'हरिऔध', अयोध्यासिंह उपाध्याय (सन् १८६५ से-१९४७ जन्मभूमि निजामाबाद (आजमगढ़, उ. प्र.)। प्रारंभिक शिक्षा आजमगढ़, इसके बद कुछ समय क्वींस कालेज (वाराणसी) में अंग्रेजी शिक्षा, तदुपरांत आजमगढ़ से नार्मल हुए। सन् २३-तक आजमगढ़ में कानूनगो रहे, वहाँ से अवकाश ग्रहण पर काशी विश्वविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक हुए। वहाँ से भी अवकाशग्रहण करने पर उनका शेष जीवन आजमगढ़ में व्यतीत हुआ।

'हरिऔध' जी भारतेंदु युग के अंतिम चरण के कवि थे। उन्हें उस युग में पर्यवसित मध्ययुग का काव्य साहित्य और उन्नीसवीं सदी का वह सार्वजनिक नवजागरण उत्तराधिकार में प्राप्त हुआ था, जो बीसवीं शताब्दी में परिपोषित और विकसित हुअ। एक रूढ़िपरायण ब्राह्मण परिवार में उत्पन्न होकर भी वे अपने संस्कारों में वैसे ही उदात्त थे जैसे अपनी प्रतिभा में, अतएव, जीवन की तरह ही उनकी रचनाओं में भी विविध युगों का समावेश मिलता है। व्रजभाषा से लेकर छायावाद तक उनकी कृतियों में काव्य की अनेक पद्धतियाँ हैं। काव्यशैली में ही नहीं, उनकी भाषा में भी अनेकरूपता है।

'हरिऔध' जी की कृतियों में सबसे पहले उनकी भाषा की ओर ही ध्यान जाता है। एक ओर उनकी भाषा सरलतम हिंदी है, जैसे 'ठेठ हिंदी का ठाट', 'अधख़िलाफूल', 'चोखे चौपदे', 'चुभते चौपदे', और बोलचाल' में, दूसरी ओर गहनतम संस्कृतनिष्ठ हिंदी, जैसे 'प्रियप्रवास' में।

'प्रियप्रवास' के लेखनकाल में ही 'हरिऔध' जी 'वैदेहीवनवास' लिखने के लिए प्रेरित हुए थे। 'प्रियप्रवास' संस्कृत के वर्णवृत्तों में था, 'वैदेहीवनवास' हिंदी के मात्रिक छंदों में है। 'प्रवास' और 'वनवास' से उनकी सुकोमल संवेदना अथवा करुण स्वभाव का परिचय मिलता है। इन काव्यों का कथानक पुराना होते हुए भी कथा का निरूपण और स्पंदन नया है। भाषा की दृष्टि से हरिऔध जी के सभी प्रयोगों (ठेठ हिंदी, प्रियप्रवास और चौपदों) का 'वैदेही वनवास' समवाय है।

पुराने विषयों में नवीनता का उन्मेष हरिऔध जी की विशेषता है। ब्रजभाषा में लिखा गया बृहत् काव्य 'रसकलश' यद्यपि लक्षणग्रंथ है, तथापि वह पुरानी परिपाटी का पिष्टपेषण मात्र नहीं है। उसमें कई नई उद्भावनाएँ हैं।

'पारिजात' हरिऔध जी का मुक्तक महाकाव्य है। मुक्तक इसलिए कि इसमें प्रकीर्णक उद्गार हैं, महाकाव्य इसलिए कि सभी उद्गार विषयक्रम से सर्गबद्ध हैं। इसे 'आध्यात्मिक और आधिभौतिक विविधविषय-विभूषित' कहा गया है। यह महाकाव्य 'हरिऔध' जी के संपूर्ण अध्ययन, मनन, चिंतन, का समाहार है। इसमें उनकी सभी तरह की भाषा, सभी तरह के छंदों और सभी तरह की काव्यशैलियों का संयोजन है।

हरिऔध जी ने बच्चों के लिए भी कविताएँ लिखी हैं। उपन्यास, नाटक, लेख, भाषण और भूमिका के रूप में उनका गद्य साहित्य भी पुष्कल है।

(शांतिप्रिय द्विवेदी)