सोपारा बंबई के थाना जिले में स्थित है। इसका प्राचीन नाम थूर्पारक है। देवानां प्रिय प्रियदर्शी अशोक के चतुर्दश शिलालेख शहबाजगढ़ी (जिला पेशावर), मनसेहरा (जिला हजारा), गिरनार (जूनागढ़, काठियावाड़ के समीप), सोपारा (जिला थाना, बंबई), कलसी (जिला देहरादून), धौली (जिला पुरी, उड़ीसा), जौगढ़ (जिला गंजाम) तथा इलगुर्डा (जिला कर्नूल, मद्रास) से उपलब्ध हुए हैं। ये लेख पर्वत की शिलाओं पर उत्कीर्ण पाए गए हैं।

शहबाजगढ़ी तथा मनसेहरा के अभिलेखों के अतिरिक्त, सोपारा का अभिलेख भारतीय ब्राह्मी लिपि में हैं। इसी ब्राह्मी से वर्तमान देवनागरी लिपि का विकास हुआ है। यह बाईं ओर से दाहिनी ओर की लिखी जाती थी। शहबाजगढ़ी तथा मनसेहरा के अभिलेख ब्राह्मी में न होकर खरोष्ठी में हैं। खरोष्ठी अलमाइक की एक शाखा है जो अरबी की भाँति दाहिने से बाएँ को लिखी जाती थी। सीमाप्रांत के लोगों के संभवत: ब्राह्मी से अपरिचित होने के कारण अशोक ने उनके हेतु खरोष्ठी का उपयोग किया।

सोपारा का अभिलेख अशोक के साम्राज्य के सीमानिर्धारण में भी अत्यंत सहायक हैं। सोपारा तथा गिरनार के शिलालेखों से यह सिद्ध है कि पश्चिम में अशोक के साम्राज्य की सीमा पश्चिमी समुद्र थी।

अशोक के अभिलेख हृदय पर सीधा प्रभाव डालते हैं। अशोक ने इस तथ्य को भली भाँति समझ रखा था कि भाष्यकार मूल उपदेश को निस्सार कर देते हैं। अतएव उसने अपनी प्रजा तक पहुँचने का प्रयास किया। सम्राट् के अपने शब्दों में ये लेख सरल एवं स्वाभाविक शैली में जनभाषा पालि के माध्यम से उसके उपदेशों को जन जन तक पहुँचाते हैं। यही इन अभिलेखों का वैशिष्ट्य तथा यही इनकी सफलता है। (रत्नाकर उपाध्याय)