सीसा अयस्क (Lead) राजपूताना गजेटियर के अनुसार राजस्थान के झाबर क्षेत्र में सन् १३८२-९७ में ही सीसा तथा चाँदी की खानों का अन्वेषण हो चुका था किंतु प्रथम बार राज्य द्वारा इस क्षेत्र का विधिवत् पूर्वेक्षण सन् १८७२ में किया गया। कुछ सूत्रों से यह भी ज्ञात हुआ है कि अजमेर के समीप तारागढ़ पहाड़ियों में सीसे के निक्षेपों में अनेक वर्षों तक कार्य होता रहा है और सन् १८५७ के पूर्व जब इन खानों से उत्पादन बंद हुआ, यहाँ का उत्पादन १४,००० मन प्रति वर्ष तक पहुँच गया था। भारतीय भूतात्विक समीक्षा के अभिलेखों के अनुसार भारत के गैलेना (PbS) की प्राप्ति अनेक भागों जैसे बिहार, उड़ीसा, हिमाचल प्रदेश एवं तमिलनाडु आदि से भी हो सकती है किंतु अभी तक विस्तृत पूर्वेक्षण कार्य पूर्ण नहीं हुआ है जिससे सीसा आदि के अयस्कों के गुप्त भंडारों का पता लग सके। अक्टूबर, १९४५ में झाबर क्षेत्र के लिए पूर्वेक्षण प्रपत्र, राजस्थान सरकार ने मेसर्स मेटल कॉर्पोरेशन ऑव इंडिया लि. को दिया। इस कंपनी ने तभी से मोबिया मोगरा पहाड़ियों में विस्तृत खनन कार्य प्रारंभ कर दिया है। समीप के अन्य क्षेत्रों में भी पूर्वेक्षण किया जा रहा है। सन् १९५५-५६ तक यह कंपनी एक करोड़ से अधिक रुपए खनन एवं धातु शोधन कार्यों में लगा चुकी है। पूँजीगत माल (Capital goods), यातायात तथा अन्य साधना की उपलब्धि में अनेक कठिनाइयाँ होते हुए भी इन खानों तथा प्रगलन संयंत्रों (Smelting Plants) का पर्याप्त विकास हुआ है। भारत में इस समय सीसा, जस्ता तथा चाँदी के पूर्वेक्षण, खनन, तथा प्रसाधन (Dressing) आदि के कार्य राजस्थान के झाबर क्षेत्र में ही केंद्रित हैं।

सीसा और जस्ता-खनिज प्राय: साथ-साथ ही पाए जाते हैं। और बहुधा इनके साथ अल्प मात्रा में चाँदी भी प्राप्त होती है।

झाबर खानें-ये खानें अरावली पर्वतमाला के अंतर्गत २२२३उ. तथा ७२४३पू. दे. पर स्थित हैं। मोचिया मोगरा पहाड़ी खनन कार्य का मुख्य भाग है जो उदयपुर नगर के ठीक दक्षिण में २७ मील की दूरी पर स्थित है। पहाड़ियों की ऊँचाई घाटी तल से लगभग ४००�-५००तक है। पेषण (Milling) कार्य के लिए जल वितरण का प्रश्न अभी तक मुख्य समस्या थी किंतु अब अवमृदा बाँध (Subsoil dam) तथा अंत:स्रावी कूपों Percolating wells) ने, जिनका निर्माण तीरी नदी नितल (Bed) पर स्थित किया गया है, इस समस्या का भी सफल समाधान कर दिया है।

