सोवियत संघ में कला सोवियत प्रदेश में खोज से प्राप्त आद्य स्मारक पाषणयुग का निर्देश करते हैं। यह मध्य एशिया तथा देश के अन्य बहुतेरे भागों में प्राप्त चट्टानों पर उत्कीर्ण चित्रण तथा छोटी मूर्तियाँ थीं। ईसा के पूर्व तीसरी और दूसरी सहस्राब्दियों में नीपर डिस्ट्रिक्ट और मध्य एशिया मिट्टी के बर्तनों के चित्रण के लिए प्रसिद्ध थे, और मध्य एशिया तथा काकेशस के कारीगरों ने मूल्यवान धातुओं के सुंदर अलंकार तैयार किए थे। ईसा पूर्व प्रथम सहस्राब्दी तथा ईसा की आरंभिक शतियों में कला उन प्रदेशों में फल फूल रही थी जो अब सोवियत संघ के दक्षिण प्रदेश कहे जाते हैं। कृष्णसागर तट के उत्तर में रहनेवाले सीथियनों के सजातीय अल्ताई फिकें के मृतक स्तूपों में एक कंबल मिला जो संसार में सबसे पुराना समझा जाता है तथा जिसकी रूपाकृति के घुड़सवार और रेनडीयर बने थे। अलंकार निर्माण, चित्रकला और मूर्तिकला कृष्णसागर तट के प्राचीन नगरों में उत्कर्ष पर थी। ट्रांस काकेशस में उशर्तू राज्य, जहाँ दास रखने की प्रथा प्रचलित थी, अपने सुंदर काँसे के काम के लिए प्रसिद्ध था। मध्य एशिया के कारीगर मिट्टी, पत्थर और हाथीदाँत के स्मृतिशिल्प बनाते थे। इन लोगों के कुछ भाग यूनानी बाख्त्री राज्य, पार्थिया, और कस्साइ राज्य के अधीन थे। खोरेज्म राज्य को अपनी स्मारक चित्रकला पर गर्व था जिसके बाद के युग के कुछ नमूने कुछ एशिया के दूसरे भागों में पाए गए हैं।

सोवियत संघ के बहुत से लोगों की कला सामंतवादी युग में रूप ग्रहण करने लगी थी। रूसी, उक्रेनी और बेलोरूसी संस्कृति का आधार कीएव रूस की कला अपने उत्कर्ष पर १०वीं और १२वीं शती के बीच पहुँच गई थी। स्लाव जाति की प्राचीन कला से उत्पन्न होकर कीएव रूस की कला ने ईसाई धर्म के उद्भव के साथ साथ बैंजतिया कला के अनेक रूप और पद्धतियों को आत्मसात् किया। यह कीएव और नोवगोरोद में दक्षिण सोफिया के गिरजाघरों के मूल मौज़ैक और फ्रेस्थो में प्रत्यक्ष है। १२वीं और १३वीं शती में स्मारक और पवित्र प्रतिमा के चित्रण की स्थानीय प्रणालियाँ नोवगोरोद, ब्लादीमीर और रूस के कुछ अन्य नगरों में प्रारंभ हुई।

काकेशिया पार के लोगों की कला मध्ययुग में जड़ पकड़ने लगी थी। जॉर्जिया के चित्रकारों ने अपने गिरजे मनोहर भित्तिचित्रों से अलंकृत किए, और कारीगरों ने धातु या रंगीन मीना की सूक्ष्म नक्काशी के अलंकार बनाए। आर्मीनिया ने अपनी पुस्तकों की चित्रसज्जा के लिए प्रसिद्धि प्राप्त की जिनमें सबसे सुंदर तोरोस रोज़लिन (१३वीं शती) के बनाए हुए थे। सूक्ष्म और आलंकारिक चित्रण में अजरबैजान का भी विशिष्ट स्थान रहा। मध्ययुग के सूक्ष्म चित्र बनानेवाले कलाकारों में बेहजाद था (१६वीं शताब्दी के मोड़ पर), जिसके कार्य ने अजरबैजान और मध्य एशिया दोनों की संस्कृति को बढ़ाया। मध्य एशिया - उजबेकिस्तान, ताजिकिस्तान और तुर्कमानिस्तान - में इस्लाम के आने के साथ कंबल, मिट्टी के बर्तन, और टाइलों में मोजैक अलंकरण की कारीगरी पूर्णता के उच्च स्तर पर पहुँच गई।

