स्वर्ग (ईसाई दृष्टि से) ईसाई विश्वास के अनुसार मनुष्य की सृष्टि इस उद्देश्य से हुई थी कि वह कुछ समय तक इस संसार में रहने के बाद सदा के लिए ईश्वर के परमानंद का भागी बन जाए। ईश्वर के इस विधान में पाप के कारण बाधा उत्पन्न हुई किंतु ईसा ने सभी पापों का प्रायश्चित्त करके मानव जाति के लिए मुक्ति का मार्ग प्रशस्त किया है (दे. मुक्ति)। जो मनुष्य मुक्ति का अधिकारी बनकर मरता है वह स्वर्ग पहुँच जाता है, अत: स्वर्ग मुक्ति की उस परिपूर्णता का नाम है, जिसमें मनुष्य ईश्वर का साक्षात्कार पाकर ईसा तथा स्वर्गदूतों के साथ ईश्वरीय परमानंद का भागी बन जाता है।
बाइबिल की प्रतीकात्मक शैली में स्वर्ग अथवा पैराडाइज को ईश्वर के निवासस्थान के रूप में चित्रित किया गया है (दै. पैराडाइज) किंतु कहाँ तक उसे एक निश्चित स्थान मानना चाहिए, यह स्पष्ट नहीं है। इतना ही निश्चित है कि स्वर्गवासी मनुष्यों का शरीर महिमामंडित है, वह क्षुद्र भौतिक आवश्यकताओं तथा इंद्रियग्राह्य सुखों के ऊपर उठ चुका होता है और एक अनिर्वचनीय आध्यात्मिक आनंद में विभोर रहता है। (कामिल बुल्के)