स्कैंडिनेविअन भाषाएँ और साहित्य अगर भारतीय भाषाओं के बारे में यह कहा जाता है कि वह भारोपीय भाषापरिवार के दक्षिणपूर्वी भाग में उत्पन्न हुई है तो नॉर्डिक या स्कैंडिनेविअन भाषाओं के लिए यह कहना उचित होगा कि वह उसके विपरीत भाग अर्थात् उत्तरपश्चिम से आई हैं। नॉर्डिक भाषाएँ जर्मन भाषासमुदाय से संबंधित हैं और तदनुसार जर्मन उमलाउट इन भाषाओं में भी पाए जाते हैं। प्रथम शताब्दी में नॉर्डिक भाषाओं ने पृथक् होकर अपना नया समुदाय बनाया। पुराने २४ अक्षरों की वर्णमाला में लिखे हुए शिलालेख, फिनलैंड और लैपलैंड की भाषाओं में उधार लिए गए हुए और अनेक शताब्दियों तक बिना परिवर्तन के रक्षित शब्द, सीजर और टॅकिटस जैसे प्राचीन प्रसिद्ध लेखकों द्वारा दिए हुए निर्देश आदि, इन सबसे यह समझा जाता है कि उस वक्त संपूर्ण नॉर्डिक क्षेत्र में, अर्थात् डेन्मार्क और स्कैंडिनेविया के प्रायद्वीप में एक ही भाषा बोली जाती थी। यह भाषा तब पुरानी जर्मन भाषा के समान थी लेकिन छठी शताब्दी के बाद उसमें बहुत परिवर्तन हुआ और वह अंशत: पश्चिम जर्मन तथा कुछ अंश तक पूर्वी जर्मन - जिसमें चौथी शताब्दी में लिखे हुए साहित्य की भाषा गोथिक सबसे प्रधान है-भाषासमुदाय से अलग हुई। वाइकिंग लोगों के समय में (८००-१००० ई.) नॉर्डिक भाषा के दो प्रधान विभाग किए गए - पश्चिमी नार्डिक (प्राचीन नॉर्वेजिअन और प्राचीन आइसलैंडिक) तथा पूर्वी नॉर्डिक (प्राचीन स्वीडिश और प्राचीन डेनिश)। बारहवीं शताब्दी में लिखे हुए साहित्य के अंश (लैटिन अक्षरों में लिखे हुए चर्मपत्र) आज प्राप्त हैं। किंतु पूर्वी नॉर्डिक साहित्य के अवशेष सौ साल बाद के हैं।

प्राचीन आइसलैंडिक भाषा वह पश्चिमी नॉर्डिक भाषा है जिसे ८७०-९३० ई. के मध्य आइसलैंड के पहले बसनेवाले अपने साथ वहाँ ले गए। यह भाषा बहुत मामूली परिवर्तन के बाद आज भी आइसलैंड के प्रजातंत्र राज्य के १,८०,००० लोगों की राष्ट्रीय भाषा बनी हुई है। इसके बाद पश्चिमी नॉर्वेजिअन प्रांतीय भाषा और फारो द्वीप की भाषा का स्थान है। पश्चिमी नॉर्डिक भाषा पहले से शेटलैंड द्वीप, ओर्कनी द्वीप, आइल ऑव मैन और आयरलैंड के कुछ भागों में बोली जाती थी। उसी प्रकार से प्राचीन डेनिश इंग्लैंड के डानलेगमन भाग में और नॉरमंडो में तथा प्राचीन स्वीडिश रूस के वाइकिंग लोगों में बोली जाती थी। वाइकिंग लोगों की और मध्युयग की भाषा आज हमको हजारों प्राप्त शिलालेखों के ७६ अक्षरों की वर्णलिपि में देखने को मिलती है। प्राप्त शिलालेख साधारणतया मृत संबंधियों के स्मारकचिह्न हैं और इस कारण वे कुछ अंश में एक ही ढंग के हैं। लेकिन रुवे शिलालेख में पुराने काव्य ही सुरक्षित हैं। आधुनिक नॉर्डिक भाषाएँ बाद में मध्ययुग की प्राचीन भाषाओं से विस्तृत की गईं। आज नॉर्डिक भाषासमुदाय में उपर्युक्त आइसलैंडिक और फारो द्वीप की भाषाओं के अतिरिक्त डेनिश, स्वीडिश और नॉर्वेजिअन भाषाओं का समावेश मिलता है। नॉर्वेजिअन भाषा के १९२९ ई. से दो विभाग अधिकारपूर्वक किए गए। वे हैं लिखने की भाषा (जिसको प्रमाणभाषा भी कहा जाता है), प्रांतिक और नई नॉर्वेजिअन (अर्थात् प्रांतिक भाषा)।

