सूरदास मदनमोहन ब्राह्मण थे तथा इनका नाम सूरध्वज था। यह भक्त सुकवि, संगीतज्ञ तथा साधुसेवी महात्मा थे। नामानुकूल सूरदास छा था पर प्रसिद्ध सूरदास से विभिन्नता प्रगट करने के लिए अपने इष्टदेव मदनमोहन जी का नाम उसमें जोड़ दिया। अकबर के शासनकाल में यह संडीला के अमीन थे पर वहाँ की आय एक बार साधुओं के भंडारे के व्यय कर देने से यह भागे और वृंदावन आ बसे। श्री सनातन गोस्वामी के प्रतिष्ठापित श्री मदनमोहन जी के पुराने मंदिर में रहने लगे, यहाँ अभी तक इनकी समाधि वर्तमान है। इनके पदों के कई संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। इनका समय सं. १५७० से सं. १६४० के बीच में था। ((स्व.) ब्रजरत्न दास)