हाथी स्तनी वर्ग का एक बृहत्काय चतुष्पद प्राणी है। इसका शरीर ऊँचा, कान बड़े बड़े, आँखें छोटी और नाक और उर्ध्व ओष्ठ मिलकर लंबी सूँड़ में परिवर्तित हो जाते हैं। इसकी औसत ऊँचाई ३ से ४ मीटर और भार ६ टन या इससे अधिक हो सकता है। हाथी हथिनी से प्राय: ३० सेमी अधिक ऊँचा होता है। अफ्रीका में एक बौना हाथी भी पाया जाता है जिसकी औसत ऊँचाई प्राय: श्मीटर की होती है।

हाथी की सूँड लगभग २ मीटर लंबी और प्राय: १३६ किलोग्राम भारत की, चमड़ी और अंतर्ग्रथित स्नायु और पेशियों की बनी होती है। यह अस्थिहीन, लचीली और असाधारण मजबूत होती है। इससे वह सूंघता, पानी पीता, भोजन प्राप्त करता और उसे मुँह में डालता तथा अपने जोड़े और बच्चे को सहलाकर प्रेम प्रदर्शन आदि काम करता है। हाथी अपनी सूँड से भारी से भी और छोटे से छोटे यहाँ तक की मूँगफली सदृश वस्तुओं को भी उठा सकता है। हाथी की नासिका छोटी और खोपड़ी बहुत बड़ी होती है।

किस्म - हाथी दो प्रकार का होता है, एक को अफ्रीकी हाथी और दूसरे को भारतीय हाथी कहते हैं। अफ्रीकी हाथी का वंश लॉक्साडांटा (Loxadanta) और जाति अफ्रीकाना है। भारतीय हाथी का वंश एलिफास (Eliphas) और जाति मैक्सिमस (Maximus) है। अफ्रीकी हाथी भारतीय हाथी से बड़ा होता है। अफ्रीकी हाथी के नर और मादा दोनों में गजदंत विकसित होते हैं। जबकि भारतीय हाथी के केवल नर में गजदंत विकसित रहता है। अफ्रीकी हाथी का ललाट अधिक गोल और कान बड़ा होता है। सूँड़ के निचले छोर पर दो लट्टू होते हैं, जबकि भारतीय हाथी में केवल एक लट्टू (Knob) होता है। भारतीय हाथी के अग्रपाद में केवल पाँच और पश्चपाद में चार नाखून होते हैं। जबकि अफ्रीका हाथी के अग्रपाद में केवल चार और पश्चपाद में केवल तीन नाखून होते हैं। अफ्रीकी हाथी की त्वचा अधिक रूक्ष होती है। किसी किसी भारतीय नर हाथी के गजदंत नहीं होता। ऐसे हाथी को 'मखना' हाथी कहते हैं। मखना का शरीर असाधारण बड़ा होता है।

हाथी का वितरण और प्रजनन - एक समय हाथी एशिया, यूरोप और उत्तरी अमरीका के अनेक देशों में पाया जाता था। यहाँ इसके फॉसिल मिले हैं। पर अब यह केवल एशिया और अफ्रीका के कुछ स्थानों में ही पाया जाता है। एशिया के भारत (मैसूर, असम) बर्मा, मलाया, सुमात्रा, बोनियो, इंडोनेशिया, थाईलैंड आदि देशों में तथा अफ्रीका के इथियोपिया, केनिया और यूगांडा में यह पाया जाता है। प्रागएैतिहासिक हाथी अधिक ऊँचा नहीं होता था और उन्हें सूंड भी न थी। हाथी के पूर्वज हाथी से बहुत मिलते जुलते समय मैमथ और मैस्टाडान के फॉसिल साइबीरिया और दक्षिण अमरीका तथा कुछ अन्य देशों में पाए गए हैं। हाथी का मैथुन काल ग्रीष्म अथवा वर्षा का प्रारंभ है। हथिनी २० से २२ मास तक गर्भ धारण करने के बाद सामान्यत: एक ही बच्चा जनती है। बीस वर्ष में बच्चा युवा होता है। ४० वर्ष के बाद उसमें वृद्ध होने के लक्षण प्रकट होने लगते हैं। हाथी की औसत आयु ६० वर्ष की होती है, यद्यपि कुछ हाथी ७० वर्ष तक जीते पाए गए हैं। जन्म के समय बच्चा १ मीटर ऊँचा और ९० किलोग्राम भार का होता है। तीन चार वर्षों तक हथिनी बच्चे को दूध पिलाती है और सिंह, बाघ, चीते आदि से बड़ी सर्तकता से उसकी रक्षा करती है।

