हाइड्रेज़ीन (Hydrazine) H2N-NH2 रंगहीन द्रव, क्वथनांक ११४.५� सें., गलनांक २.०� सें. जो कर्टियस द्वारा १८८७ ई. में पहले पहल तैयार हुआ था। आजकल राशिग विधि (Rashig Method) से यह तैयार होता है। इस विधि में यह जलीय अमोनिया या यूरिया को जिलेटीन या ग्लू की उपस्थिति में हाइपोक्रोइट के आधिक्य में ऑक्सीकरण से तैयार किया जाता है। यह अभिक्रिया १६०� १८०� से. ताप पर दबाव में संपन्न होती है और २% की मात्रा में हाइड्रेज़ीन बनता है जिसके आंशिक आवन द्वारा सांद्रण से ६०-६५% हाइड्रेज़ीन प्राप्त होता है। इससे बेरियम आक्साइड, दाहक सोडा या पोटाश द्वारा निर्जलीकरण से अजल हाइड्रेज़ीन प्राप्त हो सता है। अजल हाइड्रेज़ीन जल, मेथिल और एथिल ऐल्कोहॉल में सब अनुपात में मिश्र होता है। जलीय विलयन अमोनिया की अपेक्षा दुर्बल क्षारीय होता है, यह दो श्रेणी का लवण, क्लोराइड आदि, बनाता है। जलीय विलयन में हाइड्रेज़ीन प्रबल अपचायक होता है। ताँबे, चाँदी और सोने के लवणों से धातुओं को यह अवक्षिप्त कर देता है। द्वितीय विश्वयुद्ध में ईधंन के रूप में राकेट और जेट नोदक में यह प्रयुक्त हुआ था। इसको बड़ी सावधानी से संग्रह करने की आवश्यकता होती है क्योंकि यह सरलता से आर्द्रता, कार्बन डाइआक्साइड और ऑक्सीजन से अभिक्रिया देता है। इसके विलयन तथा वाष्प दोनों विषैले होते हैं। हाइड्रेज़ीन के वाष्प और वायु के मिश्रण जलते हैं।
हाइड्रेज़ीन के हाइड्रोजन कार्बनिक मूलकों द्वारा सरलता से विस्थापित होकर अनेक कार्बनिक संजात बनते हैं। एक ऐसा ही संजात फेनिल हाइड्रेज़ीन है जिसका आविष्कार एमिल फिशर ने १८७७ ई. में किया था। इसकी सहायता से उन्होंने कार्बोहाइड्रेटों के अध्ययन में पर्याप्त प्रगति की थी। हाइड्रेज़ीन का एक दूसरा संजात अम्ल हाइड्रेज़ाइड (RCO2 N2 H4) है जो अम्ल क्लोराइड या एस्टर पर हाइड्रेज़ीन की अभिक्रिया से बनता है। ऐसे दो संजात सेमी कार्बेज़ाइड, CO (NH2) N2 H3, और कार्बोहाइड्रेज़ाइड CO(N2 H3)2 हैं जिनका उपयोग वैश्लेषिक रसायन में विशेष रूप से होता है। (सत्येंद्र वर्मा)