सूरजमल (जन्म १७०८ ई., मृत्यु १७६३)। भरतपुर के जाट राजा बदनसिंह का दत्तक पुत्र, सूरजमल अपनी योग्यता तथा क्षमता के कारण बदनसिंह द्वारा अपने पुत्र की जगह, राज्य का उत्तराधिकारी निर्णीत हुआ। बदनसिंह के अस्वस्थ होने पर राज्य का संचालन सूरजमल ने ही संभाला। अपनी सैनिक योग्यता, कुशल शासन, चतुर राजनीतिज्ञता, तथा सबल व्यक्तित्व द्वारा उसने जाट सत्ता का अभूतपूर्व उत्थान किया।

बदनसिंह जीवनकाल में सूरजमल ने अनेक विजयें प्राप्त कीं, तथा राज्य की अभिवृद्धि की। रोहिलखंड पर विजय प्राप्त करने के उपलक्ष में मुगल सम्राट ने बदनसिंह को राजा तथा महेंद्र की उपाधियों से, और सूरजमल को कुमारबहादुर तथा राजेंद्र की उपाधियों से विभूषित किया। फिर, कुछ दिनों बाद ही सूरजमल को मथुरा का फौजदार नियुक्त किया। मराठों की विशाल सेना के विरुद्ध कुंभेर के किले का सफल बचाव करने के कारण समस्त भारत में उसकी कीर्ति व्याप्त हो गई। उसकी बढ़ती शक्ति को देख मुगल सम्राट को भी उससे संधि करनी पड़ी (२६ जुलाई, १७५६)।

बदनसिंह की मृत्यु (७ जून, १७५६) के पश्चात् राज्यारोहण के बाद से सूरजमल को अपने वीर किंतु उद्दंड पुत्र जवाहिरसिंह का विद्रोह दमन करना पड़ा (नवंबर, १७५६)। अहमदशाह शब्दावली के आक्रमणों के दौरान (१७५७-६१) विरोधी दलों का पक्ष ग्रहण करने से अपने को बचाए रखने में सूरजमल ने अद्भुत कूटनीतिज्ञता का परिचय ही नहीं दिया बल्कि अपने राज्य को भी तीव्र संकट से बचा लिया। तत्पश्चात् उसने पुन: अपना राज्य विस्तार प्रारंभ कर दिया। आगरा पर आक्रमण कर (जूल, १७६१) उसने अपार धन लूटा। मेवात में फर्रुखनगर पर उसके पुत्र जवाहिरसिंह का अधिकार होने से नजीबखाँ रोहिल्ला से उसका वैमनस्य हो गया। तज्जनित युद्ध में उस पर अचानक आक्रमण के कारण उसका बध हो गया।

सं.ग्रं. -जदुनाथ सरकार: फॉल ऑव द मुगल एंपायर; के. कानूनगो: हिस्टरी ऑव द जाट्स। (राजेंद्र नागर)