सुसमाचार मुक्ति की खुशखबरी के लिए बाइबिल में जिस यूनानी शब्द का प्रयोग हुआ है, उसका विकृत रूप 'इंजील' है; इसी का शाब्दिक अनुवाद हिंदी में 'सुसमाचार' और अंग्रेजी में गास्पेल (Good spell) है। सुसमाचार का सामान्य अर्थ है ईसा मसीह द्वारा मुक्ति विधान की खुशखबरी (दे. ईसा मसीह)। बाइबिल के उत्तरार्ध में ईसा की जीवनी तथा शिक्षा का चार भिन्न लेखकों द्वारा वर्णन किया गया है; इन चार ग्रंथों को भी सुसमाचार कहते हैं; इनका पूरा शीर्षक इस प्रकार है- संत मत्ती (अथवा मार्क, लूक, योहन के अनुसार येसु खीस्त का सुसमाचार (दे. बाइबिल)। इन चारों को छोड़कर चर्च ने कभी किसी अन्य ग्रंथ को सुसमाचार रूप में नहीं ग्रहण किया है। संत योहन ने १०० ई. के लगभग अपने सुसमाचार की रचना की थी; शेष सुसमाचार लेखकों ने ५५ ई. और ६५ ई. के बीच लिखा था। मत्ती और योहन ईसा के पट्ट शिष्य थे, मार्क संत पीटर और संत पाल के शिष्य थे और लूक संत पाल की यात्राओं में उनके साथी थे।

ऐतिहासिकता-ईसा की मृत्यु (३० ई.) के बाद २०-३० वर्षों तक सुसमाचार मौखिक रूप में प्रचलित रहा; उसे लिपिबद्ध करने की आवश्यकता तब प्रतीत हुई जब ईसाई धर्म फिलिस्तीन के बाहर फैलने लगा और ईसा की जीवनी के प्रत्यक्षदर्शियों की मृत्यु होने लगी। ईसा के शिष्यों ने अपने गुरु के जीवन की घटनाओं पर चिंतन किया था और उनसे कुछ निष्कर्ष निकाले थे जो सुसमाचार की प्रारंभिक मौखिक परंपरा में सम्मिलित किए गए थे, फिर भी उस मौखिक परंपरा में उन घटनाओं का सच्चा रूप प्रस्तुत हुआ था क्योंकि प्रत्यक्षदर्शी तथा ईसा के शिष्य जीवित थे और सुसमाचार की सच्चाई पर नियंत्रण रखते थे। इस प्रकार सुसमाचारों के वर्तमान रूप में तीन सोपान परिलक्षित हैं अर्थात् ईसा का जीवनकाल, मौखिक परंपरा की अवधि और सुसमाचारों को लिपिबद्ध करने का समय।

प्रथम तीन सुसमाचार: मत्ती, मार्क और लूक के सुसमाचारों की पर्याप्त सामग्री तीनों में समान रूप से मिलती है, उदाहरणार्थ मार्क की बहुत सामग्री मत्ती और लूक में भी विद्यमान है। शैली, शब्दावली, बहुत सी घटनाओं के क्रम आदि बातों की दृष्टि से भी तीनों रचनाओं में सादृश्य है। दूसरी ओर उन तीनों रचनाओं में पर्याप्त भिन्नता भी पाई जाती है। कुछ बातें केवल एक सुसमाचार में विद्यमान है। अन्य बातें एक ही प्रकार से, एक ही स्थान में अथवा एक ही संदर्भ में नहीं प्रस्तुत की गई है। और जो बातें बहुत कुछ एक ही ढंग से दी गई है उनमें शब्दों के क्रम और चयन में अंतर आ गया है। विद्वानों ने उस सादृश्य एवं भिन्नता के अनेक कारण बताए हैं-(१) तीनों सुसमाचार एक ही सामान्य मौखिक परंपरा के आधार पर लिपिबद्ध किए गए हैं; (२) तीनों लिखित रूप में एक दूसरे पर आधारित है; (३) तीनों की रचना भिन्न मौखिक और लिखित सामग्री के आधार पर हुई थी। इन कारणों के समन्वय से ही इस समस्या का पूरा समाधान संभव है।

प्राचीन काल से सुसमाचारों को एक ही कथासूत्र में ग्रथित करने का प्रयास किया गया है; हिंदी में इसका एक उदाहरण है- मुक्तिदाता, काथलिक प्रेस, राँची (चतुर्थ संस्करण, १९६३)।

संत मत्ती का सुसमाचार -यह लगभग ५० ई. में इब्रानी बोलचाल की अरामेयिक भाषा में लिखा गया था; इसका यूनानी अनुवाद लगभग ६५ ई. में तैयार हुआ। मूल अरामेयिक अप्राप्य है। ईसा बाइबिल में प्रतिज्ञात मसीह भी ईश्वर के अवतार हैं, यह बात यहूदियों के लिए स्पष्ट कर देना संत मत्ती का मुख्य उद्देश्य है। संत मत्ती ने घटनाओं के कालक्रम पर अपेक्षाकृत कम ध्यान दिया है। इस सुसमाचार की भूमिका में ईसा का शैशव वर्णित है, इसके बाद उनकी जीवनी पाँच प्रकरणों में विभाजित है। प्रत्येक प्रकरण के अंत में ईसा का एक विस्तृत प्रवचन उद्धृत है। लोक प्रसिद्ध पर्वत प्रवचन (सरमन आन दि साउंट) इनमें से प्रथम है (अध्याय ५-७)। अंतिम प्रवचन येरुसलेम के भावी विनाश तथा संसार के अंत से संबंध रखता है। (अध्याय २४-२५)। उपसंहार में ईसा का दु:खभोग और पुनरुत्थान वर्णित है (अध्याय २६-२८)।

