सेंसर व्यव्सथा जनता की स्वेच्छा से आपत्तिजनक वस्तुओं के देखने, सुनने और पढ़ने से रोकने के प्रयत्नों को सेंसर व्यवस्था कहते हैं। अधिकांशत: यह समाचारपत्रों, भाषण, छपे हुए साहित्य, नाटक और चलचित्र, जो सरकार द्वारा जनता के चरित्र के लिए हानिकारक समझे जाते हैं, पर लगाई जाती है।

राजनीतिक सेंसर व्यवस्था-यह अक्सर तानाशाही में लगाई जाती है। गणतंत्र देशों में इसका कोई स्थान नहीं है। राजनीतिक सेंसर व्यवस्था का ध्येय जनता द्वारा सरकार की किसी भी प्रकार की आलोचना को रोकना है। रूस में साम्यवादी सरकार द्वारा कड़ी सेंसर व्यवस्था लगाई गई है।

प्रेस सेंसर व्यवस्था-भूतकाल में छपे हुए साहित्य को सेंसर करने का तरीका प्राय: सभी देशों में समान ही रहा है, परंतु उसकी कठोरता देश काल के अनुसार भिन्न-भिन्न रही है। महायुद्ध के समय जर्मनी में प्रत्येक पुस्तक बड़ी सावधानी से सेंसर की जाती थी और कोई आपत्तिजनक बात होने पर लेखकों को बड़ा कड़ा दंड भी मिलता था। तानाशाही देशों में प्रेस सेंसर व्यवस्था आरंभ से ही बड़े कड़े प्रकार की रही है। कोई भी संपादक अपना पत्र बिना पूर्व निरीक्षण के नहीं छपवा सकता था। नियम का उल्लंघन करने का अर्त पत्र को बंद करना और संपादक को भारी दंड भोगना था।

ब्रिटेन में प्रेस सेंसर व्यवस्था से संपादकों में भारी असंतोष फैल गया क्योंकि कोई आपत्तिजनक बात छाप देने पर उनको दंड मिलने लगा। इसलिए बाद में सरकार ने एक प्रेस ब्यूरो खोला जो समय-समय पर संपादकों को आवश्यक निर्देश दिया करता था जिससे वह कोई भी आपत्तिजनक विषय न छाप सकें परंतु यह संस्था उनको दंड से बचाने की जिम्मेदार नहीं थी।

प्रेस सेंसर व्यवस्था सरकार द्वारा सीमित रूप में ही लगाई जाती है और यह प्रत्येक देश की सभ्यता तथा रीति-रिवाजों पर निर्भर है। सरकार कोई भी अश्लील पुस्तक जनता के समक्ष उपस्थित करने से मना कर सकती है; क्योंकि देश की नैतिक उन्नति छपे हुए साहित्य पर ही निर्भर होती है।

युद्धकालीन सेंसर व्यवस्था-युद्धकाल में देश की सुरक्षा के लिए डाक, तार, समाचारपत्र तथा आकाशवाणी द्वारा भेजे गए संदेशों की सेंसर व्यवस्था आवश्यक है क्योंकि शत्रु का गुप्तचर विभाग इन साधनों द्वारा देश की निर्बलताओं तथा दूसरे गुप्त विषयों पर सूचना पाने का प्रयास करता रहता है।

शांतिकाल में डाक और तार की सेंसर व्यवस्था असाधारण-सी बात है, परंतु युद्धकाल में डाक और तार की सेंसर व्यवस्था आवश्यक है क्योंकि कई बार देशद्रोही शत्रु के गुप्तचरों के साथ अपने देश की निर्बलताओं अथवा कई गुप्त विषयों पर पत्र व्यवहार करते पकड़े गए हैं।

युद्धकाल में सब सैनिक पत्र सेंसर किए जाते हैं और इस कार्य की पूर्ति के लिए विशेष अधिकारी नियुक्त किए जाते हैं जो इन पत्रों में से कई भी आपत्तिजनक सूचना, जो शत्रु को किसी भी प्रकार लाभदायक हो सकती हो, काट सकते हैं अथवा पूरा पत्र ही नष्ट कर सकते हैं।

कई बार इन पत्रों में शत्रु को कई गुप्त संकेतों द्वारा सूचना दी जाती है जैसे साईफर कोड, नकली स्याही अथवा अन्य कई साधनों द्वारा। ब्रिटेन, फ्रांस और जर्मनी में तो ऐसे पत्रों के लिए पोस्टल सेंसर व्यवस्था की भिन्न-भिन्न शाखाएँ खोली गई और परिणाम तथा शत्रु के सूचना पाने के कई साधन बंद हो गए। ब्रिटेन में शत्रु को सूचना भेजने के और भी कई साधन अपनाए गए थे जैसे पत्र तटस्थ देशों के नाम भेजे जाते थे परंतु वास्तव में शत्रु के लिए ही होते थे। अत: वहाँ पर तटस्थ देशों से आने जाने वाली सारी डाक सेंसर की जाने लगी। शत्रु देश से आने वाला छपा हुआ साहित्य भी प्राय: झूठा प्रचार करने के लिए भेजा जाता था इसलिए उसको तो वितरण करने से पूर्व ही नष्ट कर दिया जाता था।

युद्धकाल में अमरीका का पोस्टमास्टर जनरल ही कोई भी साहित्य डाक द्वारा भेजने से मना कर सकता था।

युद्धकाल में तारों की सेंसर व्यवस्था विशेषतया शत्रु देश के साथ व्यापारिक संबंधों को छिन्न-भिन्न करने के लिए की जाती थी और बहुत बार ये व्यापारिक तार अपने देश की स्थल तथा जल सेना की स्थिति की सूचना लिए होते थे। इसलिए तार भी सेंसर किए जाने लगे।

चलचित्रों की सेंसर व्यवस्था-चलचित्रों का सेंसर करने के लिए सरकार एक बोर्ड बनाती है जो भिन्न-भिन्न देशों में भिन्न-भिन्न नामों से जाना जाता है। कोई भी फिल्म सेंसर बोर्ड से प्रमाणपत्र लिए बिना जनता के समक्ष उपस्थित नहीं की जा सकती। यह बोर्ड किसी भी चलचित्र को जनता के समक्ष उपस्थित करने से रोक सकता है अथवा उसमें से कुछ दृश्य या शब्द काट सकता है या किसी फिल्म को केवल वयस्कों के लिए दिखाने की अनुमति दे सकता है।

चलचित्रों की सेंसर व्यवस्था विशेषत: जनता की नैतिक भावनाओं पर निर्भर है। जनता का कोई भी शक्तिशाली समूह सरकार पर दबाव डालकर किसी भी अश्लील चित्र को जनता के समक्ष दिखलाने से रोक सकता है। (देवराज कथूरिया.)