डेनिश भाषा - मध्ययुग में १८१४ (?) तक नार्वे डेन्मार्क से संयुक्त था और डेनिश शीघ्र ही साहित्य की प्रधान भाषा बन गई। रूपांतरित डेनिश सुशिक्षित लोगों की, विशेषकर नॉर्वे के पूर्वी और दक्षिणी भाग के शहरों में बोलचाल की भाषा बन गई। उन्नीसवीं शताब्दी में राष्ट्रीय आंदोलन की लहर में, विशेषकर पश्चिमी प्रांतीय भाषाओं पर आधारित शुद्ध नॉर्वेजिअन भाषा बनाने की कल्पना को प्रेरणा मिली। इसमें सबसे प्रधान है 'इवार आसेन' का १८४८ का लिखा हुआ शब्दशास्त्र और १८५० में लिखा हुआ शब्दकोश। आज ३५ लाख से अधिक लोग नॉर्वेजिअन भाषा बोलते हैं। डेनिश भाषा पहले रुने डेनिश, फिर प्राचीन डेनिश और बाद में नई डेनिश बन गई। मध्ययुग और उसके बाद के समय में डेनिश भाषा में कुछ विशिष्टताएँ उत्पन्न हो गईं जिससे डेनिश भाषा सनातनी स्वीडिश भाषा से अलग हो गई। यिल्लांड की भाषा, प्रधान द्वीप की भाषा (जिसपर लिखने की भाषा प्रमुख रूप से आधारित है) और पूर्वी डेनिश (बोर्नहोल्म और स्कोने विभाग की) इन प्रांतीय भाषाओं से मिलकर डेनिश भाषा बनी हुई है। १५५० ई. में तीसरे क्रिस्तियान की लिखी हुई बाइबिल से डेनिश भाषा के व्यवहार को डेन्मार्क और नॉर्वे में बहुत महत्व प्राप्त हुआ। आज जर्मन भाषा के संबंध में सीमारेखा फ्लेन्सबुर्ग के समुद्र की चट्टानों से घिरे हुए मार्ग से (फिओर्ड) विडोस के उत्तर महासागर के निकास तक मानना उचित होगा। अब डेनिश भाषा ४७ लाख लोगों में बोली जाती है।

स्वीडिश भाषा - स्वीडिश भाषा १२२५ ई. तक रुने स्वीडिश, १५२६ ई. तक - जब बाइबिल का नया टेस्टामेंट प्रकाशित हुआ - प्राचीन स्वीडिश और उसके बाद नई स्वीडिश में मौजूद है। प्राचीन समय से स्वीडिश भाषा आज के स्वीडन के बाहर भी बोली जाती है, जैसे ओलांड और फिनलैंड के किनारे पर। आज स्वीडिश लगभग ७० लाख लोग बोलते हैं। इसमें से ३,००,००० लोग फिनलैंड में हैं। १८५० ई. के बाद प्रथम महायुद्ध तक स्कैंडिनेविया से उत्तर अमरीका को जो विशाल परदेशगमन हुआ, उसकी वजह से आज तक वहाँ कम से कम १० लाख लोग अंग्रेजी के साथ नॉर्डिक भाषाएँ ही बोलते हैं।

