स्थानीय कर इन्हें स्थानीय संस्थाएँ जैसे नगरनिगम, नगरपालिकाएँ, जिलामंडल, सुधार प्रन्यास (improvement trusts), ग्रामसभाएँ तथा पंचायतें आरोपित एवं संगृहीत करती हैं। इन संस्थाओं का गठन एवं इनके अधिकार संसद एवं राज्य विधानमंडलों द्वारा बनाई विधियों के अनुसार होते हैं, इनके कराधिकार भी संविधानीय रूप में निश्चित न होकर विधियों एवं अधिनियमों में निर्धारित होते हैं। ये संस्थाएँ करारोपण तभी कर सकती हैं जब इन्हें इस विषय में अधिकार प्राप्त हों। ये संस्थाएँ वे कर लगाती हैं जो संविधान की सप्तम अनुसूची में दी हुई राज्यसूची में निहित हैं और राज्य मंडलों ने इन्हें सौंप दिया है। इन करों में निम्न कर शामिल हैं-

१.����� भूमि और भवनकर,

२.����� स्थानीय क्षेत्र में उपभोग, प्रयोग या विक्रय के लिए वस्तुओं के प्रवेश पर कर,

३.����� मार्ग उपयोगी यानों पर कर,

४.����� पशुओं और नौकाओं पर कर,

५.����� पथकर (tolls),

६.����� वृत्तियों, व्यापारों, आजीविकाओं और नौकरियों पर कर,

७.����� विलास, आमोद विनोद कर तथा

८.����� प्रतिव्यक्ति कर (capitation tax) इत्यादि।

राज्यों में ग्रामसभाएँ और पंचायतें प्राय: सामान्य संपत्तिकर, व्यवसायकर, पशु तथा वाहनकर लगाती हैं। वे राज्य सरकारों को भूराजस्व (land revenue) के संग्रहण कार्य में सहायक होती हैं, और भूराजस्व पर लगनेवाले कर लगाती भी हैं। जिला मंडलों के कराधिकार सीमित होते हैं। वे बहुधा उपकर लगाते हैं। संपत्तिकर वे नहीं लगाते। नगरनिगम और नगरपालिकाएँ अधिक कर लगाती हैं। इन करों में भूमिकर, भवनकर स्थानीय उपभोग कर, स्थानीय प्रयोग तथा विक्रय हेतु स्थानीय क्षेत्र में लाई हुई वस्तुओं पर कर, मार्ग उपयोगी वाहनकर, पशुकर, पथकर, वृत्तीय कर, आमोद-प्रमोद कर, प्रतिव्यक्ति कर इत्यादि सम्मिलित हैं। अधिकांश नगरनिगमों तथा नगरपालिकाओं का राजस्वस्रोत संपत्तिकर (गृहकर) और जलकर है। संपत्तिकर अचल संपत्ति पर लगता है। कर की राशि संपत्ति के वार्षिक मूल्य अथवा पूंजीगत मूल्य पर आधारित होती है, पर पूँजीगत मूल्य पर कर स्थानीय संस्थाएँ नहीं लगा सकतीं, क्योंकि ऐसा कर राज्यसूची में उल्लिखित नहीं है और केवल संसदीय विधि के अंतर्गत आधारित एवं संगृहीत किया जा सकता है। स्थानीय संस्थाओं द्वारा प्राधारित संपत्ति-कर-राशि बहुधा भवनों के नियंत्रित किराए के आधार पर निश्चित की जाती है। तमिलनाड राज्य में ग्रामपंचायतें मकान के कुर्सीक्षेत्र एवं बनावट की किस्म के आधार पर भी संपत्ति कर आरोपित करती हैं।

प्रत्येक राज्य में नगरपालिकाएँ आमोद-प्रमोद-कर नहीं लगातीं, पर कुछ राज्यों में जैसे महाराष्ट्र में, उन्हें यह अधिकार प्राप्त है। दिल्ली नगरनिगम के अधिकार बंबई नगरनिगम तथा कलकत्ता नगरनिगम के से विस्तृत हैं। स्थानीय संस्थाएँ संपत्तिकर धार्मिक स्थानों, मंदिरों मस्जिदों, गिरजाघरों, गुरुद्वारों आदि के भवनों पर नहीं लगातीं। दिल्ली में यह धर्मशालाओं तथा अन्य ऐसे स्थानों पर से उठा लिया गया है। कोई भी स्थानीय कर, प्रतिरक्षा दलों सदस्यों से संगृहीत नहीं किया जाता (स्थानीय संस्थाएँ कर अधिनियम १८८१)। कर भारत सरकार की संपत्ति पर आम तौर से नहीं लग सकता, यदि संविधान के पूर्वकाल में भारत सरकार की किसी संपत्ति पर कर लगता था, तो अब भी लग सकता है, पर कोई नया कर लगाने के पूर्व संसद् की अनुमति आवश्यक है; और संसदीय विधि के अनुसार और रीति से लग सकता है (अनुच्छेद २८५)। (मंगलचंद्र जैन कागजी)