१४वीं शताब्दी में जब मंगोल और तातार आक्रमणकारी निकाल बाहर किए गए, तब रूस राज्य के पुनर्जागरण के समय दीवारों के चित्रण, पवित्र मूर्ति बनाने की कला, किताबों की चित्रकला ऐसी विकसित हुई जैसी पहले कभी नहीं हुई थी। १५वीं और १६वीं शताब्दी ने यूनानी थियोफेनीस और आंद्री रुब्ल्योव के समान श्रेष्ठ चित्रकारों को जन्म दिया जिनकी पवित्र मूर्ति और भित्तिचित्र उच्च मानवता तथा समुज्वल सामंजस्य के भाव से अनुप्राणित थे; और डायोनियस भी उसी काल में हुआ। यह अपनी सुंदर प्रेरित चित्रकारी के लिए प्रसिद्ध था। १७वीं शती में रूसी, उक्रेनी और बिलोरूसी कला में मध्यकालीन परंपरा से अलग हटने के लक्षण प्रकट होने लगे। इसी समय के लगभग लैटविया, लिथुआनिया और एस्टोनिया की कला का मध्यकाल भी समाप्त होने लगा।

१८वीं शती के आरंभ से रूसी कला अपने इतिहास की नई मंजिल की ओर बढ़ी। धर्मनिरपेक्ष यथार्थवाद तथा पश्चिमी यूरोप की कला का प्रभाव इस अवस्था के प्रमुख लक्षण थे। एफ. रोकोमोव, डी. लेवित्सकी और वी. बोरोविकोव्स्की (१८वीं शती के अंत और १९वीं शती का आरंभ) के व्यक्तिचित्रों में प्रकृति और मानव शरीर की बढ़ती हुई जानकारी दृष्टिगत होती है। नागरिक वीरता के प्रशंसात्मक ऐतिहासिक विषयों के चित्र, प्राकृतिक दृश्यों तथा ग्रामजीवन और दैनिक जीवनशैली के चित्र बनाए गए। इनके अतिरिक्त व्यक्तियों की मूर्तियाँ (एफ शुबिन) और स्मारक (एम. कोज़लोव्स्की और आई. मार्तोस) भी बने। बढ़ती हुई राष्ट्रीय चेतना तथा स्वतंत्रताप्रिय विचारों के प्रतिक्रियास्वरूप १९वीं शती के आरंभ की रूसी कला में अभूतपूर्व जीवन और शक्ति का संचार हुआ। ब्यूलोव के चित्रों के विषय महान् इतिहास की गूँज लिए रहते थे। ए. इवानोव ने इतिहास के विषयों तथा दार्शनिक विचारों को कलात्मक अभिव्यक्ति दी। ओकिप्रेंस्की के व्यक्तिचित्र तथा एस. श्चेद्रिन के दृश्यों में गहरा मनोवेगात्मक आकर्षण रहता था। इस काल में जनता पर अत्याचार और जारशाही के विरुद्ध प्रतिवाद के स्वर चित्रकला में प्रतिध्वनित हुए। अपने लोकजीवनशैली के चित्रों में पी. फ़ेदोरोव ने जनसामान्य के हित का समर्थन किया। कवि टी. शेवचेंको ने कला में आलोचनात्मक यथार्थवाद की उक्रेनियन शाखा की स्थापना की। अंत में १८७० में एक सचल प्रदर्शनियों का संघ (पेरेद्रिज़्निकी) ज़ारशाही के अत्यंत जीवन की हीन दशा प्रदर्शित करने के लिए संगठित किया गया। उनके चित्रों में स्वयं प्रतिबिंबित होता था। आई. क्राम्सकोय, बी. पेरोव, वी मैक्सिमोव, वी. माकोव्स्की, के. सावित्स्की और अन्य पेरेद्रिज़िन्स्की प्रदर्शन चित्रकारों ने रूसी चित्रकला में लोकतंत्रीय तत्व तथा यथार्थवादी रूप को दृढ़ता के साथ चित्रित किया। उनका सबसे अच्छा प्रतिनिधि आई. रेपिन था जिसने, जार से पीड़ित किंतु जिनका उत्साह भंग नहीं हुआ था, ऐसे लोगों के अत्याचारों के चित्र प्रस्तुत किए; और वी. सुरिकोव के इतिहासविषयक चित्रों में जनता के कष्ट और संघर्ष अत्यंत प्रबल शक्ति से प्रतिबिंबित होते थे। एक अन्य विशिष्ट प्रदर्शनीचित्रकार वी. वेरेश्चेगिन था, जो रणभूमि के चित्र प्रस्तुत करता था। भारतयात्रा ने उसे ब्रिटिश लोगों द्वारा सिपाहियों के नृंशस वध का चित्र बनाने को प्रेरित किया। प्रदर्शनी चित्रकार राष्ट्रीय यथार्थवादी दृश्यचित्रों (आई. लेवितन, और आई. शिश्किन) के उन्नायक भी थे। उक्रेन (टी. शेवचेंको), जॉर्जिया (जी. गावशविली और ए. म्रेब्लिशविली), लैटविया (के. गुन), तथा दूसरे देश में जिनकी राष्ट्रीय संस्कृति जार के शासन के अत्याचारों में निर्मित हो रही थीं उनमें वे यथार्थवादी चित्रकला के विकास में साधन स्वरूप बने।