आइसलैंड का साहित्य - प्राचीन आइसलैंडिक साहित्य अंशत: काव्यमय (भाटों का काव्य और एड़ा महाकाव्य) तथा अंशत: गद्यरूप (लोगों और उनके रिश्तेदारों के वृत्तांत, कहानियाँ, पौराणिक कथाएँ) है। सामान्य छंद में लिखे हुए अनुप्रासयुक्त से ८०० से १२०० ई. की अवधि में प्राचीन एड़ा महाकाव्य निर्मित हुआ है। तेरहवीं शताब्दी के प्रारंभ की इसकी हस्तलिखित प्रति प्राप्त है। एड़ा महाकाव्य का विषय अंशत: प्राचीन नॉडिक देवताओं और अंशत: महावीरों से संबंधित है। महावीरों से संबंधित काल में जर्मन आक्रमणकाल के साहित्य के अंश बचे हैं। 'हावामाल' में पुराने पांडित्य की रक्षा की गई है। आइसलैंड में प्राय: १००० ई. के थोड़े पहले लिखा हुआ 'वोलुप्सा' तेजस्वी महाकाव्य है। इसमें पृथ्वी के आरंभ और उसके नाश का विषय वर्णित है। प्राचीन एड़ा महाकाव्य का कुछ अंश नॉर्वे में लिखा गया और कुछ ग्रीनलैंड से प्राप्त है। भाट लोग विशेषत: राजदरबार से संबंधित थे और उनका काव्य महाराजाओं के रणसंग्राम के विषय में है। एगिल स्कालाग्रिमसन नॉर्डिक साहित्य का प्रथम मुख्य कवि (सोनातोरेक काव्य की वजह से) समझा जाता है। भाटों का काव्य अनेक काव्यमय वर्णनों से युक्त होने से बहुत ही सुंदर लगता है। यह बहुधा प्राचीन देवताओं की कथाओं की ओर संकेत करता है। तेरहवीं शताब्दी में आइसलैंड के क्रिस्तानी लोगों को यह काव्य समझने के लिए पौराणिक पाठ्यपुस्तकों की आवश्यकता पड़ी। इस तरह की एक रचना है 'स्नोरे स्तुर्लुसन' (१७८-१२४१) का लिखा महाकाव्य जिसमें शक्तिमान् देवता 'तोर' द्वारा राक्षसों के देश की यात्राओं और धूर्त 'लोके' तथा खूबसूरत 'फ्रेया' का वर्णन उत्साहपूर्ण शैली में है। स्नोरे प्राचीन आइसलैंड के गद्य साहित्य का प्रमुख लेखक समझा जाता है। उसने नवीं शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक के महाराजाओं की कथाएँ लिखी हैं। दूसरे लोगों और रिश्तेदारों के बारे में लिखी हुई कथाओं में एअरबिज्या, लाक्सडोएला और न्याल की कथा, इत्यादि उल्लेखनीय हैं। इन कथाओं में लिखी हुई घटनाएँ १००० ई. के आसपास की हैं किंतु उनको लिखित रूप सौ साल के बाद मिला। इनके ऐतिहासिक मूल्य पर अभी तक वादविवाद चल रहा है। चौदहवीं शताब्दी से आइसलैंड के साहित्य का अंत होने लगा। ब्यार्नी थोरारिनसन और यनास हालाग्रिमसन जैसे महान् लेखक उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्ध में हुए। आज आइसलैंड के प्रमुख साहित्यकार हैं हालडोर हाक्सनेस (जन्म १९०२, नोबेल पुरस्तकार १९५५)।

नॉर्वेजिअन साहित्य - मध्ययुग का नॉर्वेजिअन साहित्य 'कोंगस्पयेलेत' नामक राजकुमारों के लिए लिखी हुई पाठ्यपुस्तक और 'द्राउमक्वेदेत' नामक क्रिस्तनी धर्मकाव्य इत्यादि से बना है। इसके बाद की शताब्दी में नॉर्वे के साहित्य का भार प्रमुख रूप से डेन्मार्क और नॉर्वे में उत्पन्न हुए लेखकों पर था,-जैसे 'लुडविग होल बेरिय' (१६८४-१७५४) और 'जे. एच. वेसेल' (१५४२-८५) जो जीवन भर डेन्मार्क में कार्य करते रहे। फ्रेंच