हिंदूकुश स्थिति : ३६� ०� उ. दे. तथा ७१� ०� पू. दे.। यह मध्य एशिया की विस्तृत पर्वतमाला है, जो पामीर क्षेत्र से लेकर काबुल के पश्चिम में कोह-इ-बाबा तक ८०० किमी लंबाई में फैली हुई है। यह पर्वतमाला हिमालय का ही प्रसार है, केवल बीच का भाग सिंधु नद द्वारा पृथक् हुआ है। प्राचीन भूगोलविद् इस पर्वतश्रेणी को भारतीय कॉकेशस (Indian Caucasus) कहते थे। इस पर्वतमाला का ३२० किमी लंबा भाग अफगानिस्तन की दक्षिणी सीमा बनाता है। इस पर्वतमाला का सर्वोच्च शिखर तिरिचमीर है जिसकी ऊँचाई ७७१२ मी है। इसमें अनेक दर्रें हैं जो ३७९२ मी से लेकर ५४०८ मी की ऊँचाई तक में हैं। इन दर्रों में वरोगहिल (Baroghil) के दर्रें सुगम हैं। हिंदूकुश आब-इ-पंजा से धीरे धीरे पीछे हटने लगता है और दक्षिण पश्चिम की ओर मुड़ जाता है तथा इसकी ऊँचाई बढ़ने लगती हैं और प्रमुख शिखरों की ऊँचाई ७२०० मी से अधिक तक पहुँच जाती है। इस दक्षिणपश्चिम की मोड़ में ६४ किमी से ८० किमी तक शिखरों में अनेक दर्रें हैं। इनमें ४५०० मी. की ऊँचाई पर स्थित दुराह समूह के दर्रें महत्वपूर्ण हैं जो चित्राल एवं ऑक्सस (Oxus) नदियों को जोड़नेवाली महत्वपूर्ण कड़ियाँ हैं। खाबक दर्रा वर्ष भर चालू रहता है और बदकशान से होता हुआ सीधे काबुल तक चला गया है। यह दर्रा महत्वपूर्ण काफिलापथ है। हिंदूकुश के उत्पत्ति स्थान से चार प्रमुख नदियाँ ऑक्सस, यारकंद दरिया, कुनार और गिलगिट निकलती हैं। हिंदूकुश पर्वतमाला की चार प्रमुख शाखाएँ हैं। इन सब शाखाओं से नदियाँ निकलकर मध्य एशिया के सभी प्रदेशों में बहती है।
हिंदूकुश की जलवायु शुष्क है और ४५०० मी से अधिक ऊँचे शिखर सदा हिमाच्छादित रहते हैं। जाड़े में यहाँ कड़ाके की सर्दी पड़ती है। ग्रीष्म काल में पहाड़ की निचली ढलानों पर अत्यधिक गरमी पड़ती है। इस पर्वत की मुख्य वनस्पति घास है। ऑक्सस, अर्थात् आमू दरिया तथा अन्य छोटी नदियों को यहाँ के हिम के पिघलने से पर्याप्त जल मिलता है। यह पर्वत उत्तर में सोवियत संघ और दक्षिण एवं दक्षिण पूर्व में अफगानिस्तान, पाकिस्तान एवं कश्मीर के बीच में रोध का कार्य करता है। (अजितनारायण मेहरोत्रा)