सुरसा नागों की माता जिसके संबंध में तुलसीदास ने रामचरितमानस में लिखा है-

'सुरसा नाम अहिन की माता'

जब हनुमान लंका जा रहे थे तो इसने अपना मुँह फैलाकर इन्हें निगलना चाहा था, पर वे बड़े होते गए और अंत में जब सुरसा का मुँह कई योजना चौड़ा हो गया तो हनुमान छोटे बनकर उसके एक कान में से बाहर निकल आए। ((स्व.) रामज्ञा द्विवेदी)