उच्च कोटि के साहित्य (मालिएर) और वृत्तांत (वोल्टेर) का सबसे प्रसिद्ध प्रतिनिधि है लुडविग होलबेरिंय, जो अपने 'देन डान्सके स्कुएप्लाड्स' के लिए लिखे आज तक खेले जानेवाले सुखांत नाटकों (येपो पो बेर्येत, देन पोलितिस्के कांदेस्तोबर इत्यादि) के लिए विशेष रूप से प्रख्यात है। नार्वे के डेन्मार्क से स्वतंत्र होने के बाद वहाँ प्रथम 'वेलहावेन' और वेर्गेलांड जैसे काव्यों से राष्ट्रीय साहित्य का प्रारंभ हुआ। शताब्दी के मध्य तक 'आस ब्योनंसेन' और 'भो' ने शुद्ध लोककथासंग्रह 'नोर्स्के फोल्के रार्वेंतुर' प्रस्तुत किया। उन्नीसवीं शताब्दी के अंतिम वर्षों को नार्वे के साहित्य का स्वर्णयुग कहा जाता है, जिसमें 'ए. कीलान्ड' और 'जे. ली' जैसे गद्य लेखक और प्रमुख रूप से 'एच. इब्सेन' (१८२८-१९०६) और 'बी. ब्योर्नसन' (१८३२-१९१०, नोबेल पुरस्कार १९०३) जो लोककहानियों (फोरनेलिंगर) के भी प्रसिद्ध लेखक हैं - जैसे नाटककार और कवि हुए। इब्सेन के नाटक, विशेषकर उसके ललित, मनोवैज्ञानिक नाटक, समाज की आलोचना करनेवाले समकालीन नाटकों (विल्दांदे, हेड़ा गेबलर, एन फोल्कफिरांडे) तथा अन्य यूरोपीय नाटकों के लिए यथेष्ट प्रभावकारी थे। 'नूट हामसुन' (नोबेल पुरस्कार १९२०) के ग्रंथ मौलिक जीवनपूजा और कलापूर्ण चैतन्य से भरे हुई हैं। मध्ययुग में लिखा गया 'सिग्रीद उंदसेन' का (नोबेल पुरस्कार १९२८) 'क्रिस्तीन लावरांस दात्तर' ललित तथा मानसशास्त्रीय अनुभवों से भरा ग्रंथ है जिसमें स्त्री जाति का वर्णन है। ओलाव दून आरनुल्फ ओवर लांद, एस, होएल, नोरदाल, ग्रीग इत्यादि नॉर्वे के उत्तरकाल के कवि हैं।

डेनमार्क का साहित्य - मध्ययुगीन डेन्मार्क के सबसे प्रधान साहित्य ग्रंथ हैं डेन्मार्क के वीररसकाव्य, जो स्वीडन और नार्वें में भी प्रस्तुत हुए और जिनको पाँच सौ साल बाद अद्भुत साहित्यविचार के उदय के समय बहुत महत्व प्राप्त हुआ। अद्भुत काव्य के प्रतिनिधि हैं 'ए उहलेनश्लेनगर' (अल्लादिन,' 'हाकोन 'मार्ल'), 'ग्रुंडात्विग', और 'जे. एल. हैबर्ग'। एस. किर्केगार्ड (एंतेन एलर), जिसको यूरोप में बड़ी लोकप्रियता मिली, सत्य का दृढ़ लेखक था। बच्चों के लिए लिखी गई किंतु गंभीर और जीवन के मर्मभेदी परिज्ञान से युक्त एच. सी. ऐंडरसन की साहस कथाएँ (१८३५-१८७२) जगत्प्रसिद्ध हैं। आधुनिक समाज की समालोचना करनेवाले 'जॉर्ज ब्राडेंस' (हुवेद स्त्रमनिंगार १८७३), अद्भुत कथालेखक 'जे. पी. याकोबसेन' (नील्स लिहने १८८०) और 'हरमान बांग' (हाबलोसे स्लेग्नर १८८९) आदि के साहित्य से हुआ। कवि एच. द्राकमान, उपन्यास लेखक 'एच. पोंतेप्पिदान' (नोवेल पुरस्कार १९१७) 'जे. वी. येनसेन' (नोबेल पुरस्कार १९४४), एम. ऐंडरसननेक्षो (सुधारक समाज समालोचक पेले एरेब्रेरेन १९१०) आदि अन्य साहित्यकार हैं। लघुकथा लेखक हैं 'करेन ब्लिक्येन', नाटककार 'काय भुंक' और लोककथाओं का यथार्थ वर्णन करनेवाले 'मार्टिन ए. हानसेन'।

