सैपोनिन और सैपोजेनिन सैपोनिन (C32 H52 O17) नामक पदार्थ सैपोजेनिन एवं शर्करा के संयोग से बने हुए ग्लाइकोसाइड होते हैं। ये विभिन्न प्रकार के पौधों से प्राप्त किए जाते हैं। इनकी विशेषता है कि पानी के साथ विलयन बनाने पर ये फेन (झाग) देते हैं। ऐलकोहली सल्फ्यूरिक अम्ल की उपस्थिति में फेरिक क्लोराड के साथ हरा रंग देता है।
सैपोनिन दो प्रकार के होते हैं :
(१) ट्राइटरपिनाइड सैपोनिन, (२) स्टेराइडाल सैपोनिन
दोनों प्रकार के सैपोनिन में भिन्नता केवल ग्लाइकोसाइडों की संरचना में सैंपोजेनिनवाले भाग में ही होती है। ट्राइटरपिनाइड सैपोनिन में ट्राइटरपिनाइड सैपोजेनिन क्वीलाइक अम्ल है जब कि स्टेराइल सैपोनिन में स्टेराइडाल सैपोजेनिन डिओसजेनिन है।
सैपोनिन की सुई ठंडे रक्तवाले जीवों की रक्तशिराओं में विषैला प्रभाव डालती है और रक्त के लाल कणों को नष्ट कर देती है, १:५०,००० के अनुपात की तनुता (dilution) में भी जबकि गर्म रक्तवाले जीवों को इससे कोई हानि नहीं पहुंचती। इसी कारण इसका उपयोग मत्स्यविष के रूप में किया जाता है।
ट्राइटरपिनाइड सैपोनिन तथा सैपोजेनिन - रीठा, स्वफेनिका (सैपोनेरिया वैक्सारिया, Saponaria vacsaria), स्वफेनिकाछाल एवं स्वफेनिका की जड़ से ट्राइटरपिनाइड सैपोनिन प्राप्त किए जाते हैं तो व्यापारिक दृष्टि से बड़े महत्व का है। इसी के अम्लीय जल अपघटन से ट्राइटरपिनाइड सैपोजेनिन प्राप्त किया जाता है। कुछ स्वतंत्र अवस्था में भी पाए जाते हैं, जैसे यूरोसोलिक अम्ल (Urosolic acid), इलेमोलिक अम्ल (Elemolic acid), बासवेलिक अम्ल (Boswellic acid)।
इसका व्यापारिक नाम सोपबार्क सैपोनिन (SoapbarkSaponin) है। इसे क्वीलाजा या क्वीलिया सैपोनिन भी कहते हैं।
सैपोनिन पीत रंग लिए हुए श्वेत अक्रिस्टलीय अतिक्लेदग्राही चूर्ण होता है जिसकी थोड़ी सी मात्रा में छींक आ जाती है तथा श्लेष्मा में क्षोभ उत्पन्न होता है। जल के साथ कोलाडलीय विलयन बनाता है, ऐलकोहॉल में थोड़ा घुलता है, मेथेनोल में बराबर मात्रा में घुलता है। ईथर, क्लोरोफार्म और बेंजीन में विलय है। रेजिन तथा स्थिर तेलों के साथ पायस बनाता है। विलयन में सैपोनिन द्वारा सतह तनाव कम हो जाता है और वे बहुत फेन उत्पन्न करते हैं। पानी के साथ १: १००,००० अनुपात में भी फेन देता है। अंत:शिरा (intravenous) में इन्जेकशन देने से रुधिरसंलागी प्रभाव दिखाता है।
इसे निम्न उद्योगों में उपयोग में लाते हैं :
१-ध्वनिशोषक टाइल (Acoustic tiles) २-आग बुझाने, ३-फोटोग्राफी प्लेट वाले पदार्थों में फेना, देने के लिए ४-फिल्म, ५-कागज, ६-मृत्तिका उद्योग, ७-दंतमंजन, ८-सुरा उद्योग, ९-शैंपू और तरल साबुन, १०-सौंदर्य प्रसाधन, ११-तेल के पायसीकरण में, १२-रक्त के आक्सीजन की मात्रा का मान निकालने में।
स्टेराइडाल सैपोनिन तथा सैपोजेनिन - डिजिटैलिस जाति के पौंधों से तथा लिखी कुल के मेक्सिकान पौधों से प्राप्त किया जाता है। जल अपघटन या ऐंजाइम विघटन द्वारा सैपोनिन से सैपोजेनिन उन्मुक्त होता है, यद्यपि कभी कभी जल अपघटन से सैपोजेनिन की संरचना में परिवर्तन भी हो जाता है। स्टेराइडाल सैपोनेनिन की संरचना की यह विशेषता है कि स्टेराइड के केंद्र के कई स्थानों पर आक्सीजन जटिल पार्श्वशृंखला निर्माण किए रहते हैं।
स्टेराइडाल सैपोनिन झाग देने के गुण के साथ साथ सब प्रकार के स्टेरोल या स्टेराइड्स के साथ अविलेय अणु यौगिक बनाते हैं जो अधिकतम तनुता होनेश् पर भी रूधिरसंलागी प्रभाव रखते हैं।
अभी तक इसका उपयोग प्रक्षालक (detergents), मत्स्यविष और फेनकारक के ही हेतु किया जाता था, पर इधर कुछ वर्षों में सैपोजेनिन की संरचना के विस्तृत अध्ययन के पश्चात् इससे स्टेराइडाल हारमोन बनाया जाने लगा है जिससे इसका अधिक महत्व बढ़ गया है। इस हारमोन के लिए यह कच्चा माल (raw material) के रूप में काम आता है। (लक्ष्मीशंकर शुक्ल)