हार्मोनिक विश्लेषण (Harmonic Analysis) ध्वनि तरंगे (Sound waves), प्रत्यावर्ती धाराएँ (alternating currents), ज्वार भाटा (tides) और मशीनों की हलचल जैसी भौतिक घटनाओं में आवर्ती लक्षण देखने में आते हैं। उपयुक्त गतियों को स्वतंत्र चर के क्रमागत मानों के लिए मापा जा सकता है। यह चर प्राय: समय होता है। इस प्रकार प्राप्त न्यास (data) अथवा उन्हें निरूपित करनेवाला चक्र स्वतंत्र चर का फलन, मान लें f (x) प्रस्तुत करेगा, और किसी भी बिंदु पर वक्र की कोटि y = f (x) होगी। सामान्यत: f (x) का गणितीय व्यंजक अज्ञात होगा; किंतु f (x) को कई एक ज्या (sine) और कोज्या (cosine) के पदों के योग रूप में प्रकट किया जा सकता है। ऐसे योग को फूरिये श्रेणी (Fourier series) कहते हैं (देखें फूरिये श्रेणी)। हार्मोनिक विश्लेषण का ध्येय इन पदों के गुणांकों का निर्धारण करता है। कभी कभी ऐसे विश्लेषण को भी, जिसमें आवर्ती संघटक गोलीय हार्मोनिक (spherical harmonic), बेलनीय हार्मोनिक (cylindrical harmonic) आदि होते हैं, हार्मोनिक विश्लेषण की संज्ञा दी जाती है। यदि हम फूरिये श्रेणी के पसार तक सीमित रहें तो इस श्रेणी के उस पद को, जिसका आवर्तकाल f (x) के आवर्तकाल के बराबर है, मूल (fundamental) कहते हैं, और उन पदों को जिनके आवर्तकाल इससे लघुतर होते हैं, प्रसंवादी (hormonic) कहते हैं।
अनुप्रयोग - फूरिये विश्लेषण के गणितीय भौतिकी, इंजीनियरिंग आदि में अनगिनत अनुप्रयोग हैं। इन्हें व्यापक रूप से दो वर्गों में विभक्त किया जा सकता है - एक वर्ग वस्तुत: उनका है जिनमें हलचल सचमुच आवर्ती है, जैसे ज्वारभाटाय तरंगें और दूसरा वर्ग ऋतु, सूर्यकलंक आदि घटनाओं का, जिनका मूल आवर्तकाल सामान्यतया स्पष्ट नहीं होता और जिनके प्रसंवादियों के आवर्तकाल मूल के अशेष भाजक (aliquot parts) नहीं होते। सच तो यह है कि किसी परिमित अनावर्ती (non-periodic) वक्र का विश्लेषण प्रसंवादी विधि से किया जा सकता है, बशर्ते x दिशा में मापनी को इस प्रकार बदल दिया जाए कि वक्र की लंबाई २p मात्रक हो जाए। अब हम फूरिये विश्लेषण में सामन्यता प्रयुक्त विधियों का संक्षेप में वर्णन करते हैं :
संख्यात्मक विधियाँ - इनका आरंभ f (x) के निरूपण
y = a1 sin x + a2 sin 2 x + a3 sin 3 x +.....
+bo + b1 cos x + b2 cos 2 x +....(1)
से होता है जिसकी वैधता, और के बीच, इन दशाओं में फूरियो ने १८२२ में स्थापित की थी : फलन एकमानी, परिमित और संतत या परिमित संख्यक असांतत्यवाला हो। गुणांक ये हैं :
bo
=
�y
dx
bk
= �y
cos kx dx���������� ..... (2)
ak
= �y
sin kx dx
जहाँ k = 1, 2, 3,...। (१) को निम्न किल्प रूप में भी लिखा जा सकता है :
y = C1 sin (x + f1) + C2 sin 2 (x + f2)
+ C3 sin� 3 (x + f3) +....,(3)
जहाँ
Ck = (
+
), f k =
tan-1 (bk/ak)...
