सीटाे (साउथ ईस्ट एशिया ट्रीटी आर्गेनाइजेशन) फिलिपीन की राजधानी मनीला में सितंबर, १९५४ ई. में ८ देशों ने एक सैनिक समझौता किया जिसे सीटो (दक्षिण पूर्व एशिया संधि संगठन) की संज्ञा दी गई। प्रारंभिक वर्षों में समाचारपत्रों की भाषा में इसे 'मनीला समझौता' भी कहा गया, किंतु बाद में सीटो ने अधिक प्रचलन पाया और अब यह उसी नाम से जाना जाता है। इस समझौते में जो देश शामिल हुए उनके नाम हैं-फ्रांस, न्यूजीलैंड, पाकिस्तान, फिलिपीन, थाईलैंड (स्याम), ब्रिटेन और अमरीका। इस समझौते की पृष्ठभूमि में इससे पूर्व जेनेवा में हुआ ९ राष्ट्रों का वह सम्मेलन था जिसके फलस्वरूप औपचारिक रूप से हिंद-चीन-युद्ध का अंत हुआ था। जेनेवा समझौता, दिया बियाँ फू में फ्रांस की पराजय के कारण पश्चिमी राष्ट्रों पर लादा गया समझौता था इसलिए उन देशों के युद्ध विशेषज्ञों ने यह नया समझौता कम्युनिस्टों का मुकाबला करने के लिए किया। इस समझौते के मुख्य समर्थक तत्कालीन अमरीकी परराष्ट्र सचिव जान फास्टर डलेस थे। उनका कहना था कि 'यदि संपूर्ण दक्षिण पूर्व एशिया को बचाया जा सके तो उसे बचाया जाए और ऐसा संभव न हो तो उसके कुछ महत्वपूर्ण भागों की रक्षा अवश्य की जाए।' श्री डलेस को आस्ट्रेलिया के प्रतिनिधि श्री रिचर्ड केसी का समर्थन प्राप्त हुआ। ब्रिटेन की ओर से विंस्टन चर्चिल साम्यवाद के खिलाफ एक एशियाई समझौते के विचार को पहले ही स्वीकार कर चुके थे। परिणामस्वरूप वाशिंगटन में मनीला समझौते का मसौदा तैयार करने के लिए एक दल नियुक्त किया गया। उस दल ने समझौते की जो रूपरेखा तैयार की, आम तौर से उसी की पुष्टि की गई। इसका प्रधान कार्यालय बैंकाक में है। कार्यालय सदस्य देशों की सहायता से चलता है। यद्यपि सीटो का अस्तित्व आज तक कायम है तथापि सदस्यों में मतभेद के कारण आज तक यह अपने लक्ष्य की न तो पूर्ति कर सका है और न परीक्षा की घड़ियों में खरा उतरा है। (चंद्रशेखर मिश्र)