हॉकी (Hockey) इस खेल का नाम हॉकी होने से ऐसा प्रतीत होता है कि यह पाश्चात्य खेल है, पर जहाँ अन्य खेलों के विजेता पाश्चात्य राष्ट्र रहे हैं वहाँ विश्व में हॉकी खेल में सर्वजेता भारत ही है।

इस खेल को खेलने के लिए दो दलों का होना आवश्यक है। प्रत्येक दल में ११, ११ खिलाड़ी रहते हैं तथा उनके स्थान के विभाजन निम्नलिखित प्रकार से होते हैं-५ अग्रिम पंक्ति (आक्रामक) ३ सहायक पंक्ति (रक्षात्मक, Half backs), २ रक्षक पंक्ति (Backs) तथा गोलरक्षक (Goal Keeper)। कप्तान को यह अधिकार है कि वह उनका स्थान अपने दल के हित में बढ़ा घटा या बदल सकता है।

इस खेल का क्रीड़ास्थल आयताकार होता है, जिसकी लंबाई १०० गज तथा चौड़ाई अधिक से अधिक ६० गज तथा कम से कम ५५ गज अवश्य होनी चाहिए। पूरे क्रीड़ास्थल को दो भागों में बराबर बराबर विभक्त कर दिया जाता है। इसकी सीमारेखाएँ ३ (इंच) चौड़ी रेखा से बनाई जाती हैं। लंबाई की रेखा को अगल बगल की रेखा (Side lines) तथा चौड़ाई की रेखा को गोल रेखा (Goal lines) के नाम के पुकारा जाता है। क्रीड़ा स्थल के चारों कोने पर ४ फुट ऊँची झंडी लगा देनी चाहिए, साथ ही मध्य रेखा तथा २५ गजवाली रेखा की सीध में भी 'साइड लाइन्स'। पार्श्वरेखा से १ गज की दूरी पर झंड़ियाँ लगा देनी चाहिए।

मध्य में 'गोल' बनाया जाता है जो १२ फुट चौड़ा और ७ फुट ऊँचा होता है एक जाली भी गोल में बँधी होनी चाहिए। गोल के बाहर अधिक से अधिक ४८ सेमी ऊँचा 'गोलबोर्ड' लगा देना चाहिए।

गोल रेखा से १६ गज की दूरी पर क्रीड़ा क्षेत्र के अंदर की ओर ४ गज की, गोल क्षेत्र के समांतर ३ मोटी सफेद सीधी रेखा खींच देनी चाहिए और गोल के खंभों से दोनों तरफ १६ गज का चाप काट करके उस रेखा में गोलाई से मिला देना चाहिए। इसको 'रिंग 'डी' एवं स्ट्राइकिंग सरकिल कहते हैं।

इस खेल की गेंद सफेद चमड़े की बनी होनी चाहिए। गेंद का वजन अधिक से अधिक ५ आैंस और कम से कम से कम ५ आैंस होना चाहिए। गेंद की परिधि ९ से अधिक तथा ८ से कम नहीं होनी चाहिए।

इस खेल को खेलने की स्टिक (stick) का बाएँ हाथ के सामने का भाग समतल होता है तथा उसका किनारा गोला होना चाहिए। हाकी स्टिक का पूरा वजन २८ आउंस से अधिक तथा १२ आउंस से कम नहीं होना चाहिए तथा स्टिक की चौड़ाई एवं मोटाई उतनी ही होनी चाहिए जो दो इंच की परिधि से निकल सके।

सेंटर लाइन पर दोनों तरफ के फारवर्ड्स खड़े हो जाएँगे। गेंद क्रीड़ा स्थल के मध्य में रख दिया जाएगा तथा दो खिलाड़ी जिन्हें फारवर्ड सेंटर कहा जाता है गेंद के ऊपर तीन बार स्टिक मिलाएँगे उसके बाद रेल प्रारंभ समझा जाएगा। इस क्रिया को बुल्ली (bully) कहा जाता है। बुल्ली होते समय ५ गज तक कोई खिलाड़ी वहाँ नहीं रहता। गोल के बाद तथा मध्यांतर के बाद गेंद प्रारंभ की भाँति ही केंद्र में रखा जाता है और बुल्ली की जाती है। गोल सरकिल के अंदर पेनाल्टी बुल्ली को छोड़ किसी भी प्रकार की बुल्ली ५ गज के भीतर नहीं ली जाएगी। नियमभंग पर फ्री हिट या संदिग्ध अवस्था में रेफरी पुन: बुल्ली करने की आज्ञा दे सकता है।

नियम - हाकी स्टिक का सामनेवाला समतल भाग ही खेलते समय गेंद मारने के लिए प्रयोग किया जाएगा। कोई भी खिलाड़ी स्टिक को अपने कंधे से अधिक ऊँची खेलते समय नहीं उठाएगा तथा गेंद को स्टिक से इस तरह नहीं लगाया जाएगा कि वह खतरनाक हो, साथ ही अंडरकट हो। बाल को उछालना (स्कुप करना) वहीं तक उचित है जहाँ तक स्कुप किया हुआ गेंद खतरनाक न हो साथ ही अंडरकट या गलत ढंग से स्कुप न किया गया हो। शरीर के किसी अंग से गेंद रोका नहीं जा सकता। केवल हाथ से गेंद रोका जा सकता है अपेक्षाकृत गेंद गिरते ही उसपर चोट स्टिक द्वारा लग जानी चाहिए१ किसी भी प्रतिपक्ष दल के खिलाड़ी को गलत ढंग से उसके खेल में बाधा पहुँचाना नियम विरुद्ध है। गोलकीपर गोल सरकिल के अंदर हाथ से या किसी अंग से गेंद रोक सकता है, मार सकता है लेकिन बाल को दो सेकंड से अधिक अपने पास पकड़कर रख नहीं सकता। पेनाल्टी बुल्ली के समय गोलकीपर को भी यह अधिकार नहीं रह जाता है। पेनल्टी बुल्ली के समय गोलकीपर ग्लब्स (दस्ताना) को छोड़कर सभी पैड इत्यादि को उतार देगा।

