हॉर्नली, आगस्टस फ्रेडेरिक रूडोल्फ भारतीय भाषाओं पर कार्य करनेवाले बीम्स, ग्रियर्सन आदि विदेशी विद्वानों एवं भाषावैज्ञानिकों के साथ साथ हॉर्नली का नाम भी उल्लेखनीय है। आधुनिक भारतीय भाषाओं के उद्भव और विकास का ज्ञान प्राप्त करने में उनकी रचनाओं ने भी यथेष्ट सहायता पहुँचाई है। उनका जन्म १९ अक्तूबर, १८४१ का हुआ था। उन्होंने स्टटगार्ट में और बसेल तथा ट्यूबिनगेन विश्वविद्यालयों में शिक्षा प्राप्त कर १८६५ में चर्च मिशनरी सोसायटी का कार्य करना प्रारंभ किया। धर्मप्रचार के साथ साथ उनकी रुचि शिक्षण कार्य की ओर भी थी। १८७० ई. में इन्होंने बनारस (वाराणसी) के जयनारायण कॉलेज में अध्यापकतव किया। तत्पश्चात्, १८७७ में वे कलकत्ते के कैथीड्रल मिशन कॉलेज के प्रिंसिपल नियुक्त हुए और १८८१ में इंडियन एजुकेशनल सर्विस में आ गए। १८८१ से १८९९ ई. तक वे कलकत्ता मदरसा के प्रिसिंपल रहे। इन्हीं सब पदों पर कार्य करते हुए इन्होंने अपना विद्याप्रेम प्रकट किया और ख्याति प्राप्त की। १८९७ ई. में सरकार की ओर से उन्हें सी. आई. ई. की उपाधि मिली। कार्यव्यस्त रहते हुए भी हॉर्नली भाषाविज्ञान और व्याकरण संबंधी समस्याओं पर विचार करते रहते थे। उसकी सर्वाधिक प्रसिद्ध रचना 'ए' कपैरेटिव ग्रैमर ऑव गौडियन लैंग्वेजेज विद स्पेशल रिफरेंस टु ईस्टर्न हिंदी' (१८८०) है। उन्होंने 'चंद' ज प्राकृत ग्रैमर, चंदकृत रासो के 'रेवांतर समयो' (अनुवाद, १८८६), और 'रिपोर्ट ऑन दि ब्रिटिश कलेक्शन ऑव सेंट्रल एशियन ऐंटिक्विटीज', 'मैनस्क्रिप्ट रिमेंस ऑव बुधिस्ट लिट्रेचर काउंट इन ईस्टर्न तुर्किस्तान' (१९१६) का संपादन भी किया। उनके लेख अधिकतर 'जर्नल ऑव दि एशियाटिक सोसायटी ऑव बंगाल और 'दि इंडियन ऐंटीक्वेरी' आदि में मिलते हैं। एच. ए. स्टार्क की सहकारिता में उन्होंने 'ए हिस्ट्री ऑव इंडिया' (१९०३) शीर्षक पुस्तक प्रकाशित की। बोवर (Bover) हस्तलिखित पोथी का संपादन भी हॉर्नली का महत्वपूर्ण कार्य है। पुरातत्व तथा प्राचीन अभिलेखों का उन्होंने विशेष रूप से अध्ययन किया। (लक्ष्मी शंकर व्यास)