हस्तलेखविज्ञान के अंतर्गत हस्तलेख का वैज्ञानिक परीक्षण आता है, जिसका मुख्य उद्देश्य यह निश्चित करना होता है कि कोई लेखव्यक्तिविशेष का लिखा हुआ है या नहीं।
हस्तलेख की पहचान - लेखनकला अर्जित संपत्ति है, जिसे मनुष्य अभ्यास से प्राप्त करता है। लेखक की मनोवृत्ति तथा उसकी मांसपेशियों के सहयोग के अनुसार उसके लेख में विशेषताएँ उत्पन्न हो जाती हैं। इन विशेषताओं के कारण प्रत्येक व्यक्ति का लेख अन्य व्यक्ति के लेख से भिन्न होता है। जिस प्रकार हम किसी मनुष्य की पहचान उसके सामान्य तथा विशिष्ट लक्षणों को देखकर कर सकते हैं उसी प्रकार किसी लेख के सामान्य तथा विशिष्ट लक्षणों की तुलना
चित्र सं. १ कत्ल के अभियुक्त की नोटबुक का एक पन्ना।
चित्र सं. २ - वह लेख जो अभियुक्त ने न्यायालय में नमूने का लेख देने से इन्कार करते हुए लिखा। दोनों लेख में समानताएँ देखें; जैसे अक्षर 'अ', 'ह', 'सि', 'श' आदि में।
करके हम उसे पहचान सकते हैं। मनुष्य के रंग, रूप, कद आदि उसके सामान्य लक्षण हैं तथा मस्सा, तिल, चोट के निशान, आदि विशिष्ट लक्षण हैं। इसी प्रकार लेख की गति, उसके प्रवाह की अबाधता, उसका झुकाव, कौशल तथा हाशिया, पंक्तियों की सिघाई आदि उसके सामान्य लक्षण हैं और अक्षरों के विभिन्न आकार विशिष्ट हैं। दो लेखों के इन्हीं दो प्रकार के लक्षणों का मिलान करके विशेषज्ञ इस निष्कर्ष पर पहुँचता है कि उनका लिखनेवाला एक ही व्यक्ति है या नहीं।
विशिष्ट लक्षण, जिनको हम व्यक्तिगत विशेषताएँ भी कह सकते हैं, दो प्रकार के होते हैं - प्रत्यक्ष तथा अप्रत्यख। प्रत्यक्ष विशेषताएँ उन प्रकट विशेषताओं को कहते हैं जो सामान्य लेखनप्रणाली से विशिष्ट रूप से भिन्न हों, जैसे कुछ लोग अक्षरविशेष को सामान्य आकार का न बनाकर किसी विशिष्ट आकार का बनाते हैं।
'अप्रत्यक्ष विशेषता' व्यक्तिविशेष के लेख में पुन: पुन: मिलनेवाली उस विशेषता को कहेंगे जिसकी ओर सामान्यतया ध्यान नहीं जाता है (देखिए चित्र सं.-४)। क्योंकि इनकी ओर प्राय: न उस लेखक का ध्यान होता है जो अपने लेख को छिपाने के लिए बिगाड़कर लिखता है, न उस जालसाज का ध्यान होता है जो दूसरे के लेख की नकल चाहता है, अत: लेख के पहचानने में इनका विशेष महत्व हो जाता है।
हस्तलेखविज्ञान के अंतर्गत लेखन सामग्री तथा प्रक्षिप्त, अर्थात् बाद में बढ़ाए गए, लेखों का परीक्षण भी आता है, क्योंकि इनसे भी लेख संबंधी प्रश्नों को हल करने में सहायता मिलती है।
विधि में स्थान - आजकल न्यायालय में यह विवाद बहुधा उठा करते हैं कि अमुक लेख किस व्यक्ति का लिखा हुआ है। ऐसी तथा अन्य तत्सदृश परिस्थितियों में हस्तलेख विशेषज्ञ की विशेष आवश्यकता होती है। सामान्यत: न्यायालय में किसी अन्य व्यक्ति की राय ग्राह्य नहीं होती है। किंतु ऐसी परिस्थिति में हस्तलेख विशेषज्ञ की राय भारत साक्ष्य अधिनियम की धारा ४५ के अधीन ग्राह्य होती है और उसका विशेष महत्व भी होता है। उक्त धारा ४५ के अधीन
चित्र सं. ३ - प्रत्यक्ष विशेषताएँ
'अ' तथा 'इ' के आकार, शब्द 'और' में मात्राओं का आकार, शब्द 'रामलाल' में 'ल' का आकार।
उन व्यक्तियों की राय भी ली जा सकती है जो उस व्यक्ति के लेख से सुपरिचित हों और उसे पहचानने में अपने को समर्थ कहें।
'त' के गोले का डंडे से अधिक नीचे की ओर मिलना, 'औ' की मात्राओं का समानांतर न होना, 'ह' के नीचे के छोर का बाईं ओर घूमना, तथा 'र' और 'स' में 'र' के नीचे की छोर का ऊपर की ओर घुमाव।
सं. ग्रं. - ए आसवर्न : क्वेश्चंड डाक्युमेंट्स; एफ बर्यूसटर : कंटेस्टेड डाक्यूमेंट्स ऐंड फोर्जरीज़; डोरीथी सारा : रीडिंग हैंडराइटिंग फ़ार फ़न ऐंड पाप्युलैरिटि : (सीयाराम गुप्त)