी और अटक से क़टक तक रहनेवाले वह सभी धर्म, संप्रदाय, प्रांत एवं क्षेत्र के लोग जो भारत भूमि को पुण्यभूमि तथा पितृभूमि मानते हैं, खानपान, मतमतांतर, रीतिरिवाज और भाषाओं की भिन्नता के बाद भी एक ही राष्ट्र के अंग हैं क्योंकि उनकी संस्कृति, परंपरा, इतिहास और मित्र और शत्रु भी एक हैं - उनमें कोई विदेशीयता की भावना नहीं है।

वीर सावरकर ने अहिंदुओं का आवाहन करते हुए कहा कि हम तुम्हारे साथ समता का व्यवहार करने को तैयार हैं परंतु कर्तव्य और अधिकार साथ साथ चलते हैं। तुम राष्ट्र को पितृभूमि और पुण्यभूमि मानकर अपना कर्तव्यपालन करो, तुम्हें वे सभी अधिकार प्राप्त होंगे जो हिंदू अपने देश में अपने लिए चाहते हैं। उन्होंने कहा कि यदि तुम साथ चलोगे तो तुम्हें लेकर, यदि तुम अलग रहोगे तो तुम्हारे बिना और अगर तुम अंग्रेजों से मिलकर स्वतंत्रता संग्राम में बाधा उत्पन्न करोगे तो तुम्हारी बाधाओं के बावजूद हम हिंदू अपनी स्वाधीनता का युद्ध लड़ेंगे।

हैदराबाद का सत्याग्रह - इसी समय मुस्लिम देशी रियासतों में अंग्रेजों के वरदहस्त के कारण वहाँ के शासक अपनी हिंदू जनता पर भयंकर अत्याचार करके उनका जीवन दूभर किए हुए थे, अतएव हिंदू महासभा ने आर्यसमाज के सहयोग से निजाम हैदराबाद के पीड़ित हिंदुओं के रक्षार्थ सन् १९३९ में ही संघर्ष आरंभ कर दिया और संपूर्ण देश से हजारों सत्याग्रही निजाम की जेलों में भर गए। हैदराबाद के निजाम ने समझौता करके हिंदुओं पर होनेवाले प्रत्यक्ष अत्याचार बंद कराने की प्रतिज्ञा की।

सन् १९३६ के निर्वाचनों में जब मुस्लिम लीग के कट्टर अनुयायी चुनकर गए और हिंदू सीटों पर कांग्रेसी चुने गए, जो लीग की किसी भी राष्ट्रद्रोही माँग का समुचित् उत्तर देने में असमर्थ थे, तब पाकिस्तान बनाने की माँग जोर पकड़ती गई। हिंदु महासभा ने अपनी शक्ति भर इसका विरोध किया।

भागलपुर का मोर्चा - सन् १९४१ में भागलपुर अधिवेशन पर अंग्रेज गवर्नमेंट की आज्ञा से प्रतिबंध लगा दिया गया कि बकरीद के पहले हिंदू महासभा अपना अधिवेशन न करे, अन्यथा हिंदू मुस्लिम दंगे की संभावना हो सकती है। वीर सावरकर ने कहा कि हिंदुमहासभा दंगा करना नहीं चाहती, अत: दंगाइयों के बदले शांतिप्रिय नागरिकों के अधिकारों का हनन करना घोर अन्याय है। वीर सावरकर लगभग ५,००० प्रतिनिधियों के साथ भागलपुर जा रहे थे कि अंग्रेजी सरकार ने उन्हें गया में ही रोककर गिरफ्तार कर लिया। भाई परमानंद, डा. मुंजे, डा. श्यामाप्रसाद मुखर्जी आदि नेता भी बंदी बनाए गए, फिर भी न केवल भागलपुर में वरन् संपूर्ण बिहार प्रांत में तीन दिनों तक हिंदू महासभा के अधिवेशन आयोजित हुए जिसें वीर सावरकर का भाषण पढ़ा गया तथा प्रस्ताव पारित हुए।

पाकिस्तान की स्थापना - हिंदू महासभा के घोर विरोध के पश्चात् भी अंग्रेजों ने कांग्रेस को राजी करके मुसलमानों को पाकिस्तान दे दिया और हमरी परम पुनीत भारत भूमि, जो इतने अधिक आक्रमणों का सामना करने के बाद भी कभी खंडित नहीं हुई थी, खंडित हो गई। यद्यपि पाकिस्तान की स्थापना हो जाने से मुसलमानों की मुंहमाँगी मुराद पूरी हो गई और भारत में भी उन्हें बराबरी का हिस्सा प्राप्त हो गया है, फिर भी कितने ही मुसलिम नेता तथा कर्मचारी छिपे रूप से पाकिस्तान का समर्थन करते तथा भारतविरोधी गतिविधियों में सहायक होते रहते हैं। फलस्वरूप कश्मीर, असम, राजस्थान आदि में अशांति तथा विदेशी आक्रमण की आशंका बनी रहती है।

देश की परिस्थितियों को देखते हुए हिंदू महासभा इसपर बल देती है कि देश की जनता को, प्रत्येक देशवासी को अनुभव करना चाहिए कि जब तक संसार के सभी छोटे मोटे राष्ट्र अपने स्वार्थ और हितों को लेकर दूसरों पर आक्रमण करने की घात में लगे हैं, उस समय तक भारत की उन्नति और विकास के लिए प्रखर हिंदू राष्ट्रवादी भावना का प्रसार तथा राष्ट्र को आधुनिकतम अस्त्रशस्त्रों से सुसज्जित होना नितांत आवश्यक है। (विश्वनाथ त्रिपाठी.)