सूखा रोग (Ricket) शरीर में विटामिन डी की कमी के कारण होता है। विटामिन डी भोजन द्वारा और त्वचाश् पर सूर्य की बैंगनी किरणों के प्रभाव से शरीर को प्राप्त होता है। इसकी कमी से कैल्सियम और फास्फोरस की आंतों से सोखने में तथा उसके पश्चात् शरीर में चयापचय क्रिया का असंतुलन होकर इन अवयवों की शरीर में कमी हो जाती है। विटामिन डी की कमी जन्म से तीन वर्ष के वृद्धिकाल में विशेष रूप से पाई जाती है। शिशु रोगी, जो चल-फिर नहीं पाता, प्राय: बेचैन रहता है। सिर पर, विशेषत: सोते समय अधिक पसीना आता है, बार-बार खाँसी और दस्त हो जाते हैं, इससे पोषणजन्य अरक्तता हो जाती है। खोपड़ी का अग्रभाग उभड़ा लगता है तथा उसका अस्थि शून्य स्थान भरता नहीं है। यही रोग का मुख्य चिह्न है। छाती पर पसली संधि का स्थान चौड़ा और मोटा हो जाता है। पेट बढ़ जाता है, लंबी अस्थियों के सिरे मोटे हो जाते हैं तथा कांड खोखले होने के कारण कमान की भाँति मुड़ जाते हैं। पेशियों में दुर्बलता आ जाती है, इससे बच्चा ठीक से चल नहीं पाता। यदि रुधिर में कैल्सियम की मात्रा अधिक कम हो जाए तो शिशु को आक्षेप (convulsions) भी आने लगते हैं। रोग का निश्चित निदान रक्त की परीक्षा कर निर्धारित किया जाता है।

रोग की रोकथाम के लिए सूर्य की रोशनी, भोजन में विटामिन डी और कैल्सियम का ध्यान रखना चाहिए। जिन बच्चों को माँ का दूध उपलब्ध नहीं होता उनके खाने में विटामिन डी ४०० से ७०० मात्रक प्रतिदिन अलग से देना चाहिए। उपचार के लिए विटामिन डी २५०० मात्रक प्रति दिन कैल्सियम और कृत्रिम पराबैंगनी किरणों का व्यवहार आवश्यक चिकित्सा में है। अस्थियाँ अधिकतर रोग दूर होने तक स्वयं ठीक हो जाती हैं अन्यथा उनकी चिकित्सा विशेषज्ञ द्वारा करानी चाहिए।

(हरिबाबू माहेवरी)