सैमुएल पीप्स (१६३३-१७०३) अंग्रेजी दैनिकी लेखक। जन्मस्थान लंदन। कैंब्रिज विश्वविद्यालय में शिक्षा समाप्त करके विवाहोपरांत पिता के चचेरे भाई सर एडवर्ड मांटेग्यू (कालांतर में अर्ल ऑव सैंडविच) के परिवार में नौकरी कर ली जो उसका आजीवन संरक्षक रहा। अपने जीवन में उसने जो सफलताएँ प्राप्त कीं उनका श्रेय मांटेग्यू को ही था। १६६० ई. में वह 'क्लार्क ऑव दि किंग्सशिप्स' और 'क्लार्क ऑव दि प्रिवीसील' नियुक्त हुआ। १६६५ में वह नौसेना के भोजन विभाग का 'सर्वेयर जनरल' बनाया गया जहाँ उसने बड़ी प्रबंधकुशलता तथा सुधार के लिए उत्साह प्रदर्शित किया। १६७२ में वह नौसेना विभाग का सेक्रेटरी नियुक्त हुआ। १६७९ में 'पोपिश प्लॉट' नामक षड्यंत्र से संबंधित मिथ्यारोपों के फलस्वरूप उसका पद छीन लिया गया और उसे 'लंदन टावर' में कैद कर दिया गया। परंतु १६८४ में वह पुन: नौसेना विभाग का सेक्रेटरी बना दिया गया। १६८८ में गौरवपूर्ण क्रांति होने तक वह इस पद पर बना रहा तथा इस बीच एक सक्षम नौसैनिक बेड़े की स्थापना के लिए उसने बड़ा काम किया। १६९० में उसने 'मेवाएर्स ऑव दि रॉयल नैवी' नाम से ब्रिटिश नौसेना का इतिहास भी लिखा। दो वर्ष तक वह 'रॉयल सोसाइटी' का अध्यक्ष भी रहा।

परंतु पीप्स की ख्याति इन सरकारी पदों के कारण नहीं बल्कि उसकी उस अद्भुत 'डायरी' के कारण है जो अंग्रेजी साहित्य को उसकी महान् देन है। १ जनवरी, १६६० से प्रारंभ होकर यह दैनिकी ३१ मई, १६६९ तक चलती है, जब आँखें कमजोर हो जाने के कारण उसे इसको बंद करना पड़ा। इसमें राजदरबार, नौसेना तथा लंदन के तत्कालीन समाज का आँखों देखा हाल मिलने के कारण इसका ऐतिहासिक महत्व तो है ही, परंतु निस्संकोच आत्माभिव्यंजन की दृष्टि से यह संभवत: अपने ढंग की अकेली अंग्रेजी रचना है। इसमें उसने अपनी मानवसुलभ चारित्रिक दुर्बलताओं की बड़ी ही सादगी और निर्ममता से चित्रित किया है। यह 'डायरी' एक प्रकार की संकेतलिपि में लिखी गई थी। सर्वप्रथम १८२५ में यह जॉन स्मिथ द्वारा सामान्य लिपि में परिवर्तित की गई तथा लॉर्ड ब्रेबुक के संपादकत्व में प्रकाशित हुई। (जगदीशबिहारी मिश्र)