सैलिस्बरी, रॉबटर् अॉर्थर टैल्वट गैस्कोइन-सेसिल (१८३०-१९०३) जेम्स और उसकी प्रथम पत्नी फ्रांसिस मेरी गैस्कोइन के द्वितीय पुत्र का जन्म ३ फरवरी, १८३० को हैटरफील्ड में हुआ उन्होंने ईटन और अॉक्सफर्ड के क्राइस्ट चर्च कालेज में श्िाक्षा ग्रहण की। अस्वस्थ होने के कारण वे दो वर्ष तक समुद्रयात्रा करते रहे। यात्रा से लौटने पर २२ अगस्त, १८५३ को स्टेमफर्डं के 'बरो' से संसद् के लिए निर्विरोध सदस्य निर्वाचित हुए।
जुलाई, १८५७ में उनका विवाह हुआ। इस समय धनाभाव के कारण उन्होंने 'सैटरडे रिव्यू' में कार्य आरंभ किया। परंतु उनकी अधिकांश रचनाएँ 'क्वाटर्र्ली रिव्यू' में लगभग छ: वर्ष तक निरंतर अनामत: प्रकािशत होती रहीं। १८६४ में उन्होंने विदेशनीति पर भाषण दिए। १८६६ में लार्ड रसल की मंत्रिपरिषद् के पतन के पश्चात् लार्ड डरबी ने उन्हें अपने मंत्रिमंडल में आमंत्रित किया। जुलाई, १८६६ में उन्हांने भारतमंत्री का पद सँभाला। इस पद पर उन्होंने केवल सात महीने तक ही कार्य किया और ९ फरवरी, १८६८ को त्यागपत्र दे दिया।
उनके प्िाता का देहांत १२ अप्रैल, १८६८ को हुआ। फलस्वरूप उन्हें लार्ड सदन का सदस्य होना पड़ा। १८६८ से १८७४ तक लार्ड सैलिस्बरी ने ग्लैडस्टन के विधानों का निरंतर विरोध किया। १८७४ में डिजरैली ने उन्हें मंत्रिमंडल में आमंत्रित किया, और वे पुन: भारतमंत्री नियुक्त हुए। इन्हीं दिनों भारत में भयानक अकाल पड़ा, और उन्हें इस संकट का शमन करने के लिए अथक परिश्रम करना पड़ा।
१८७६ में दक्षिण पूर्व यूरोप में एक संकट उत्पन्न हुआ। उन्हें कुस्तुंतुनिया सम्मेलन में भाग लेने के लिए भेजा गया। इंग्लैंड के मंत्रिमंडल की ढुलमुल नीति के कारण वे सफलता प्राप्त न कर सके। सुदृढ़ नीति आवश्यक थी। डरबी को त्यागपत्र देना पड़ा, और सैलिस्बरी विदेश मंत्री नियुक्त हुए। इस पद का भार सँभालते ही उन्होंने यूरोप की सभी राजधानियों को एक परिपत्र भेजा, जिसके द्वारा यह सिद्ध किया कि सैन स्टीफानों की संधि द्वारा टर्की का साम्राज्य रूस के अधीन हो गया है जो यूरोप की अन्य शक्तियों के लिए भयप्रद होगा। इसलिए इस संधि के विषय में संबंधित राज्यों ने पुन: परिनिरीक्षण के लिए माँग की। इस प्रकार यूरोप के राज्य ब्रिटेन के पक्ष में हो गए और रूस को झुकाना पड़ा। बर्लिन कांग्रेस में इंग्लैंड की ओर से डिजरैली और सैलिस्बरी सम्मिलित हुए। उद्देश्यप्रािप्त के पश्चात् उन्होंने गर्व के साथ कहा कि वे शांति को मान सहित लाए हैं।
१८८० के चुनाव में कंजरवेिटव हार गए और उसी वर्ष लार्ड बीकंसफोल्ड की मृत्यु हो गई। परिणामस्वरूप लार्ड सभा का नेतृत्व सैलिस्बरी को सँभालना पड़ा। १८८५ में सूडानी दुर्घटना के कारण लिबरल असंगठित थे। ग्लैडस्टन की पराजय हुई, और सैलिस्बरी प्रधान मंत्री नियुक्त हुए। इस पद को सँभालते ही बल्गेरिया में उपद्रव हुआ। परिणामस्वरूप उत्तरी और दक्षिणी बल्गेरिया मिल गए। सैलिस्बरी ने इसका समर्थन किया।
सैलिस्बरी का द्वितीय मंत्रिमंडल १८८६ से १८९२ तक रहा। वे ब्रिटेन, जर्मनी, अॉिस्ट्रया और इटली की ओर झुके एवं उन्होंने रूस और फ्रांस का विरोध किया। १८९० में बिस्मार्क की मृत्यु के पश्चात् सैलिस्बरी की गणना यूरोप के प्रमुख राजनीतिज्ञों में होने लगी। अफ्रीका में साम्राज्यवादी शक्तियाँ अपना प्रभुत्व स्थािपत करने के लिए झगड़ रही थीं। सैलिस्वरी ने अंतरराष्ट्रीय संबंधों को बिना संकट में डाले उस देश की स्थायी रूपरेखा निर्धारित की।
१८९२ के सामान्य निर्वाचन में लिबरल दल विजयी हुआ और लोक सदन ने ग्लैडस्टन के 'होम रूल विधेयक' को स्वीकार किया। लार्ड सदन में सैलिस्बरी ने विरोध किया। आंग्ल विधान में लार्ड सदन का कार्य निर्वाचकों को पुन: विचार करने का अवसर प्रदान करने का है। १८९५ में संसद भंग की गई। सामान्य निर्वाचन का मत कंजरवेिटव दल (रूढ़िवादियों) के पक्ष में रहा; और सैलिस्वरी तीसरी बार प्रधान एवं विदेशमंत्री नियुक्त हुए।
इन्होंने ब्रििटश गायना और बैनिज्वीला के बीच सीमा संबंधी चले आ रहे झगड़े को बुद्धिमत्ता से हल किया। १८९७ में रूस ने चीन के 'पोटर् अॉर्थर' और तेलिनवान पर अवैध रूप से अधिकार कर लिया। सैलिस्बरी के विरोधपत्र से आंल जनता असंतुष्ट थी अत: उसने शक्तिप्रयोग की माँग की। इंग्लैंड का फ्रांस से मिस्र पर पुराना झगड़ा चला आ रहा था। उसे भी सैलिस्बरी ने बड़ी चतुराई से हल कर लिया। उन्होंने दक्षिणी अफ्रीका के युद्धों को सफलतापूर्वक संचालित किया। नवंबर, १९०० में विदेशमंत्री पद तथा जुलाई, १९०२ में प्रधानमंत्री पद से मुक्ति पाकर २२ अगस्त, १९०३ को जीवनलीला समाप्त की।
(गिरिराज किशोर गहराना)