स्वतंत्रता की घोषणा (अमरीकी) (४ जुलाई, १७७६ ई.) अमरीका के निवासियों ने ब्रिटिश शासनसत्ता के अधिकारों और अपनी कठिनाइयों से मुक्ति पाने के लिए जो संघर्ष सन् १७७५ ई. में आरंभ किया था वह दूसरे ही वर्ष स्वतंत्रता संग्राम में परिणत हो गया। इंगलैंड के तत्कालीन शासक जॉर्ज तृतीय की दमननीति से समझौते की आशा समाप्त हो गई और शीघ्र ही पूर्ण संबंधविच्छेद हो गया। इंगलैंड से आए हुए उग्रवादी युवक टॉमस पेन ने अपनी पुस्तिका 'कॉमनसेंस' द्वारा स्वतंत्रता की भावना को और भी प्रज्वलित किया। ७ जून, १७७६ ई. को वर्जीनिया के रिचर्ड हेनरी ली ने प्रायद्वीपी कांग्रेस में यह प्रस्ताव रखा कि उपनिवेशों को स्वतंत्र होने का अधिकार है। इस प्रस्ताव पर वादविवाद के उपरांत 'स्वतंत्रता की घोषणा' तैयार करने के लिए ११ जून को एक समिति बनाई गई, जिसने यह कार्य जेफ़रसन को सौंपा। जेफ़रसन द्वारा तैयार किए गए घोषणापत्र में ऐडम्स और फ्रैंकलिन ने कुछ संशोधन कर उसे २८ जून को प्रायद्वीपी कांग्रेस के समक्ष रखा और २ जुलाई को यह बिना विरोध पास हो गया।

जेफ़रसन ने उपनिवेशिकों की कठिनाइयों और आवश्यकताओं का ध्यान रखकर नहीं, अपितु मनुष्य के प्राकृतिक अधिकारों के दार्शनिक सिद्धांतों को ध्यान में रखकर यह घोषणापत्र तैयार किया था जिसके निम्नांकित शब्द अमर हैं : 'हम इन सिद्धांतों को स्वयंसिद्ध मानते हैं कि सभी मनुष्य समान पैदा हुए हैं और उन्हें अपने स्रष्टा द्वारा कुछ अविच्छिन्न अधिकार मिले हैं। जीवन, स्वतंत्रता और सुख की खोज इन्हीं अधिकारों में है। इन अधिकारों की प्राप्ति के लिए समाज में सरकारों की स्थापना हुई जिन्होंने अपनी न्यायोचित सत्ता शासित की स्वीकृति से ग्रहण की। जब कभी कोई सरकार इन उद्देश्यों पर कुठाराघात करती है तो जनता को यह अधिकार है कि वह उसे बदल दे या उसे समाप्त कर नई सरकार स्थापित करे जो ऐसे सिद्धांतों पर आधारित हो और जिसकी शक्ति का संगठन इस प्रकार किया जाए कि जनता को विश्वास हो जाए कि उनकी सुरक्षा और सुख निश्चित हैं।'

इस घोषणापत्र में कुछ ऐसे महत्व के सिद्धांत रखे गए जिन्होंने विश्व की राजनीतिक विचारधारा में क्रांतिकारी परिवर्तन किए। समानता का अधिकार, जनता का सरकार बाने का अधिकार और अयोग्य सरकार को बदल देने अथवा उसे हटाकर नई सरकार की स्थापना करने का अधिकार आदि ऐसे सिद्धांत थे जिन्हें सफलतापूर्वक क्रियात्मक रूप दिया जा सकेगा, इसमें उस समय अमरीकी जनता को भी संदेह था परंतु उसने इनको सहर्ष स्वीकार कर सफलतापूर्वक कार्यरूप में परिणत कर दिखाया। जेफ़रसन ने ब्रिटिश दार्शनिक जॉन लॉक के 'जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति' के अधिकार के सिद्धांत को भी थोड़े संशोधन के साथ स्वीकार किया। उसने संपत्ति को ही सुख का साधन न मानकर उसे स्थान पर 'सुख की खोज' का अधिकार माँगकर अमरीकी जनता को वस्तुवादिता से बचाने की चेष्टा की, परंतु उसे कितनी सफलता मिली इसमें संदेह है। (चंद्रभूषण त्रिपाठी)