सेलुलॉइड (Celluloid) व्यापार का नाम है। यह नाइट्रो सेलुलीस और कपूर का मिश्रण है पर मिश्रंण की तरह यह व्यवहार नहीं करता। यह एक रासायनिक यौगिक की तरह व्यवहार करता है। इसके अवयवों को भौतिक साधनों द्वारा पृथक करना सरल नहीं है।

सेलुलोस के नाइट्रेटीकरण से कई नाइट्रोसेलुलोस बनते हैं। कुछ उच्चतर होते हैं, कुछ निम्नतर। नाइट्रेटीकरण की विधि वही है जो गन कॉटन तैयार करने में प्रयुक्त होती है। इसके लिए सेलुलोस शुद्ध और उच्च कोटि का होना चाहिए। निम्नतर नाइट्रोसेलुलोस ही कपूर के साथ गरम करने से मिश्रित होकर सेलूलॉइड बनते हैं। इसके निर्माण में १० भाग नाइट्रोसेलुलोस के कपूर के ऐल्कोहली विलचन (४ से ५ भाग कपूर) के साथ और यदि आवश्यकता हो तो कुछ रंजक मिलाकर लोहे के बंद पात्र में प्राय: ९०से. ताप पर गूँधते हैं, फिर उसे पट्ट पर रखकर सामान्य ताप पर सुखाते हैं।

सेलुलॉइड में कुछ अच्छे गुणों के कारण इसका उपयोग व्यापक रूप से होता है। इसमें लचीलापन, उच्च तन्यबल, चिमड़ापन, उच्च चमक, एकरूपता, सस्तापन, तेल और तनु अम्लों के प्रति प्रतिरोध आदि कुछ अच्छे गुण होते हैं। इसमें रंजक बड़ी सरलता से मिल जाता है। तप्त सेलुलॉइड की तरलता से साँचे में ढाल सकते हैं। ठंडा होने पर यह जमकर कठोर पारदर्शक पिंड बन जाता है। बहुत निम्न ताप पर यह भंगुर होता है और २००से. से ऊँचे ताप पर विघटित होना शुरू हो जाता है। सेलुलॉइड की सरलतापूर्वक आरी से चीर सकते हैं, बरमा से छेद सकते हैं, खराद पर खराद सकते हैं और उन पर पालिश कर सकते हैं। इसमें दोष यही है कि यह जल्दी आग पकड़ लेता है।

बाजारों में साधारणतया दो प्रकार के सेलुलॉइड मिलते हैं, एक कोमल किस्म का जिसमें ३० से ३२ प्रतिशत और दूसरा कठोर किस्म का जिसमें २३ प्रतिशत कपूर होता है। यह चादर, छड़, नली आदि के रूप में मिलता है। इसकी चादरें ०.००५ से ०.२५० इंच तक मोटाई की बनी होती हैं। सेलुलॉइड के सैकड़ों खिलौने, पिंगपौंग के गेंद, पियानो की कुंजियाँ, चश्मों के फ्रेम, दाँत के बुरुशष बाइसिकिल के फ्रेम और मूँठें, छूरी की मूँठें, बटन, फाउंटेन पेन, कंघी इत्यादि अनेक उपयोगी वस्तुएँ बनती हैं। (सत्येंद्र वर्मा)