सुहागा एक क्रिस्टलीय ठोस पदार्थ है जो अनेक निक्षेपों विशेषत: तिब्बत, कैलिफोर्निया, पेरू, कनाडा, अर्जेंटिना, चिली, टर्की, इटली और रूपस में साधारणतया टिंकल (Tincal) ( Na2 B4 O7 10H2O) के रूप में में पाया जाता है। इसके खनिज रेसोराइट (Rasorite) (Na2 B4 O7 4H2O) और कोलेमैनाइट (Colemanite, Ca2 B6O11 5H2O) भी पाए जाते हैं।

सुहागे के सामान्य क्रिस्टलीय रूप का सूत्र (Na2 R4 O7 10H2 O) है जो सामान्य ताप पर सुहागे के विलयन के क्रिस्टल से क्रिस्टल के रूप में प्राप्त होता है। ६०सें. से ऊपर गरम करने से यह अष्टफलकीय पेंटाहाइड्रेट (octahedral pentahydrate) (जौहरी के सुहागे) में परिणत हो जाता है। इसका जलीय विलयन क्षारीय होता है। हाइड्रोजन पेराक्साइड के उपचार से यह 'परबोरेट' सो बी ओ३ ४ हा२ ओ (Na Bo3. 4H2O) बनता है जिसका उपयोग विरंजक या आक्सीकारक के रूप में होता है। गरम करने से इसका कुछ जल निकल जाता है जिससे यह स्वच्छ काँच सा पदार्थ बन जाता है। पिघला हुआ सुहागा धातुओं के अनेक आक्साइडों से मिलकर बोरन काँच बनाता है जिसके विशिष्ट रंग होते हैं। इनका उपयगो रसायन विश्लेषण में होता है।

सुहागा का उपयोग धातुक्रम में आक्साइड धातु मलों के निकालने, धातुओं पर टाँका देने या संधान में, धातुओं के पहचानने, पानी के मृदु बनाने और रंगीन चमकीले ग्लेज तैयार करने में होता है। काँच और लोहे के पात्रों पर इसका इनेमल भी चढ़ाया जाता है। इससे महत्व का, औषधियों में उपयुक्त होने वाला कीटाणुनाशक बोरिक अम्ल प्राप्त होताहै। उर्वरक के रूप में भी सुहागे का उपयोग अब होने लगा है यद्यपि अधिक मात्रा में इसका उपयोग कुछ फसलों के लिए विषैला भी हो सकता है। (फूलदेव सहाय वर्मा)