हरिहर मध्ययुग के भारतीय इतिहास में हरिहर का नाम स्वर्णाक्षरों में लिखा जा चुका है। दक्षिण भारत के अंतिम हिंदू साम्राज्य विजयनगर राज्य के संस्थापकों में हरिहर अग्रणी थे। प्रारंभिक जीवन में वारंगल के राजा प्रतापरुद्र द्वितीय के कर्मचारी के रूप में हरिहर ने कुछ समय व्यतीत किया। मुसलमानी आक्रमण के कारण कांपिलि चले गए, जहाँ १३२७ ई. में बंदी बना लिए गए। दिल्ली जाकर इस्लाम धर्मावलंबी हो जाने पर वे सुल्तान के प्रियपात्र बन गए। कुछ समय पश्चात् सुल्तान ने इन्हें (छोटे भ्राता बुक्क के साथ) दक्षिण में बगावत दबाने का कार्यभार सौंपा। हरिहर ने सब लोगों के साथ सद्व्यवहार किया परंतु हिंदू संस्कृति की विनाशलीला ने उसके कोमल हृदय को द्रवित कर दिया। शीघ्र ही हिंदू धर्म को पुन: अंगीकार कर हरिकर ने १३३६ ई. में वैदिक रीति से अभिषेक संपन्न कर विजयनगर नामक राज्य की संस्थापना की।

अपने पिता संगम के पाँच पुत्रों में हरिहर का नाम सर्वोपरि माना जाता है। वह हरिहर प्रथम के नाम से सिंहासन पर बैठे। संगमवंश के अभिलेखों में वर्णन मिलता है कि हरिहर ने सम्राट् की पदवी धारण की तथा प्रभावहीन राजा से कार्यभार स्वयं ले लिया। अन्य लेखों में 'महामंडलेश्वर हरिहर होयसल देश में शासन करता है' ऐसा उल्लेख है। बहमनी सुल्तानों से युद्ध की परिस्थिति में हिंदू संस्कृति की रक्षा ही विजनगर राज्य की स्थापना का मूल उद्देश्य था।

हरिहर प्रथम की सत्ता को दक्षिण भारत के हिंदू राजाओं ने स्वीकार कर लिया। केंद्रीय शासन को सुदृढ़ करने की ओर इनका ध्यान था। नूनेज का कथन है कि 'मंत्रिमंडल' की सहायता से शासनकार्य संचालित हो रहा था। हरिहर प्रथम शैव थे, यद्यपि राज्य में अन्य मत भी पल्लवित होते रहे। हरिहर के जीवनचरित् से ज्ञात होता है कि विद्यारण्य स्वामी का उनपर विशेष प्रभाव था। १३५७ ई. में हरिहर ने अपने छोटे भ्राता बुक्क को राज्य का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। पश्चिमी तथा पूर्वी समुद्र के मध्य भूभाग पर राज्य विस्तृत करने में हरिहर प्रथम को अच्छी सफलता मिली। (कामिल बुल्के)