नियम - (१) सरकिल के बाहर क्रीड़ा स्थल में कहीं भी गलती हो जाने पर प्रतिपक्ष दल को हिट लगाने का अवसर मिलता है।

(२) सरकिल के अंदर अपने ही दल के किसी खिलाड़ी से यदि नियमभंग होता है तो उस अपराध के अनुसार कारनर, पेनाल्टी कारनर एवं पेनाल्टी बुल्ली दी जाती है।

(३) कोई भी गोल सरकिल के अंदर से ही प्रतिपक्ष दल द्वारा ही मारे जाने पर होता है।

(४) यदि प्रतिपक्ष दल के तीन खिलाड़ियों के न होते हुए कोई आक्रामक दल का खिलाड़ी अनुचित लाभ उठाने के लिए गोल रेखा के समीप चला जात है तो वह आफ साइड्स समझा जाता है।

(५) साइड लाइन से यदि गेंद सीमारेखा से बाहर चली जाती है तो उसके विरोधी को गेंद रोल (लुढ़काने) करने का अवसर मिलता है। लेकिन रोलिंग करते समय तीन बातों का ध्यान रखना चाहिए-

(क) गेंद हाथ से छूटते ही ६ के भीतर जमीन पकड़ ले।

(ख) सात गजवाली रेखा के भीतर किसी भी खिलाड़ी को नहीं रहना चाहिए।

(ग) हाथ से बाल छूटने पर ही कोई खिलाड़ी अंदर जा सकता है।

यदि गोल रेखा से होता हुआ रक्षक दल से कोई भी गेंद क्रीड़ा स्थल से बाहर चला जाता है तो आक्रामक दल को कारनर लगाने का अवसर मिलता है। और यदि आक्रामक दल से बाहर चला जात है तो रक्षक दल को फ्री हिट लगाने का अवसर मिलता है।

इस खेल में दो रेफरी होते हैं तथा दो रेखा निरीक्षक, साथ ही दो गोल निरीक्षक की भी व्यवस्था है।

इस खेल के लिए समय की व्यवस्था ३५-३५ मिनट के दो चक्रों की है। बीच में अधिक से अधिक ५ मिनट का अवकाश होना चाहिए। इसके अतिरिक्त दोनों दल के कप्तानों के आपसी समझौते से भी समय निर्धारित किया जाता है।

ओलंपिक खेलों की शृंखला में हाकी खेल भी सन् १९०८ में एक कड़ी की भाँति जोड़ा गया। १९२८ में पहली बार भारत ने इस खेल में भाग लिया तब से १९६० के पहले के ओलंपिक में भारत ने सर्वजेता का सम्मानित स्थान प्राप्त किया। इसका रिकार्ड निम्नलिखित है-

१९२८ भारत

१९३२ भारत

१९३६ भारत
१९४८ भारत
१९५२ भारत
१९५६ भारत
१९६० पाकिस्तान तथा भारत द्वितीय रहा।
१९६४ भारत तथा पाकिस्तान द्वितीय।

१९६८ पाकिस्तान, भारत का तृतीय स्थान।

इसके अतिरिक्त एशियाई खेल समारोह में भी भारत का स्थान सर्वोपरि रहा। विश्वमेला में १९६६ में हैंपबर्ग में भारत ने सर्वजेता का स्थान ग्रहण किया है।

भारतवर्ष में भी हॉकी की अच्छी प्रतियोगिताएँ होती हैं जिनमें 'नेशनल हॉकी चैंपियनशिप' १९२८ में प्रारंभ हुआ। (स्वर्गीय श्री रामस्वामी के यादगार स्वरूप 'रामस्वामी कप')। इसमें देश की अच्छी अच्छी टीमें भाग लेती हैं लेकिन मुख्य रूप से सर्विसेज, रेलवेज, पंजब पुलिस इत्यादि टीमों का स्थान सर्वोपरि है।

दूसरी प्रतियोगिता 'बेटन कप' (Beighton Cup) कलकत्ता की है जो १८६५ ई. में ही प्रारंभ की गई थी।

तीसरी प्रतियोगिता 'आगाखान कप', बंबई, के नाम से प्रसिद्ध है, जो १९३४ ई. में प्रारंभ की गई।

इसके अतिरिक्त महिलाओं के लिए भी वीमेंस नेशनल हॉकी चैंपियनशिप' (Women's National Hockey Championship) प्रतियोगिता होती है जिसमें प्रत्येक प्रदेश की महिला टीमें भाग लेती हैं। यह सन् १९३८ से प्रारंभ हुई।

नेहरू शील्ड प्रतियोगिता १९६२ से आरंभ हुई है जो दिल्ली में होती है। (भारत सिंह गौतम)