हार्मोनियम हार्मोनियम एक ऐसा वाद्ययंत्र है जिसमें तीलियों के कंपन से स्वर पैदा होता है। सर्वप्रथम इसका आविष्कार कोपनहेगन निवासी प्रोफेसर क्रिश्चियन गौटलिएव क्रैटजेंस्टाइन ने १७७९ ई. में किया। १८१८ ई. ऐंटन हेकेल नामक व्यक्ति ने वियेना में, फिशरमोनिका नामक हार्मोनियम बनाया जो जर्मनी में आज तक प्रचलित है। सन् १८४० में डिबेन नामक व्यक्ति ने एक दूसरे प्रकार का हार्मोनियम बनाया जिसने धीरे धीरे आधुनिक हार्मोनियम का रूप ले लिया।

अन्य वाद्ययंत्रों की तरह, इस वाद्ययंत्र में ट्यूनिंग (स्वर मिलाने) की आवश्यकता नहीं होती। एक बार का ट््यनू किया हुआ बाजा कई वर्षों तक ठीक स्वरों को देता रहता है। आजकल कई प्रकार के हार्मोनियम प्रचलित हैं, जैसे - सादा हार्मोनियम, कप्लर हार्मोनियम, स्केलचेंज हार्मोनियम, पाँववाला हार्मोनियम तथा हाथपाँववाला हार्मोनियम।

सादा हार्मोनियम एक लकड़ी के संदूक जैसा होता है। उसमें पीछे की ओर एक घौंकनी होती है और आगे की ओर चार या पाँच गोल लट्टू लगे रहते हैं जिन्हें स्टॉप कहते हैं। हार्मोनियम बजाते समय स्टापों को बाहर खींच लेते हैं। उसके ऊपरी हिस्से पर सफेद और काली 'की' या चाबियाँ होती हैं। इन्हीं को दबाने से स्वर निकलते हैं। चाबियों के नीचे पीतल की स्प्रिंग होती हैं जो चाबियों को स्थिर रखती हैं। इन्हें सुंदरियाँ कहते हैं। जब चाबियों को दबाकर छोड़ देते हैं तब इन कमानियों के दबाव से वे ऊपर अपनी पूर्व स्थितियों में आ जाती हैं।

जिस तख्ती पर चाबियाँ होती हैं, उसे कंघी कहते हैं। कंघी के ऊपर बहुत से सूराख बने होते हैं जिनमें चाबियाँ फिट की जाती हैं। कंघी के दूसरी ओर सूराखों के ऊपर तीलियाँ (रीखें) कसी रहती हैं। धौंकनी चलाने से वायु पैदा होती है जो तीलियों को स्पर्श करती हुई बाहर निकलने का प्रयत्न करती है। जब हम चाबी दबाते हैं तब उसका पिछला भाग सूराख से उठ जाता है और धौंकनी से आई हुई हवा तीली को छूती हुई सूराख से बाहर निकलती है और तीली कंपन करने लगती है जिससे स्वर पैदा होता है।

कप्लर हार्मोनियम की बनावट सादे हार्मोनियम की तरह होती है। इन दोनों में केवल यह अंतर है कि कप्लर हार्मोनियम में तारों की बनी हुई एक और कंघी होती है जो चाबियों और पहली कंघी के बीच होती है। इस अतिरिक्त कंघी के तार चाबियों के साथ लगे रहते हैं। जब हम किसी चाबी को दबाते हैं तब उस चाबीवाले सप्तक की चाबी भी स्वयं दब जाती है जिससे दो स्वर एक साथ उत्पन्न होते हैं और ध्वनि की तीव्रता दोगुनी हो जाती है।

हाथ-पाँववाले हार्मोनियम की बनावट भी सादे हार्मोनियम की तरह होती है। केवल उसमें पाँव से चलनेवाली धौंकनी अलग से फिट कर दी जाती है। पैर से चलनेवाली धौंकनी बाजे से अलग भी की जा सकती है। परंतु पाँववाले हार्मोनियम में धौंकनी अलग नहीं की जा सकती। पाँववाले हार्मोनियम को लपेटकर बक्स में बंद कर सकते हैं।

स्केलचेंज हार्मोनियम में चाबियाँ कंघी पर फिट नहीं की जातीं। वे एक दूसरी तख्ती के साथ लगी रहती हैं और उस तख्ती का संबंध एक बड़े फीते से होता है। उस फीते को इधर उधर घुमाने से चाबियाँ भी अपने स्थान से हटकर दूसरे स्थान पर फिट हो जाती है। इस तरह का बाजा उन लोगों के लिए लाभदायक होता है जिन्हें केवल एक स्वर से ही गाने का अभ्यास होता है।

अधिकांश बाजे तीन सप्तकवाले होते हैं और उनमें ३७ स्वर होते हैं। किसी किसी बाजे में ३९ या ४८ स्वर भी होते हैं।

संगीत में तीन प्रकार के स्वर माने गए हैं। शुद्ध, कोमल तथा तीव्र। हार्मोनियम में सफेद चाबियाँ शुद्ध स्वर देती हैं और काली चाबियों से कोमल तथा तीव्र स्वर निकलते हैं। १, ३, ५, ६, ८, १० और १२ नंबरवाली चाबियाँ शुद्ध स्वर देती हैं और २, ४, ९, ११ नंबर की चाबियाँ कोमल स्वर उत्पन्न करती हैं। तीव्र स्वर ७ नंबर की चाबी से उत्पन्न होता है।

१ से १२ तक के स्वरों को मंद्र सप्तक, १३ से २४ तक के स्वरों को मध्य सप्तक और २५ से आगे के स्वरों को तार सप्तक कहते हैं। प्रत्येक सप्तक में सात शुद्ध, चार कोमल और १ तीव्र स्वर होते हैं। इस तरह प्रत्येक सप्तक में कुल १२ स्वर होते हैं।

कई हार्मोनियमों में तीलियों के दो या तीन सेट लगाए जाते हैं। ऐसे बाजों की आवाज तीलियों के एक सेटवाले बाजे से ऊँची होती है। तीन तीलियोंवाले सेट अधिकतर पाँववाले हार्मोनियम में लगाए जाते हैं।

कई बाजों में दो या दो से अधिक धौंकनियाँ होती हैं। इंगलिश हार्मोनियम की धौंकनी में कई परतें होती हैं। इससे वायु पैदा करने की शक्ति बढ़ जाती है।

(के. एन. दु.)