सैयद मुहम्मद गौस ग्वालियर के रहनेवाले थे। इनके पिता का नाम खतीरुद्दीन था। बचपन में ही यह जाती हामिद हजूर के शागिर्द हो गए जिन्होंने उनको अपने मत की प्रारंभिक दीक्षा देकर आध्यात्मिक साधना करने के लिए चुनार भेज दिया। तेरह वर्षों से भी अधिक समय तक इन्होंने अत्यंत कठोर विरक्त जीवन की यातनाएँ झेलीं और पेड़ की पत्तियों से ही अपनी भूख शांत करते थे। विंध्याचल के एकांत अंचल में रहते समय यह हिंदू योगियों के संपर्क में आए जिसने इनके धार्मिक विचारों और दृष्टिकोण के पोषण में महत्वपूर्ण योगदान किया। बाद में इनके आध्यात्मिक गुरु ने इन्हें ग्वालियर में बसने की हिदायत की और वहीं पर ८० वर्ष की आयु में इनकी मृत्यु (लजान १७, ९७० हि.) १०, मई, १५६३ ई. को हुई।

विंध्याचल के अपने आध्यात्मिक अनुभवों का संकलन इन्होंने 'जवाहरे खमसा' नाम से किया जिसे पढ़ने से प्रकट होता है कि हिंदू धर्म की विचारधारा तथा कर्मकांड का इनपर कितना अधिक प्रभाव पड़ा। यह पहले भारतीय मुसलमान संत हैं जिन्होंने हिंदू और मुसलमान रहस्यवादी विचारधारा के समन्वय का प्रयत्न किया तंत्रशास्त्र का भी इनपर अत्यधिक प्रभाव पड़ा। इसके तो यह इतने मुरीद हो गए कि ये शत्तारी तंत्रवाद (Shattari Tantrism) मत के संस्थापक ही कहे जा सकते हैं। इनके दूसरे ग्रंथ 'अबरादे गौसियाह' में यह मुसलमान रहस्यवादी की अपेक्षा तंत्रशास्त्र के योगी जैसे दिखाई पड़ते हैं। इन्होंने करिश्मों की जिन गाथाओं का वर्णन अपने ग्रंथ में किया है उनपर विश्वास करना कठिन है। यह ग्रंथ मृत लोगों से संपर्क, आस्मानी दुनिया में यात्रा और काल एवं अंतरिक्ष में घटित करिश्मों से भरा पड़ा है।

हिंदूधर्म के कितने ही आधारभूत विचारों को अपना लेने के बाद हिंदुओं के प्रति धार्मिक कट्टरता दिखाना इनके लिए संभव ही न रह गया। अपने इस्लाम धर्म के प्रचार और दूसरे धर्मावलंबियों को मुसलमान बनाने का कोई हौसला इनमें बाकी नहीं रहा और यह हिंदुओं को इस्लाम धर्म की दीक्षा प्राप्त करने की शर्त लगाये बिना अपने रहस्यवाद के उपदेश देने को तैयार हो जाते थे। वे गान विद्या के बड़े समर्थक थे। अकबर के दरबार के प्रसिद्ध गायक तानसेन इनके शिष्य थे, जिनके द्वारा इस्लाम धर्म अपनाए जाने का उल्लेख किसी भी ग्रंथ में नहीं मिलता। धार्मिकश् विश्वासों की भिन्नता से प्रभावित हुए बिना आप हिंदुओं से प्रेमभाव और सामाजिक संबंध रखते थे। फलत: कट्टर मुसलमान लोग इनसे नाखुश रहते थे। गायों और साँडों के प्रति यह बहुत रुचि रखते थे और मिलने के लिए आनेवाले हिंदुओं से बहुत आदर का व्यवहार करते थे।

सं. ग्रं. - सैयद मुहम्मद गौस (जवाहरे खमसह पांडुलिपि, आजाद पुस्तकालय, अलीगढ़), बाकरनामा, जिल्द दो; तबकाते अकबरी (निजामुद्दीन), जिल्द दो; अकबरनामा, जिल्द दो; आईने अकबरी, जिल्द एक; तबकाते शाहजहानी (मुहम्मद सादिक खाँ); सूफियों के शत्तारिया संप्रदाय का इतिहास (काज़ी मोइनुद्दीन अहमद)। (का. मो. अ.)