संत मार्क का सुसमाचार-संत मार्क रोम में संत पीटर के दुभाषिया थे। वहीं उन्होंने लगभग ६४ ई. में संत पीटर के प्रवचनों के आधार पर अपरिष्कृत यूनानी भाषा में अपना सुसमाचार लिखा था। ईसा के विषय में प्राचीनतम तथा सरलतम शिक्षा इस सुसमाचार में लिपिबद्ध की गई है। घटनाएँ कालक्रमानुसार दी गई हैं-प्रारंभ में योहन बपतिस्मा का कार्यकलाप वर्णित है (दे. योहन बपतिस्ता), अनंतर गलीलिया (अध्याय २-९) और इसके बाद याहूदिया तथा येरुसलेम (अ. १०-१३० में ईसा के प्रवचनों और चमत्कारों का विवरण है; अंतिम अध्यायों (१४-१६) का विषय है ईसा दु:खभोग और पुनरुत्थान। संत मार्क गैर यहूदी ईसाइयों को समझाना चाहते हैं कि ईसा के प्रवचन और चमत्कार यह सिद्ध करते हैं कि वह ईश्वर भी हैं और मनुष्य भी।

संत लूक का सुसमाचार-अधिक संभव है, गैर यहूदी संत लूक अंतिओक के निवासी थे। उन्होंने रोम अथवा यूनान में ७० ई. से पहले परिष्कृत यूनानी भाषा में अपने सुसमाचार की रचना की थी। इसके अतिरिक्त उन्होंने पट्ट शिष्यों का कार्यकलाप (ऐक्ट्स ऑव दि एपोसल्स) नामक बैविल के नवविधान का पंचम ग्रंथ भी लिखा है। वह विशेष रूप से पापियों के प्रति ईसा की दयालुता और दीनहीन लोगों के प्रति उनकी सहानुभूति का चित्रण करते हैं और इस बात पर बल देते हैं कि ईसा ने समस्त मानव जाति के लिए मुक्ति के उपाय प्रस्तुत किए हैं। ईसा के शैशव (अध्याय १-२) तथा योहन बपतिस्मा के उपदेशों की चर्चा (अ. ३) करने के बाद संत लूक ने अपने सुसमाचार में कालक्रम की अपेक्षा प्रतिपाद्य विषय पर अधिक ध्यान दिया है। ईसा के प्रवचनों तथा चमत्कारों का वर्णन करते हुए उन्होंने इसका बराबर उल्लेख किया है कि ईसा गलिलियों से राजधानी येरुसलेम की ओर बढ़ते जाते हैं, जहाँ पहुँचकर वह क्रूस पर मरकर तीन दिनों के बाद पुनर्जीवित हो जाते हैं। संत मार्क की प्राय: समस्त सामग्री इस सुसमाचार में भी विद्यमान है; दो अंशों की सामग्री और किसी सुसमाचार में नहीं मिलती। (दे. अध्याय ६, २०-८, ३ और ९, ५१-१८, १४)।

संत योहन का सुसमाचार- ईसा के पट्ट शिष्य योहन ने अपने दीर्घ जीवन के अंत में १०० ई. के आस पास संभवत: एफसस में अपने सुसमाचार की रचना की थी, इसके पहले उन्होंने तीन पत्र और प्रकाशना ग्रंथ भी लिखा था-ये चार रचनाएँ भी बाइबिल के नवविधान में सम्मिलित हैं। सन् १९३५ ई. मं संत योहन के सुसमाचार की खंडित हस्तलिपियाँ मिल गई हैं जिनका लिपिकाल १५० ई. के कुछ पूर्व है।

अन्य सुसमाचारों के ३०-४० वर्ष बाद इस ग्रंथ की रचना हुई थी। उन तीन रचनाओं में छूटी हुई सामग्री का संकलन करना संत योहन का उद्देश्य नहीं है। वह ईसा की जीवनी के विषय में अपनी व्याख्या करते हैं और उनके प्रवचनों तथा कार्यों का गूढ़ एवं आध्यात्मिक अर्थ स्पष्ट करते हैं। वह ईसा के ऐसे चमत्कारों का भी उल्लेख करते हैं जो अन्य सुसमाचारों में नहीं मिलते। ईसा की कई येरुसलेम यात्राओं का वर्णन करते हैं और भूगोल एवं कालक्रम विषयक कई नए तथ्यों का भी उद्घाटन करते हैं। वह बहुधा ईसा के प्रवचन अपने ही शब्दों में प्रस्तुत करते हैं। उनका मुख्य प्रतिपाद्य विषय इस प्रकार है- ईसा ईश्वर का शब्द है (दे. त्रित्व); वह ईसा संसार के अंधकार में आकर उसकी ज्योति बन गए हैं। जो इस ज्योति को ग्रहण करने से इनकार करते हैं वे अंधकार में रहकर मुक्ति के भागी नहीं हो पाएँगे।

सं. ग्रं.- एनसाइक्लोपीडिक डिक्शनरी ऑव दि बाइबिल, न्यूयार्क १९६३। श् ((फादर) आस्कर बेरे क्रूइसे.)