(4)
किसी आवर्ती घटना के संबंध में प्राप्त अभिलेख पर विचार करें। स्पष्ट है कि समीकरण (i) से f (x) �का निरूपण किया जा सकता है और ak , bk निर्धारित किए जा सकते हैं। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए पहले फलन का आवर्तकाल ज्ञात करना आवश्यक है। इसे २p रेडियन मान कई भागों, मान लें n, में विभक्त करना होगा। समीकरण (१) में प्रथम n मापी हुई कोटियों का प्रतिस्थापन कर n अनिर्धारित गुणांकों में n समीकरण प्राप्त हो जाएँगे। इनका रूप
yk = bo + b1 cos xk + b2 cos2xk+... b2 cos 2xk + ... + a1 sin xk + a2 sin 2xk +...., k = 0 1, 2,... (n-1) है और yk वक्र की k वीं कोटि है। इनसे ये संबंध मिलते हैं :
bo
=
�(yo
+ y1 +...+yn-1)
bk
= �(yo
cos k xo + y1 cos kx1 +
���������������� +yn-1 cos k xn-1)������������������������������������������������������������������������������������������������������������ ... (5)
ak
= �(yo
cos k xo + y1 sin kx1 +
�������������������������� yn-1 sin k xn-1) ,
इन गुणांकों का उपयोग कर वक्रालेखन न किया जा सकता है और हो सकता है, यह वक्र प्रयोगदत्त समीकरण से मेल न खाता हो। लेकिन कुछ स्थितियों में फलन काफी सन्निकटत: थोड़े से ही पदों द्वारा निरूपित हो जाएगा। यदि तरंगों में नुकीले बिंदु हों तो अच्छा सन्निकटन प्राप्त करने के लिए बहुत से पद लेना आवश्यक होगा।
योजनाबद्ध विधियाँ - समीकरणों (५) को हल करने की साधनविधियाँ योजनाबद्ध होती हैं। इनमें से एक रंगविधि है जिसमें ६ बिंदुओं की योजना है। इसका हम अब विवरण देते हैं। केवल विषम प्रसंवादियों पर विचार करें और उस बिंदु को मूलबिंदु चुने जहाँ x - अक्ष का प्रतिच्छेदन करता है। छह समीकरण सरल करने पर ये होंगे :
3 b1 = (y2 - y4) sin 30� + (y1 - y5) sin 60�,
3 b3 = - (y2 - y4) sin 90�
3 b5 = (y2 - y4) sin 30� - (y1 - y5) sin 60�
3 a1 = (y1 + y5) sin 30� + (y2 + y4) sin 60� + y3 sin 90�
3 a3 = (y1 - y3 + y5) sin 90�
3 a5 = (y1 + y5) sin 30� - (y2 + y4) sin 60� + y3 sin 90�,
देखने में आता है कि y3 को छोड़ सभी गुणांक योग रूप में या अंतर रूप में विद्यमान हैं। शेष क्रिया को इस प्रकार सारणीबद्ध किया जा सकता है :
|
योग |
अंतर |
� |
पहली और पाँचवीं |
तीसरी |
कोज्या पद पहली और पाँचवीं |
तीसरी |
yo5... y1, y5... y2, y4... y3,.... |
S1 S2 S3 |
do d1 d2 |
sin30� sin60� sin90� |
S1 �������� S2 S3 |
S1-S3 |
d2 ��������� d1 do |
do-d2 |
� |
So����������������� Se a1
= a5
= |
S a3
= |
Do���������������� De b1
= b 5 = c |
D b3
= |
इस योजना में yo बढ़ा दिया गया है और वक्र x - अक्ष का पर x = o प्रतिच्छेदन नहीं करता। किंतु यदि x = o होने पर f (x) = o, तो पूर्वगामी समीकरण से yo लुप्त हो जाता है।
इस दिशा में ऐसे ही प्रयासों के फलस्वरूप फिशर हिनेन द्वारा चुनी हुई कोटियोंवाली जैसी विधियों का विकास हुआ। हिनेन विधि में रंग विधि की अपेक्षा परिकलन कम हो जाता है किंतु प्रत्येक गुणांकयुग्म के लिए समदूरस्थ कोटि समुच्चय को मापना होता है। परिकलन की अन्य विधियाँ भी हैं - उदाहरणतया स्टीनमेज, एस. पी. टामसन, आदि। ऐसे लेखापत्र भी बनाए गए हैं जिनमें बिना परिकलन किए ही ज्या और कोज्या गुणनखंड का हिसाब लग जाता है। इस तरह की लेखाचित्रीय विधियों के संबंध में पी. एस. श्लिकटर, पेरी, हेरिअन और एशवर्थ के नाम उल्लेखनीय हैं।
यांत्रिक विधि - उपर्युक्त विधियों में श्रम काफी होता है, इसलिए श्रमनिवारक यांत्रिक विधियाँ भी निकाल ली गई हैं। मान लें, आरेखन १ के वक्र y = f (x) का विश्लेषण करना है, तो गुणांक a के समानुपाती राशि प्राप्त करने के लिए हमें कोटियों को sin x से गुणा करने पर प्राप्त वक्र के नीचेवाले क्षेत्रफल को ज्ञात करना होगा। इसी प्रकार अन्य गुणांक भी ज्ञात किए जा सकते हैं। इसी कारण मशीनों में यह व्यवस्था रहती है कि उनमें sin (kx) से गुणाकार समाकलन हो जाता है। ऐसी प्रथम मशीन का सुझाव लार्ड केल्विन ने दिया था। तब से बहुत प्रगति हो चुकी है और मैसेचुसेट्स इंस्टीट्यूट ऑव टेकनोलोजी ने एक ऐसे समाकलनरेखा (integraph) का आविष्कार किया है जो किन्हीं भी दो वक्रों के गुणनफल का समाकलन दे देता है। इस दिशा में कुछ उल्लेखनीय यंत्रनिर्माता सेलन वड, वुडबरी, सोमरफेल्ड हैं।
समक्ष विश्लेषण - उपर्युक्त विधियों में प्रयोगदत्त न्यास को आधार माना गया है। समक्ष विश्लेषण (direct analysis) विधि में, जिसे प्यूपीन ने सन् १८९४ में सुझाया था विश्लेषण विचाराधीन घटना की समुचित और उपयुक्त क्रिया द्वारा सीधे होता जाता है। निस्संदेह ऐसी व्यवस्था सदा संभव नहीं होती। एक आदर्श परिस्थिति, जहाँ ऐसा संभव है, विद्युद्धाराओं अथवा वोल्टता में उपस्थित होती है; यहाँ भी जब अधिक असंवादी विश्लेषण अपेक्षित हो हेनरिकी कोरेडी जैसा यांत्रिक विश्लेषण उपयोगी रहता है। (चंद्रमोहन)