हरिराम व्यास भक्तप्रवर व्यास जी का जन्म सनाढ्यकुलोद्भव ओड़छानिवासी श्री सुमोखन शुक्ल के घर मार्गशीर्ष शुक्ला पंचमी, संवत् १५६७ को हुआ था। संस्कृत के अध्ययन में विशेष रुचि होने के कारण अल्प काल ही में इन्होंने पांडित्य प्राप्त कर लिया। ओड़छानरेश मधकरशाह इनके मंत्रिशष्य थे। व्यास जी अपने प्िाता की ही भाँति परम् वैष्णव तथा सद्गृहस्थ थे। राधाकृष्ण की ओर विशेष झुकाव हो जाने से ये ओड़छा छोड़कर वृंदावन चले आए। राधावल्ल्भ संप्रदाय के प्रमुख आचार्य गोस्वामी हितहरिवंश जी के जीवनदशर्न का इनके ऊपर ऐसा मोहक प्रभाव पड़ा कि इनकी अंतर्वृत्ति नित्यकिशोरी राधा तथा नित्यकिशोर कृष्ण के निकुंजलीलागान में रम गई। ऐसी स्थिति

चैतन्य संप्रदाय के रूप्ा गोस्वामी और सनातन गोस्वामी से इनकी गाढ़ी मैत्री थी। इनकी निधनतिथि ज्येष्ठ शुक्ला ११, सोमवार सं. १६८९ मानी जाती है।

इनका धार्मिक दृष्िटकोण व्यापक तथा उदार था। इनकी प्रवृत्ति दाशर्निक मतभेदों को प्रश्रय देने की नहीं थीं। राघावल्लभीय संप्रदाय के मूल तत्व - नित्यविहार दशर्न - जिसे रसोपासना भी कहते हैं - की सहज अभिव्यक्ति इनकी वाणी में हुई है। इन्होंने शृंगार के अंतर्गत संयोगपक्ष को नित्यलीला का प्राण माना है। राधा का नखिशख और शृंगारपरक इनकी अन्य रचनाएँ भी संयमित एवं मर्यादित हैं। 'व्यासवाणी' भक्ति और साहित्यिक गरिमा के कारण इनकी प्रौढ़तम कृति है। ये उच्च कोिट के भक्त तथा कवि थे। राघावल्लभोय संप्रदाय के हरित्रय में इनका वििशष्ट स्थान है।

कृतियाँ - व्यासवाणी, रागमाला, नवरत्न और स्वधर्म (दोनों संस्कृत तथा अप्रकािशत)।

सं. ग्रं. - पं. बलदेव उप्ााध्याय : भागवत संप्रदाय; श्री वासुदेव गोस्वामी : भक्त कवि व्यास जी; डॉ. विजयेंद्र स्नातक : राधावल्लभ संप्रदाय सिद्धांत और साहित्य। (रामबली पांडेय)