हंटर, जान (सन् १७२८-९३ ई.), अंग्रेज शरीरविद् तथा शल्यचिकित्सक का जन्म लैनेर्कशिर के लांग कैल्डरवुड ग्राम में हुआ था। ये विद्यालय में बहुत कम शिक्षा पा सके१ १७ वर्ष की आयु में आलमारी बनाने के कारखाने में काम करने से जीविकोपार्जन आरंभ किया, पर तीन वर्ष बाद अपने बड़े भाई, विलियम हंटर, के शरीरविच्छेदन कार्य (dissection) में सहायता देने के लिए लंदन चले गए। सन् १७५४ में सेंट जॉर्ज अस्पताल से इनका संबंध हुआ, जहाँ दो वर्ष बाद में हाउस सर्जन नियुक्त हुए। सन् १७६० ई. में बेलआइल (Belleisle) के अभियान में स्टाफ सर्जन के पद पर गए। तत्पश्चात् पोर्चुगाल में सेना में कार्य कर, सन् १७६३ ई. में वापस आए तथा चिकित्सा व्यवसाय आरंभ किया।

प्रात: और रात्रि का समय विच्छेन और प्रयोगों में इन्होंने लगाना आरंभ किया। सन् १७६८ ई. में सेंट जॉर्ज अस्पताल में शल्यचिकित्सक नियुक्त हुए, इस बीच इन्होंने शल्य चिकित्सा के नियमों की जो परिकल्पनाएँ प्रस्तुत कीं, वे उनके समय के चिकित्सकों की शरीर संबंधी प्रचलित धारणाओं से अत्यग्रिम होने के कारण उनकी समझ में न आईं। सन् १७७२ ई. से इन्होंने शल्यचिकित्सा पर व्याख्यान देना आरंभ किया। सन् १७७६ ई. में इंग्लैंड के राजा, जार्ज तृतीय, के विशेष शल्यचिकित्सक नियुक्त हुए। सन् १७६७ ई. में रॉयल सोसायटी के सदस्य मनोनीत हुए तथा सन् १७७६ ई. से लेकर १७८२ ई. तक 'पेशीय गति' पर आपने व्याख्यान दिए। सन् १७८८ ई. में पॉट की मृत्यु के पश्चात् ब्रिटेन के सर्वश्रेष्ठ शल्यचिकित्सक माने जाने लगे।

हंटर ने अपने ज्ञान का विस्तार पुस्तकों से नहीं, वरन् निरीक्षण तथा प्रयोगों से किया। सन् १७६७ ई. में इनकी पिंडली की कंडरा (tendon) टूट गई थी तब इन्होंने कंडराओं की चिकित्सा का अध्ययन किया। इसी से आधुनिक अधस्त्वचीय कंडरोपचार का जन्म हुआ। 'मानव दंतों का प्राकृतिक इतिहास' शीर्षक से लिखे आपके ग्रंथ में सर्वप्रथम इस विषय के वर्तमान प्रचलित पदों का उपयोग हुआ जिससे दंतचिकित्सा में क्रांति आ गई। सन् १७७२ ई. में आपने 'मृत्युपश्चात् पाचन' और जैव शक्तिवाद पर महत्व के अपने विचार प्रकट किए। सन् १७८५ ई. में इन्होंने पाया कि यदि हरिण के शृंगाभ की मुख्य धमनी को बाँध दिया जाए, तो भी संपार्श्विक रक्तसंचरण इतना हो जाता हहै कि शृंग की वृद्धि हो सके। जानुपश्च उत्सफार (politeal ancurysm) विकृति के उपचार के लिए इन्होंने इसी नियम का उरु धमनी (temoral artery) के बंधन में उपयोग किया, जिससे इस प्रकार के रोगों की चिकित्सा का ढंग पूर्णत: बदल गया। जैव वैज्ञानिक तथा शरीरक्रियात्मक प्रयोगों से संबंधित आपने अनेक लेख लिखे। 'रक्त, शोथ तथा बंदूक के घाव' पर भी अपने प्रयोगों के आधार पर आपने एक ग्रंथ लिखा।

हंटर का सबसे बड़ा स्मारक वह संग्रहालय है, जिसकी आकल्पना इन्होंने सरलतम से लेकर जटिलतम वानस्पतिक और जंतुजगत् के तुलनात्मक अध्ययन के लिए की। इनकी मृत्यु के समय इसमें १३,६०० परिरक्षित द्रव्य थे, जिनपर इन्होंने लगभग दस लाख रुपए खर्च किए थे।

जॉन हंटर को आधुनिक शल्यचिकित्सा का संस्थापक माना जाता है। जैवविज्ञान के क्षेत्र में शीतनिष्क्रियता, मधुमक्खियों का स्वभाव, रेशम के कीड़े का जीवन, अंडों का परिपाक, पक्षियों के वायुकोष, मछलियों के विद्युतांग, पौधों के ताप और जीवाश्म संबंधी इनकी खोजें तथा जीवन के गुप्त ताप से संबंधित सिद्धांत आदि इनके श्रेष्ठ वैज्ञानिक होने के प्रमाण हैं। (भगवान दास वर्मा)