स्वेज नहर लाल सागर और भूमध्य सागर को संबंद्ध करने के लिए सन् १८५९ में एक फ्रांसीसी इंजीनियर की देखरेख में इस नहर का निर्माण शुरु हुआ था। यह नहर आज १६५ किमी लंबी, ४८ मी चौड़ी और १० मी गहरी है। दस वर्षों में बनकर यह तैयार हो गई थी। सन् १८९६ में यह नहर यातायात के लिए खुल गई थी। पहले केवल दिन में ही जहाज नहर को पार करते थे पर १८८७ ई. से रात में भी पार होने ले। १८६६ ई. में इस नहर के पार होने में ३६ घंटे लगते थे पर आज १८ घंटे से कम समय ही लगता है।
इस नहर का प्रबंध पहले 'स्वेज कैनाल कंपनी' करती थी जिसके आधे शेयर फ्रांस के थे और आधे शेयर तुर्की, मिस्र और अन्य अरब देशों के थे। पीछे मिस्र और तुर्की के शेयरों को अंग्रेजों ने खरीद लिया। १८८८ ई. में एक अंतरराष्ट्रीय उपसंधि के अनुसार यह नहर युद्ध और शांति दोनों कालों में सब राष्ट्रों के जहाजों के लिए बिना रोकटोक समान रूप से आने जाने के लिए खुली थी। इस नहर पर किसी एक राष्ट्र की सेना नहीं रहेगी, ऐसा करार था, पर अंग्रेजों ने १९०४ ई. में इसे तोड़ दिया और नहर पर अपनी सेनाएँ बैठा दीं और उन्हीं राष्ट्रों के जहाजों के आने जाने की अनुमति दी जाने लगी जो युद्धरत नहीं थे। १९४७ ई. में स्वेज कैनाल कंपनी और मिस्र सरकार के बीच यह निश्चय हुआ कि कंपनी के साथ ९९ वर्ष का पट्टा रद हो जाने पर इसका स्वामित्व मिस्र सरकार के हाथ आ जाएगा। १९५१ ई. में मिस्र में ग्रेट ब्रिटेन के विरुद्ध आंदोलन छिड़ा और अंत में १९५४ ई. में एक करार हुआ जिसके अनुसार ब्रिटेन की सरकार कुछ शर्तों के साथ नहर से अपनी सेना हटा लेने पर राजी हो गई। पीछे मिस्र ने इस नहर का राष्ट्रीयकरण कर इसे अपने पूरे अधिकार में कर लिया।
इस नहर के कारण यूरोप से एशिया और पूर्वी अफ्रीका का सरल और सीधा मार्ग खुल गया और इससे लगभग ६,००० मील की दूरी की बचत हो गई। इससे अनेक देशों, पूर्वी अफ्रीका, ईरान, अरब, भारत, पाकिस्तान, सुदूर पूर्व एशिया के देशों, ऑस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड आदि देशों के साथ व्यापार में बड़ी सुविधा हो गई है और व्यापार बहुत बढ़ गया है। (रामसहाय खरे)