हर्शेल, सर (फ्रेडरिक) विलियम (Herschel, Sir Frederick William, सन् १७३८-१८२२), ब्रिटिश खगोलज्ञ, बैंड बजानेवाले एक जर्मन के पुत्र थे और आरंभ में नफीरी बजाने के काम पर जर्मन सेना में नियुक्त हुए। सन् १७५७ में ये इंग्लैंड में आ बसे और लीड्स नगर में पहले संगीतशिक्षा देने और तत्पश्चात् ऑर्गन बजाने का काम करने लगे।
खगोलविज्ञान में रुचि जागृत हो जाने पर, इन्होंने अपने अवकाश का सारा समय गणित और खगोलविज्ञान के अध्ययन में लगाना आरंभ किया। दूरदर्शी खरीदने के लिए धनाभाव के कारण, इन्होंने स्वयं पाँच फुट फोकस दूरी के न्यूटनीय परावर्तन दूरदर्शी का निर्माण किया तथा सन् १७७४ में आकाश का व्यवस्थित निरीक्षण आरंभ किया। लगभग सात वर्ष के निरीक्षण के बाद, आकाश में इन्हें एक ऐसी नई वस्तु दिखाई पड़ी, जिसका बिंब चक्रिका रूप का था। अधिक जाँच करने पर सिद्ध हुआ कि यह एक ग्रह था। ऐतिहासिक काल में खोज कर निकाला जानेवाला यह प्रथम ग्रह था, जिसका नाम यूरेनस रखा गया। इस खोज के फलस्वरूप, हर्शेल रॉयल सोसायटी के सदस्य निर्वाचित किए गए, इनको कोपाली पदक प्रदान किया गया तथा दो सौ पाउंड की वार्षिक वृत्ति पर वे राजकीय खगोलज्ञ नियुक्त किए गए। तब से संगीत का धंधा छोड़कर, ये अपना सारा समय खगोल विज्ञान के अध्ययन में लगाने लगे।
हर्शेल नाक्षत्रीय खगोलविज्ञान के जनक थे। ये प्रथम खगोलज्ञ थे, जिन्होंने मुख्यत: नाक्षत्रीय निकाय का तथा उसके सदस्यों के आपसी संबंधों का अध्ययन आरंभ किया। अध्ययन के परिणामस्वरूप वे इस निश्चय पर पहुँचे कि नाक्षत्रीय निकाय कुम्हार के चक्के सदृश, चिपटित निकाय है और आकाशगंगा इसके विस्तार को प्रदर्शित करती है। तारों के समूहों और नीहारिकाओं पर आपने विशेष ध्यान दिया और इनकी सारणियाँ तैयार कीं। इन्हें विश्वास हो गया कि प्रदीप्त नीहारिकाओं में से कुछ ऐसी हैं जो सुदूर, मंद तारों के समूह नहीं है, वरन् तरल, दीप्त पदार्थ से भरी हैं। इन्हें अब गैसीय नीहारिकाएँ कहा जाता है। अन्य नीहारिकाओं को इन्होंने हमारे नक्षत्र निकाय के बाहर का बताया तथा द्वीप विश्वों की संज्ञा दी। इन्हें अब हम आकाशंगगा से बाहर स्थित, सर्पिल नीहारिकाएँ मानते हैं।
हर्शेल ने अनेक युग्म तारों का उल्लेख किया है। बाद में इनमें से कुछ के निरीक्षण से वे यह सिद्ध करने में समर्थ हुए कि वास्तव में इनमें से प्रत्येक तारों का जोड़ा है और इस जोड़े के तारे उभयनिष्ठ गुरुत्वकेंद्र के चतुर्दिक् घूर्णन करते हैं। इन्होंने यूरेनस तथा शानि के दो दो उपग्रहों का, तारों की आपेक्षिक द्युति का तथा इस बात का भी पता लगाया कि सूर्य, हरकुलीज नामक तारामंडल में स्थित एक बिंदु की ओर गतिमान है।
हर्शेल की इन अपूर्व सेवाओं के कारण, उन्हें सन् १८१६ में नाइट की उपाधि प्रदान की गई। (भगवान दास वर्मा)