झाबर क्षेत्र की भूतात्विक समीक्षा- विशाल क्षेत्रों में खनिजायन (Meneralization) प्राप्य है जिसमें मुख्यत: दो खनिज, जिंक ब्लेंड (Zinc Blends) तथा गैलेना, मिलते हैं। यह खनिज रेतमय (Siliceous) डोलोमाइट (Dolomite) में प्राप्त होते हैं। निक्षेप मुख्यत: विदर पूरण (Fissure Filling) प्रकार के हैं तथा शिलाओं के साहचर्य में फायलाइट्स (Phyllites) पाए जाते हैं। मोचिया मोगरा पहाड़ी दो मील से भी अधिक लंबाई में पूर्व पश्चिम दिशा में फैली हुई है। इसकी चौड़ाई पूर्वी किनारे पर १ मील से कुछ कम तथा पश्चिम में एक मील के लगभग है। मुख्य अयस्क काय (Ore body), श्जहाँ खनन कार्य हो रहा है, संरचना में एक कर्तन कटिबंध (Shear Zone) द्वारा प्रतिबंधित है तथा इसका विस्तार पूर्णत: पूर्व पश्चिम में है। कर्तन कटिबंध की चौड़ाई अनेक स्थानों पर भिन्न-भिन्न है। प्रधान अयस्क काय सघन (Compact) है तथा ऊपरी कटिबंध में अधिक समृद्ध किंतु नीचे की ओर चौड़ी तथा कम संकेंद्रित है। अधिक पूर्व की ओर अयस्क मुख्यत: समृद्ध गोंहों (Pockets) में प्राप्त होती है। अयस्क कार्यों का उद्भव मध्यतापीय (Mesothermal) है। अयस्क खनिज, प्रतिस्थापित पट्टिकाओं, स्तारित कटिबंधों (Sheeted Zones) तथा बिखरे हुए (Disseminated) एवं व्यासृत (Dispersed) सिघ्मों के रूप में पाए जाते हैं। स्थूल दानावाला (Coarse Graine) गैलेना की विशाल गोहें सीसा समृद्ध क्षेत्र में प्राप्त होती हैं। मुख्य अयस्क खनिजों, गैलेना और स्फेलेराइट (Sphalerite) के साहचर्य में पायराइट भी अनेक स्थानों में मिलता है। स्फेलेराइट यद्यपि कुछ स्थानों पर अत्यंत संकेंद्रित है तथापि अधिकतर नियमित रूप से वितरित है। गैलेना बड़ी या छोटी गोहों में ही प्राप्त होता है। चाँदी मुख्यत: गेलेना के साथ ही ठोस विलयनों में मिलती है तथा उच्च संस्तभों (Horizons) में यह कभी कभी प्राकृत रूप (native form) में पाट तथा विदरों में पूरण के रूप में पाई जाती है। अयस्क भंडारों, जिनकी गणना सन् १९५४ में की गई है तथा जिनमें सीसा और जस्ता दोनों ही संमिलित हैं, का अनुमान २५ लाख टन के लगभग है। मिश्रण में जस्ता ४.५% तथा सीसा २.३% है।

भावी योजनाएं- ५०० टन प्रति दिन का खनन कार्यक्रम जून, १९५७ ई. से प्रारंभ हो चुका है। पेषण क्षमता (Milling Capacity) भी १९५६ ई. के प्रारंभ में ही ५०० टन प्रति दिन पहुँच चुकी है। सभी कार्यों में गति लाने के लिए आधुनिक यंत्रों का प्रयोग किया जा रहा है। विद्युत द्वारा उत्स्फोटन (Blasting) भी अभी प्रायोगिक अवस्था में ही है। एडिट्स (Adits) के चलन (driving) द्वारा पूर्वेक्षण भी झाबरमाला पहाड़ी पर प्रारंभ हो चुका है। ८००-१००० फुट तक अयस्क के खनन के लिए गभीर-हीरक-व्यधन कार्य भी सन् १९५६ के नवंबर मास से मोचिया मोगरा तथा अन्य समीप के स्थानों में विकास पर है।

सीसे का शोधन झरिया के कोयला क्षेत्र स्थित टूंडू नामक स्थान पर किया जाता है जिससे लगभग २५,०० टन सीसा धातु प्राप्त होती है। यह देश की आवश्यकता से बहुत कम है और प्रति वर्ष लगभग ८,००० टन सीसा आयात करना पड़ता है। (विद्यासागर दुबे)