सेंट साइमन, हेनरी (१७६०-१८२५) फ्रांस का समाज दार्शनिक जिसे आधुनिक समाजवाद का जन्मदाता माना जाता है। अपनी बहुमुखी प्रतिभा तथा मौलिक चिंतन की क्षमता के कारण वह समाजदर्शन में उद्योगवाद एवं वैज्ञानिक यथार्थवाद जैसी पुष्ट चिंतनधाराओं का प्रवर्तक बना। उसकी मृत्यु के बाद उसके शिष्यों ने, जिनमें बाजार्ड तथा एनफैंटीन प्रमुख हैं, उसके विचारों का व्यवस्थित ढंग से प्रचार किया तथा ऑगस्ट कौम्टे विचारक अनेक वर्षों तक उसके सेक्रेटरी रहे।
पेरिस के एक कुलीन परिवार में जन्म लेकर, परिवार की परंपराओं के अनुकूल सेंट साइमन (साँ सिमों) ने अपनी आजीविका सैनिक के रूप में आरंभ की, परंतु शांति के दिनों में सैनिक जीवन की एकरसता से ऊबकर उसने कर्नल पद से त्यागपत्र दे दिया। फ्रांसीसी राज्य क्रांति के अवसर पर गिरजाघरों की जब्त की गई संपत्ति को खरीदकर मालामाल हुआ, परंतु ज्ञानार्जन संबंधी कामों में उसने खुले हाथ धन व्यय किया और १८०५ में वह निर्धन हो गया। १८२३ में निराश सेंट साइमन ने आत्महत्या की चेष्टा की परंतु बच गया। दो वर्ष बाद जब उसकी मृत्यु हुई, वह अपने शिष्यों से घिरा नई पुस्तकें लिखने की योजना बना हरा था। उसकी सभी मुख्य रचनाएँ १८०३ तथा १८२५ के बीच प्रस्तुत की गई।
सेंट साइमन के सामने मुख्य प्रश्न फ्रांसीकी क्रांति से उत्पन्न व्यक्तिवादी अराजकता से पीड़ित यूरोपीय देशों को एक नई सामाजिक व्यवस्था की कल्पना प्रदान करना था। उद्योग एवं विज्ञान में ही उसे मानव का भविष्य दिखाई दिया, अत: नई धार्मिक चेतना से युक्त ऐसे राज्यतंत्र की रूपरेखा उसने प्रस्तुत की जिसमें राज्यशक्ति सैनिकों या सामंतों के हाथ में न रहकर प्रविधिज्ञों, वैज्ञानिकों तथा बैंकरों के हाथ में रहे और वे सामाजिक संपत्ति के ट्रस्टी के रूप में सामाजिक व्यवस्था की देखभाल करें। उद्योग एवं उत्पादन को सामाजिक प्रगति का आधार मानकर उसने 'सभी काम करें' का नारा दिया तथा संपत्ति के उत्तराधिकारी के नियम को अनैतिक घोषित किया। क्लासिकल अर्थशास्त्रियों की भाँति उसने भी आर्थिक स्वार्थ को सर्वोपरि घोषित किया, परंतु उसके अनुसार इस स्वार्थ की पूर्ति तभी हो सकती है जब विशेषज्ञों के नियंत्रण में उत्पादनश् का उचित नियोजन हो। अत: उसने अहस्तक्षेप नीति (The Laissez faire) का समर्थन नहीं किया। सामान्य रूप से वह राष्ट्रीय तथा अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के लिए संसदीय प्रणाली का समर्थक था। चिंतन के क्षेत्र में वह विशेष विज्ञानों को एक वैज्ञानिक यथार्थवादी दर्शन के अंतर्गत व्यवस्थित करना चाहता था। सामाजिक चिंतन को वैज्ञानिक यथार्थवादी रूप देने के यत्न से उसने समाज-शरीर-विज्ञान की रचना की, जिसे उचित ही आधुनिक समाजविज्ञान का पूर्वगामी कहा जाता है।
सं. ग्रं. - ए. दुरखीम: सोशलिज्म ऐंड सेंट साइमन।