पैर और त्वचा - हाथी के पैर स्तंभ की भाँति सीधे होते हैं। खड़ा रहने के लिए इसे बहुत कम पेशी शक्ति की आवश्यकता पड़ती है। जब तक बीमार न पड़े या घायल न हो, तब तक अफ्रीकी हाथी कदाचित् ही लेटता है। भारतीय हाथी प्राय: लेटते हुए पाए जाते हैं। हाथी की अँगुलियाँ त्वचा की गद्दी में धँसी रहती हैं। गद्दी के बीच में चर्बी की एक गद्दी होती है, जो शरीर के भार पड़ने पर फैल जाती और पैर ऊपर उठाने पर सिकुड़ जाती है। हाथी की त्वचा एक इंच मोटी पर पर्याप्त संवेदनशील होती है। त्वचा पर एक एक इंच की दूरी पर बाल होते हैं। इसकी खाल खोल के सदृश और झुर्रीदार होती है। खाल का भार एक टन तक का हो सकता है।

रंग - हाथी स्लेटी भूरे रंग का होता है। कुछ हाथी सफेद होते हैं। इन्हें 'एल्बिनो' कहते हैं। वर्मा आदि देशों में ऐसे हाथी पवित्र माने जाते हैं और इनसे कोई काम नहीं लिया जाता।

दाँत - हाथी के दाँत दो प्रकार के होते हैं। एक प्रकार के दाँत बड़े बड़े बाहर निकले हुए होते हैं जिन्हें गजदंत (Tusks) कहते

भारतीय हाथी

अफ्रीकी हाथी

हैं दूसरे दाँत मुख के अंदर रहते हैं, जो चबाने के काम आते हैं। गजदंत ऊपरी छेदन दंत (incisor) ही हैं। गजदंत ३५ किग्रा भार तक या इससे अधिक का हो सकता है। १०० किलोग्राम भार के गजदंत का औसत व्यास २०.३ सेमी और लंबाई ३.५ मीटर तक की हो सकती है। नर हाथी के गजदंत बड़े होते हैं। भारतीय हथिनी के गजदंत नहीं होते। हाथी के चर्वणदंत कुल २४ होते हैं। पर एक समय में केवल चार ही रहते हैं। पुराने दाँत घिसते घिसते लुप्त हो जाते हैं, तब अन्य दाँत निकलते हैं। अंतिम दाँत ४० वर्ष की अवस्था में निकलता है। समस्त जीवनकाल में कुल २४ दाँत निकलते हैं।

आहार - हाथी पूर्णतया शाकाहारी होता है। घास, डालपात ईख, पीपल और बरगद के पत्ते और छाल, केले के थंबे, बाँस के पत्ते और अनाज के पौधे हाथी के प्रिय चारे हैं। ये डालियाँ और जड़ भी खाते हैं। एक दिन में २५०-३०० किलोग्राम तक चारा खा जाता है। यदि हाथी को पूरा खाना मिले तो वह ५० टन तक का बोझ ढो सकता है।

वासस्थान - पहाड़ों और लंबे वृक्षों के जंगलों में, विशेषत: जहाँ बाँस बहुतायत से हों, रहना हाथी पसंद करता है। बर्मा में १०,००० फुट की ऊँचाई तक के स्थानों में विचरण करता हुआ हाथी देखा गया है। हाथी बड़ा तेज चल सकता है, पर छलाँग नहीं मारता।

प्रकृति - हाथी स्नान करने में बड़ा नियमित होता है। अपने बच्चों को नियमित रूप से स्नान कराता है। यह अच्छा तैराक होता हैं। सारे शरीर को पानी में डूबोकर, केवल साँस के लिए सूँड़ को बाहर निकाले रख सकता है। यह किसी निश्चित स्थान पर पानी पीता, और एक स्थान पर जाकर विश्राम करता है। धूप से बचने के लिए घने जंगलों की छाया में सोता है। हाथी खड़ा खड़ा ही विश्राम करता है, अथवा करवट लेटता है। विश्राम के समय बिल्कुल शांत रहता है, केवल कान की फड़फड़ाहट या शरीर के डालने से उसकी उपस्थिति जानी जाती है।

जंगली हाथी दल बनाकर रहता है। दल में साधारणतया ३०-४० बच्चे, बूढ़े, जवान, नर और मादा रहते हैं। किसी किसी दल में ३००-४०० तक रह सकते हैं। प्रस्थान करने पर ये एक कतार में श्रेणीबद्ध चलते हैं। बच्चे आगे आगे और शेष पीछे चलते हैं। आक्रमण के समय यह क्रम बदल जाता है और छोटी छोटी टुकड़ियाँ बनाकर वे विभिन्न दिशाओं में खिसक जाते हैं। आक्रमण की सूचना सूँड़ की गति से देते हैं। कुछ हाथी दल के नियमों का पालन नहीं करते। वे तब शैतान या आवारा (rogue) कह जाते हैं और उन्हें दल से निकाल दिया जाता है।

ऐसा कहा जाता है कि हाथी कुशाग्रबुद्धि होता है। कुशाग्रता के प्राणियों में पहला स्थान मनुष्य का, दूसरा चिपैंजी का, तीसरा औरांग ऊटांग का और चौथा हाथी का आता है। ऐसा कहा जाता है कि हाथी की दृष्टि कमजोर होती है और वह ७५ मीटर से अधिक दूरी पर खड़े किसी मनुष्य को पहचान नहीं सकता। इसकी श्रवणशक्ति अच्छी तथा घ्राणशक्ति और भी अच्छी होती है।