स्वीडन का साहित्य - स्वीडन के मध्यकालीन साहित्य में प्राचीन धारा (एल्द्रे वेस्तयोना लागेन, तेरहवीं शताब्दी) इतिहास, वर्णन (एरिक्स क्रोनिकान, १४वीं शताब्दी के आरंभ से), काव्य, वीरकाव्य और धार्मिक साहित्य का समावेश होता है। साहित्य का प्रधान लेखक है 'पवित्र बिगिंत्ता' (१४वीं शताब्दी) जिसका लिखा 'उप्पेनबारेल्सेर' प्रमुख रूप से लैटिन भाषा में लपेटा हुआ है। गुस्ताव वासा की १५४१ में लिखी बाइबिल भाषा और साहित्य दोनों की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। स्वीडिश साहित्य को प्राचीन नमूने पर लिखा कलापूर्ण काव्य 'जी. स्तिएर्नहिएल्म' ने (हर्क्युलिस १६४८) प्रदान किया। 'ओ. बी. ढालिन (आर्गस १७३२) और 'जे. एच. मेंकेलग्रेन' (मृत्यु १७९५) के साहित्य पुराने फ्रेंच साहित्य की झलक और वृत्तांत अभिव्यक्त हुआ। पक्षपातहीन कल्पनाप्रधान कवि थे 'सी. एल. बेलमान' (१७४०-१७९५) जिन्होंने 'फ्रेदमांस एपिस्तलार' में एक अमर विलासियों के समुदाय का चित्रण किया। नागरिक सत्य और तीक्ष्ण सामाजिक परिहासपूर्ण लेख लिखे हैं कवियत्री 'ए. एम. लेनग्रेन' ने। अद्भुत साहित्य में प्रमुख हैं कवि 'इ. टेंगनेर' (फ्रत्यौफ़्स सागा १८२५), 'इ. जी. गैयर', 'पी. डी. ए. आत्तरबुम' और ई. जे. स्तोग्नेलियुस'। 'सी. जे. एल. अल्मक्विस्त' के (तोर्नरोसेन्स बूक १८३२-५१) साहित्य में नागरिक सत्यकथा तक हुआ गमन प्रस्तुत है। ध्येयवाद और नूतन शास्त्रीय पांडित्य का वर्णन 'बी. रिदबेरिय' ने (१८२८-१८९५) किया है। प्राकृतिक नियमों के सिद्धांत का प्रमुख प्रतिनिधि है 'ए. स्मिंदबेरिय' १८४९-१९१२ रदा रुमेन, हेमसोबुर्ना) जो नॉर्डिक साहित्य में सबसे बड़ा नाटककार (मेस्तर ओलोफ, एन द्रमस्पेल, तिल दमास्कस) है। १८९० के बाद कवि 'वी. व. ह्वाइडेनस्ताम' (कारोलीनर्ना, नाबेल पुरस्कार १९०९), 'इ. ए. कार्लफेल्ट' (नोबेल पुरस्कार १९३१)' और स्वीडिश साहित्य के सबसे बड़े कवियों में से एक 'जी फ्रेडिग'-इन जैसे राष्ट्रीय साहित्यकारों का उदय हुआ। बाद के साहित्यिकों में विशेषकर 'ह्यालमार बेरियमान' 'बी. शोबेरिय' (१९२४ में 'क्रीसर ओक क्रान्सर' लिखकर स्वीडिश कविता को पुनर्जन्म प्रदान करनेवाले) 'पेर लागरक्विस्न' (नोबेल पुरस्कार १९५१), 'एच मार्टिनसोन' (अनियारा १९५६), 'ह्यालमार गुलबेरिय' इत्यादि का समावेश किया जाता है। स्वीडिश भाषा में लिखनेवाले फिनलैंड के साहित्यिकों में प्रधान हैं 'जे. एल. रुनेबेरिय' (फेनरिक स्लोल्स सेमर १८४८-६०)। बाद के समय के कवि 'ई. डिकनोनियस' 'जी. ल्योर्लिग' और 'इडिथ सदरग्रान' इत्यादि हैं।