सूर्यमल्ल वंशभास्कर के रचयिता कविराजा सूर्यमल्स चारणों की मिश्रण शाखा से संबद्ध थे। बूँदी के प्रतिष्ठित परिवार के अंतर्गत संवत् १८७२ में इनका जन्म हुआ था। बूँदी के तत्कालीन महाराज विष्णु सिंह ने इनके पिता कविवर चंडीदान को एक गाँव, लाखपसाव तथा कविराजा की उपाधि प्रदान कर सम्मानित किया था। सूर्यमल्ल बचपन से ही प्रतिभा संपन्न थे। अध्ययन में विशेष रुचि होने के कारण संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रंश, पिंगल, डिंगल आदि कई भाषाओं में इन्हें दक्षता प्राप्त हो गई। कवित्वशक्ति की विलक्षणता के कारण अल्पकाल में ही ख्याति चारों ओर फैल गई। महाराज बूँदी के अतिरिक्त राजस्थान और मालवे के अन्य राजाओं ने भी इनका यथेष्ट सम्मान किया। अपने जीवन में ऐश्वर्य तथा विलासिता को प्रश्रय देने वाले इस कवि की उल्लेखनीय विशेषता यह है कि काव्य पर इसका प्रभाव नहीं पड़ सका है। इनकी शृंगारपरक रचनाएँ भी संयमित एवं मर्यादित हैं। दोला, सुरक्षा, विजया, यशा, पुष्पा और गोविंदा नाम की इनकी ६ पत्नियाँ थीं। संतानहीन होने के कारण मुरारीदानको गोद लेकर अपना उत्तराधिकारी बनाया था। संवत् १९२० में इनका निधन हो गया।

बूँदी नरेश रामसिंह के आदेशानुसार संवत् १८९७ में इन्होंने 'वंशभास्कर' की रचना की थी। इस ग्रंथ में मुख्यत: बूँदी राज्य का इतिहास वर्णित है किंतु यथाप्रसंग अन्य राजस्थानी रियासतों की भी चर्चा की गई है। युद्ध वर्णन में जैसी सजीवता इस ग्रंथ में है वैसी अन्यत्र दुर्लभ है। राजस्थानी साहित्य में बहुचर्चित इस ग्रंथ की टीका कविवर बारहट कृष्णसिंह ने की है। वंशभास्कर के कतिपय स्थल क्लिष्टता के कारण बोधगम्य नहीं है, फिर भी यह एक अनूठा काव्य ग्रंथ है। इनकी 'वीरसतसई' भी कवित्व तथा राजपूती शौर्य की दृष्टि से उत्कृष्ट रचना है। महाकवि सूर्यमल्ल वस्तुत: राष्ट्रीय विचारधारा तथा भारतीय संस्कृति के उद्बोधक कवि थे।

कृतियाँ-वंशभास्कर, बलवंत विलास, छंदोमयूख, वीरसतसई तथा फुटकर छंद।

सं.ग्रं. -आचार्य रामचंद्र शुक्ल: हिंदी साहित्य का इतिहास, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी; कविराजा मुरारिदान: जसवंत भूषण; महताबचंद्र खारेड़: रघुनाथ रूपक गीताँ रो; नाथूसिंह महियारिया: वीरसतसई; डॉ. मोतीलाल मेनारिया: राजस्थानी भाषा और साहित्य, नागरी प्रचारिणी पत्रिका, वर्ष ४५ अंक ३।

(रामबली पांडेय)