१९१७ की अक्टूबर की महान् समाजवादी क्रांति ने कला में व्यापक परिवर्तन किए। कला अब जनता की संपत्ति बन गई। प्रदर्शनियों, अजायबघरों, और उनके दर्शकों की संख्या बहुत अधिक बढ़ गई। सोवियत कला ने लाखों श्रमजीवियों की पहुँच में और समझ में आनेवाली कला बनने की समस्या का सामना किया। अब वह विषयवस्तु और रूपविन्यास में समाजवादी कला की भाँति विकसित हो रही है। यद्यपि वह सोवियत संघ के सभी लोगों के हितों को प्रतिबिंबित करती है, फिर भी वह सावधानी से राष्ट्रीय परंपराओं की रक्षा करती है उन्हें जारी रखती है और उनका विकास करती है। कला की यह राष्ट्रीय बहुरूपता और व्यक्तिगत रचनात्मक रीतियों की विविधरूपता समाजवादी यथार्थवाद के आधार पर तथा सार्थक आदर्शवादी कला के सोवियत ढंग पर आश्रित है, और यह ऐसे इतिहाससिद्ध मूर्त रूपों में अभिव्यंजित होती है, जो जीवन को विकासप्रक्रिया में होकर गुजरते हुए प्रतिबिंबित करते हैं।

सोवियत संघ के सभी लोग, जिनमें वे लोग भी शामिल हैं जो चित्रकला, मूर्तिकला और बिंदु-रेखा-चित्रण के संबंध में बहुत कम या बिलकुल नहीं जानते थे, कला की उन्नति के लिए यथासंभव सब कुछ कह रहे हैं। उजबेक लोगों का उल्लेख पर्याप्त है जिनकी कला का प्रतिनिधित्व अब प्रतिभाशाली प्रकृतिचित्रण करनेवाले यूतंजिकव्येव, अजरबैजानवाले (मूर्तिकार एफ. अब्दुरंखमानोव) वूरियत लोग (टी. संपिलोव) और दूसरे बहुतेरे लोगों के साथ बहुसंख्यक चित्रकार कर रहे हैं। सोवियत कलाकारों के रचनात्मक संघ में अब विभिन्न जातियों के ८,००० से अधिक कलाकार सम्मिलित हैं।

सोवियत चित्रकला की शाखा ने अब विविध प्रकार का चित्रण करनेवाले चित्रकारों की अनेकानेक कृतियों को जन्म दिया है जैसे आई. ब्रोड्स्की, बी. ग्रेकोव, बी. जोहान्सन और वी सेरोव के सामान्य ऐतिहासिक और आधुनिक विषयों के चित्रों को, एस. चुइकोव (भारतीय विषयवस्तु पर एक चित्रमाला के रचनाकार) ए. प्लास्तोव, और टी. याब्लोंस्काया के जनजीवन संबंधी चित्रों को, एम. नेलेरोव और एम. सयनि के दृश्यचित्रों और वाई. लांजेरे और ए. दनिका के स्मारक चित्रों को। एन. आंद्रेयेव, आई. श्चाद्र, वी. मुखीना, एस. कोनेन्कोव और वाई. निकोलाद्जे के द्वारा स्मारकों से मूर्तियोंतक सोवियत् तक्षणकारों ने सभी शैलियों का प्रतिनिधित्व किया है। ग्राफिक कला (पोस्टर, उत्कीर्ण चित्र, रेखांकन, व्यंगचित्र आदि) में कुक्रिनिवासी, डी. मूर, वी. फ़ावोर्स्की, डी. श्मारिनोव, वाई. किब्रिक, इस्टोनिया के ग्राफिक कलाकारों के एक दल ने अत्यंत सजीव कार्य किया है। लोगों की आदर्शवादी और सौंदर्यानुभूति विषयक शिक्षा को बढ़ाने के उच्च उद्देश्य में सोवियत कला भावात्मक (ऐब्स्ट्रैक्ट) शैली का परित्याग करती है। वह उसे कला के विकास के लिए हानिप्रद, उसको नाश की ओर ले जानेवाली, तथा सत्य और जीवन के सौंदर्य को प्रतिबिंबित करने में अवरोधक मानती है।

सोवियत कला का एक महत्वपूर्ण क्षेत्र लोगों की हस्तकला है, यथा रूसियों, उक्रेनियों, जॉर्जियावासियों, कज़्ज़ाक और बाल्टिकवासियों के मिट्टी के बर्तन; तुर्कमेनिया, आर्मीनिया, अजरबैजान और दाग़्स्ताािन निवासियों का कंबल का काम; लाख की वार्निश की रूसियों की नन्हीं नन्हीं चीजें; और बहुतेरे लोगों की बनाई लकड़ी और हड्डी पर नक्काशी और धातु की चीजें। सोवियत कलाकौशल की चीजों को राज्य और जनसंस्थाओं द्वारा व्यापक सहायता प्राप्त है और उनके इस प्रोत्साहन से नए सिरे से विकसित हो रही हैं।