सुलेमान, डॉक्टर सर शाह मुहम्मद �(सन् १८८६-१९४१) प्रसिद्ध वकील, न्यायाधीश तथा भारतीय वैज्ञानिक का जन्म जौनपुर (उ. प्र.) के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। वकालत इस परिवार का वंशगत पेशा थी। लगभग २५० वर्ष पूर्व रचित, फारसी के प्रसिद्ध वैज्ञानिक ग्रंथ, शम्शेबज़ीघा, के लेखक, मुल्ला मुहम्मद, जिनका विद्वता के लिए बादशाह शाहजहाँ के दरबार में बड़ा सम्मान था, इनके पूर्वजों में से थे। समरकंद में तैमूरलंग के पौत्र, उलूलबेग, ने खगोल के अध्ययन के लिए उस समय की सर्वोत्तम वेधशाला बनवाई थी। इसे देखकर तत्सदृश वेधशाला भारत में भी बनवाने के लिए शाहजहाँ ने इन्हें समरकंद भेजा था।
शाह मुहम्मद सुलेमान ने जौनपुर के स्कूल में प्रारंभिक शिक्षा पाने के बाद इलाहाबाद में उच्च शिक्षा प्राप्त की। आपने स्कूल और कॉलेज की सब परीक्षाएँ सम्मान सहित प्रथम श्रेणी में पास कीं। बी.एससी. परीक्षा में विश्वविद्यालय में सर्वप्रथम आने के कारण आपको इंग्लैंड में अध्ययन करने के लिए छात्रवृत्ति भी मिली। इलाहाबाद में आपने डॉक्टर गणेश प्रसाद तथा इंग्लैंड में सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक सर जे.जे. टॉमसन के अधीन अध्ययन किया। इन दो विद्वानों के संपर्क से गणित और विज्ञान में आपकी अभिरुचि स्थायी हो गई। सन् १९१० में डब्लिन युनिवर्सिटी से एल.एल.डी की उपाधि प्राप्त कर आप भारत लौट आए। जौनपुर में एक वर्ष काम करने के बाद आपने इलाहाबाद हाइकोर्ट में बैरिस्टरी आरंभ की, जिसमें इन्हें अद्भुत सफलता मिली। सन् १९२० में ये हाइकोर्ट के स्थानापन्न जज तथा लगभग ९ वर्ष बाद स्थानापन्न प्रधान न्यायाधीश नियुक्त हुए। इसके तीन वर्ष बाद आप इस पद पर स्थायी हो गए तथा सन् १९३७ में नवसंगठित संघ अदालत (Federal Court) के जज नियुक्त किए गए।
विधि के क्षेत्र में आपने जिस असाधारण योग्यता का परिचय दिया तथा ब्रिटिश शासन में न्यायाधीश के पद पर रहकर जिस निर्भीकता से काम किया उसकी प्रशंसा मुक्त कंठ से की जाती है। मेरठ षड्यंत्र के मामले का फैसला करने में मजिस्ट्रेट की अदालत को दो वर्ष तथा सेशन जज को चार वर्ष लगे थे, किंतु आपने आठ दिन में ही अपना फैसला सुना दिया और कुछ को निर्दोष बताकर छोड़ दिया। हाइकोर्ट और फेडरल कोर्ट में दिए गए आपके फैसलों की प्रशंसा भारत तथा इंग्लैंड के विधि पंडितों द्वारा की गई है। अपने कार्यकाल में न्यायालय के अधिकारों की रक्षा के लिए सरकार का विरोध करने में भी आपने हिचक न की।
कानून के क्षेत्र में अधिकाधिक व्यस्त रहते और उत्तरोत्तर प्रगति करते हुए भी डॉक्टर सुलेमान ने गणित और विज्ञान से अपना संबंध नहीं तोड़ा, वरन् अपनी स्वतंत्र और मौलिक गवेषणाओं के कारण स्वदेश और विदेशों में प्रसिद्ध प्राप्त की। आइंस्टाइन द्वारा प्रतिपादित महत्वपूर्ण, क्रांतिकारी, अति जटिल आपेक्षिकता सिद्धांत का आपने विस्तृत अध्ययन किया। इस संबंध में अपने विचारों को स्पष्ट करने के लिए आपने 'सायंस ऐंड कल्चर' नामक सुप्रसिद्ध वैज्ञानिक पत्रिका में एक लेखमाला लिखी थी। डॉक्टर सुलेमान ने प्रकाश की गति के लिए एक समीकरण स्थापित किया, जो आइंस्टाइन के समीकरण से भिन्न था। इसे इन्होंने प्रकाशित कर दिया। सूर्य के निकट से होकर आने वाले प्रकाश के पथ में विचलन का सर सुलेमान की गणना से प्राप्त मान आइंस्टाइन की गणना से प्राप्त मान से अधिक सही पाया गया। सूर्य प्रकाश के स्पेक्ट्रम में कुछ तत्वों की रेखाएँ प्रयोगशाला में उत्पादित इन्हीं तत्वों की रेखाओं के स्थान से कुछ हटी हुई पाई जाती है। आइंस्टाइन के मतानुसार यह हटाव सूर्य के सभी भागों से आने वाले प्रकाश में समान रूप से पाया जाना चाहिए, पर वास्तविकता इसके प्रतिकूल थी। डॉक्टर सुलेमान ने अपनी गणना से इसका भी समाधान किया।
सन् १९४१ में 'नैशनल एकेडमी ऑव सायंसेज़' के दिल्ली में हुए वार्षिक अधिवेशन के आप सभापति मनोनीत हुए थे। इस समय आपने गणित पर आधारित प्रकाश की प्रकृति के संबंध में जो विचार व्यक्त किए थे, उनसे वैज्ञानिक प्रभावित हुए थे। 'इंडियन सायंस न्यूज़ एसोसिएशन' �के आप प्रमुख सदस्य तथा 'करेंट सायंस' और 'सायंस ऐंड कल्चर' नामक प्रसिद्ध वैज्ञानिक पत्रिकाओं के संपादकीय बोर्ड के सदस्य भी थे।
शिक्षा के क्षेत्र में भी आपने महत्वपूर्ण योगदान दिया। आप इलाहाबाद विश्वविद्यालय के कोर्ट तथा एक्जिक्यूटिव काउंसिल के सदस्य निर्वाचित हुए और अलीगढ़ विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर नियुक्त किए गए थे। आपके उद्योगों से अलीगढ़ विश्वविद्यालय ने बहुत उन्नति की। विश्वविद्यालय की उच्च परीक्षाओं में आपने उर्दू को स्थान दिलाया। प्रौढ़ शिक्षा के प्रसार में सक्रिय भाग लेने के कारण आप अखिल भारतीय प्रौढ़ शिक्षा सम्मेलन के सभापित चुने गए।
डॉक्टर सुलेमान की रहन-सहन बड़ी सादी थी। इनके संपर्क में जो कोई भी आता था, उनके विचारों और विद्वता से प्रभावित तो होता ही था, उनकी नम्रता, मिलनसारी और सौजन्य का भी कायल हो जाता था।श्श्
(श्रीनारायण सिंह)