हरिकृष्ण 'जौहर' का जन्म काशी में संवत् १९३७ वि. को वर्तमान हिंदू स्कूल के सामने श्री सीताराम कृषिशाला में भाद्रपद ऋषिपंचमी को हुआ था। जौहर जी के पिता मुंशी रामकृष्ण कोहली काशी के महाराज ईश्वरीप्रसाद नारायण सिंह के प्रधान मंत्री थे। शैशव में ही जौहर के मातापिता का स्वर्गवास हो गया। आपकी प्रारंभिक शिक्षा फारसी के माध्यम से हुई। आरंभ में उर्दू में लिखने के कारण आपने उपनाम 'जौहर' रख लिया।
बाबू हरिकृष्ण के साहित्यिक जीवन का प्रारंभ भारतजीवनप्रेस की छत्रच्छाया में प्रारंभ हुआ। प्रेस के स्वामी बाबू रामकृष्ण वर्मा के अतिरिक्त उस समय के प्रमुख एवं श्रेष्ठ साहित्यकार पं. अंबिकादत्त व्यास, पं. नकछेदी तिवारी, लच्छीराम, रत्नाकर, कार्तिकाप्रसाद जी, पं. सुधाकर द्विवेदी तथा पं. किशोरीलाल गोस्वामी के संपर्क में आप आए। काशी से प्रकाशित होनेवाली मासिक पत्र मित्र', 'उपन्यास तरंग' तथा साप्ताहिक 'द्विजराज' पत्र का इन्होंने बहुत दिनों तक संपादन किया।
भारतजीवन प्रेस में काम करते समय आपने कुसुमलता नामक उपन्यास लिखा। काशी के समाज से विरक्ति होने पर आप बंबई वेंकटेश्वर सामाचारपत्र में सहायक संपादक के रूप में कार्य करने लगे। सन् १९०२ में आप कलकत्ते चले आए और वहाँ 'बंगवासी' के सहकारी संपादक के रूप में काम करने लगे। कालांतर में आप बंगवासी के प्रधान संपादक नियुक्त हो गए। कलकत्ते में जौहर जी ने बाबू दामोदरदास खत्री तथा बाबू निहाल सिंह की सहायता से हिंदी के प्रार व प्रसार के लिए नागरीप्रचारिणी सभा की स्थापना की।
बंगवासी में १७ वर्ष कार्य करने के पश्चात् जौहर सन् १९१८ ई. में नाटकों की दुनिया में चले आए। १९१९ ई. में आपने 'मदन थियेटर्स' में नाटककार के रूप में प्रवेश किया। सन् १९३१ में मदनथियेटर्र के स्वामी रुस्तम जी की मृत्यु होने पर आपने यह नौकरी छोड़ दी और फिर काशी चले गए। आपने खुदादास, माँ, कर्मवरी आदि फिल्मों की कथाएँ लिखी हैं। काशी में मामूरगंज से आपने हिंदी प्रेस से 'आधार' नामक एक साप्ताहिक पत्र निकाला।
पत्रकार के रूप में जौहर जी को काफी ख्याति मिली। युद्धसंबंधी समाचार आप बहुत ही सजीव देते थे। इस दिशा में ये कहा करते थे, हम केवल युद्ध लिखने के लिए ही पत्र का संपादन कर रहे हैं। पत्रकार के अतिरिक्त ये सफल उपन्यासकार भी थे। इनका 'कुसुमलता' नामक तिलस्मी उपन्यास देवकीनंदन खत्री की परंपरा में है। 'काला बाघ', 'गवाह गायब' लिखकर अपने जासूसी साहित्य में एक नए चरण की स्थापना की। जौहर जी का जीवन बड़ा सात्विक था। चाय सिगरेट से आपकी भारी नफरत थी। अपने जीवन के संबंध में आप प्राय: कहा करते थे - कागज ओढ़ना और बिछाना, कागज से ही खाना, कागज लिखते पढ़ते साधु कागज में मिल जाना।'
बबंई में जब आप वेंकटेश्वर समाचारपत्र के संपादक के रूप में कार्य कर रहे थे तभी आपकी ठोड़ी में साधारण सी चोट लग गई और इसी चोट के भयानक टिटनस रोग का रूप धारण कर लिया। अधिक अस्वस्थ होने पर १९ सितंबर १९४४ को काशी चले आए और यहीं ११ फरवरी, १९४५ में आपका स्वर्गवास हो गया। (गिरीशचंद्र त्रिपाठी)