सेनेका, लूसिअस आनाहअस (ई. पू. ४ से ई. सन् ६४ तक) महान् दार्शनिक और नाटककार का जन्म कोरडबा स्थान पर हुआ। एक सफल वकील के रूप में अपने जीवन का आरंभ कर बाद में वह एक महान दार्शनिक और साहित्यकार बना।
सन् ४१ में तत्कालीन रोमन सम्राट क्लाडियस ने उसका देश निष्कासन कर उसे कार्सिका भेज दिया, लेकिन बाद में आग्रीपीना ने वापस बुलाकर उसे राजकुमार नीरू का शिक्षक नियुक्त कर दिया। सन् ५ में क्लाडियस की मृत्यु के बाद नीरू सम्राट बना और उसके प्रारंभिक पाँच वर्षों के उदार सफल शासन का श्रेय सेनेका के स्वस्थ निर्देशन को ही है। यद्यपि नीरू के शासनकाल में उसका जीवन संपन्न एवं सुख सुविधाओं से भरा हुआ था, फिर भी उसके राजदरबार में उसकी स्थिति डावाँडोल बनी हुई थी। इसलिए शासन क्षेत्र से अलग होकर उसने अपना जीवन दार्शनिक चिंतन में लगाया। सन् ६५ में पिसानियन षड्यंत्र को प्रोत्साहित करने का अभियोग उस पर लगाया गया और उसमें सम्राट द्वारा अपने विरुद्ध दिए गए निर्णय पर आत्महत्या कर ली।
सेनेका ने अपने जीवन में अनेक महत्वपूर्ण कृतियों का सृजन किया। इनमें से एक, क्लाडियस की मृत्यु पर व्यंग सात भागों में है। प्रकृति विज्ञान की व्याख्या पर भी एक ग्रंथ है। ग्रीक पात्रों और पौराणिक कथाओं पर आधारित दु:खांत नाटक और दार्शनिक विषयों पर लिखे गए अनेक निबंध और पत्र प्रसिद्ध हैं। उसके निबंध बहुत उच्च कोटि के हैं और उनकी तुलना बेकन तथा इमरसन के निबंधों से की जाती है। उसके निबंध मानवता और आध्यात्मिक तत्वों से भरे हुए हैं। मानव दुर्बलताओं के प्रति सहानुभूति प्रकट की गई है, जिसके लिए जगत्पिता परमेश्वर की करुणा की अपेक्षा पर बल दिया गया है, जो प्राणिमात्र को नैतिक एवं उच्च जीवन व्यतीत करने की शक्ति देता है।
यूरोप के जाग्रति युग के नाटककारों को सेनेका के ही नाटकों से प्रेरणा मिली है। उसके नाटकों में ताल, लय, सुबोधता एवं भावुकता है। उसने यूरोप के दुखांत नाटकों को एक नई दिशा दी। इटली, फ्रेंच और अंग्रेजी भाषा के तत्कालीन नाटकों की रचना सेनेका के ही नाट्य शिल्प के विविध पहलुओं पर आधारित है। एलिजाबेथ युग के दुखांतों पर सेनेका जैसा प्रभाव और किसी साहित्यकार का नहीं पड़ा है।