एशिया में हाथी पकड़ने के निम्नलिखित चार तरीके हैं :

१. गड्ढे में गिराकर - इस रीति से पकड़ने के लिए हाथी के आने जाने के मार्ग में गड्ढे खोदते हैं और पेड़ पौधों की टहनियों से उन्हें ढँक देते हैं। टहनियों के ऊपर से जाता हुआ हाथी गड्ढे में गिर जाता है और निकल नहीं पाता है।

२. शंकु अँगूठी द्वारा - शंकु अँगूठी लकड़ी का वृत्ताकार फंदा होता है, जिसके जबड़े में लोहे के काँटे लगे रहते हैं। फंदा जमीन में गड़ा और पत्तियों से ढँका होता है। उसपर हाथी का पैर पड़ने से काँटे पैर में गहरे धँस जाते हैं और रुधिर बहने लगता है। यह फंदा लंबी रस्सी से लकड़ी के कुंदे से बँधा होता है, जिससे हाथी जंगल में तेजी से भाग नहीं सकता।

अब कानून द्वारा उपर्युक्त दोनों निर्दय रीतियों का निषेध हो गया है।

३. सरकफंदा लगाकर - इस रीति से हाथी के बच्चे पकड़े जाते हैं। एक मजबूत रस्सी में सरकफंदा लगाकर, पैदल या पालतू हाथी पर सवार होकर पकड़नेवाला हाथी के दल का पीछा करता है और अवसर पाकर किसी बच्चे के ऊपर फंदा फेंककर उसका पैर या शरीर का अन्य भाग फंदे से जकड़ देता है। तब दल के अन्य हाथियों को शोरकर भगा दिया जाता है और बच्चे को पालतू हाथियों की सहायता से पकड़ ले जाते हैं।

४. खेदा द्वारा - हाथियों के जंगल में लकड़ी के बड़े और मोटे लट्ठे पास पास गाड़कर एक विस्तृत भूमि घेर दी जाती है, जिसमें प्रवेश के लिए इसी प्रकार निर्मित एक लंबा रास्ता तथा उसे अंत पर एक फाटक होता है। इसे खेदा कहते हैं। चारों तरफ से घेर तथा हँकवा कर, जंगली हाथियों के दल को इस रास्ते में प्रवेश करने तथा आगे बढ़ते जाने के लिए बाध्य कर देते हैं। जब यथेष्ट हाथी खेदा में आ जाते हैं, तो फाटक बंद कर दिया जाता है और पहले से उपस्थित पालतू हाथियों की सहायता से साहसी महावत, एक एक कर, पकड़े हुए हाथियों के पैरों को मजबूत रस्से से पेड़ों से बाँध देते हैं। कुछ दिन बँधे रहने पर पकड़े हाथियों की शक्ति और साहस कम हो जाता है, तब पालतू हाथियों की सहायता से इनको वश में ले आते हैं।

उपयोगिता - हजारों वर्षों से मनुष्य ने हाथी को पालतू बना लिया है और उससे अनेक उपयोगी काम ले रहे हैं। युद्धकाल में सैनिकों, रसद और अस्त्रशस्त्र आदि ढोने में यह काम आता है। आधुनिक काल में मोटरवाहनों के कारण ऐसी उपयोगिता बहुत कम हो गई है। सैनिक हाथी पर चढ़कर युद्ध करते थे, यद्यपि सेना में हाथी दल का रहना निरापद नहीं था। शांतिकाल में हाथी पर चढ़कर शेरों का शिकार किया जाता है। दलदल और कीचड़ में इसकी सवारी अच्छी होती है। मनोरंजन के लिए भी हाथी पर चढ़ा जाता है। लकड़ी के बड़े बड़े कुंदों को जंगलों से बाहर ले आने में इसका आज भी उपयोग होता है। पशु उद्यानों और सर्कसों में खेल तमाशे के लिए इसे रखा जाता है। हाथी का गजदंत बड़ा उपयोगी पदार्थ है। गजदंत का उपयोग बहुत प्राचीन काल से होता आ रहा है। एक समय इसके सिंहासन भी बनते थ। हाथी के दाँत के घर बनाने का भी उल्लेख मिलता है। इसका बिलियर्ड गेंद आज भी उपयोग में आता है। सजावट के अनेक सामान, चूड़ियाँ, कंघी, क्रूस, सुइयाँ, आल्पीन, बुरुश, चाकू की मूठ, मूर्तियाँ और अनेक प्रकार के खिलौने हाथीदाँत के बनते हैं।

कृषि को हाथी बहुत क्षति पहुँचाता है। फसलों को खाकर ही नहीं वरन् रौंदकर नष्ट कर देता है। (भृगुनाथ प्रसाद)