सिलिकन कार्बाइड (Silicon Carbide, SiC) अथवा कार्बोरंडम (Carborundum) सिलिकन तथा कार्बन का यौगिक है। इसकी खोज सन् १८९१ में एडवर्ड ऑचेसन (Edward Acheson) ने की थी। चीनी मिट्टी तथा कोयले के मिश्रण को कार्बन इलैक्ट्रोड की भट्ठी में गरम करने पर कुछ चमकीले षट्कोण क्रिस्टल मिले। आचेसन ने इसे कार्बन तथा ऐल्यूमिनियम का नया यौगिक समझा और इसका नाम कार्बोरंडम प्रस्तावित किया। उसी काल में फ्रांसीसी वैज्ञानिक हेनरी मोयसाँ (Henri Moisson) ने क्वार्ट्ज तथा कार्बन की अभिक्रिया द्वारा इसे तैयार किया था। कठोरता के कारण इसकी अपघर्षक (Abrasive) उपयोगिता शीघ्र ही बढ़ गई। आजकल इसका उत्पादन बड़ी मात्रा में हो रहा है।

सिलिकन कार्बाइड के क्रिस्टल षड्भुजीय प्रणाली (Hexagonal system) के अंतर्गत आते हैं। ये १ सेमी बड़े और आधे सेमी की मोटाई तक के बनाए गए हैं। विशुद्ध सिलिकन कार्बाइड के क्रिस्टल चमकदार तथा हल्का हरा रंग लिए रहते हैं जिनका अपवर्तनांक (refractive index) २.६५ है। सूक्ष्म मात्रा की अशुद्धियों से इनका रंग नीला या काला हो जाता है। १०० सेमी के लगभग इन पर हल्की सिलिका (Si O2) की परत जम जाती है।

सिलिकन कार्बाइड का उत्पादनश् विशुद्ध रेत (Si O2) तथा उत्तम कोयले के सम्मिश्रण द्वारा विद्युत भट्ठी में होता है। संयुक्त राष्ट्र अमरीका तथा कनाडा में नियागरा जलप्रपात के समीप इसके उत्पादन केंद्र हैं क्योंकि यहाँ पर विद्युत प्रचुर मात्रा में तथा सस्ती मिलती है। नार्वे तथा चेकोस्लोवाकिया में भी यह औद्योगिक पैमानों पर बनाया जाता है। इसकी भट्ठी लगभग २० से ५० फुट लंबी, १० से २० फुट चौड़ी तथा १० फुट गहरी होती है जिसमें १० और ६ के अनुपात में रेत और कोयले का मिश्रण रखते हैं। साथ में लकड़ी का बुरादा मिला देने से रध्रंता आ जाती है। इस मिश्रण के बीच में कोयले के मोटे चूरे की नाली बनाते हैं जिसके दोनों सिरों पर कार्बन इलैक्ट्रोड रहते हैं। आरंभ में ५०० वोल्ट का विद्युत विभव प्रयुक्त करने पर लगभग २५००सें. का उच्च ताप उत्पन्न होता है। क्रिया के आरंभ होने पर, धीरे-धीरे विभव को कम करते जाते हैं जिससे ताप सामान्य रहे। इस काल में नियंत्रण अति आवश्यक है। भट्ठी के मध्य में सिलिकन कार्बाइड समुचित मात्रा में बन जाने पर क्रिया रोक दी जाती है। इस क्रिया में विशाल मात्रा में कार्बन मोनोआक्साइड (CO) का उत्पादन होता है।

सिलिकन कार्बाइड की कठोरता, विद्युत, चालकता तथा उच्च ताप पर स्थिरता के कारण इसका प्रयोग रेगमाल पेषण चक्की (grinding wheel) और उच्च ताप में प्रयुक्त ईटों आदि के बनाने में हुआ है।

सिलिकन कार्बाइड की विद्युत चालकता उच्च ताप पर बढ़ती है जिससे उच्च ताप पर यह उत्तम चालक है।

(रमेश् चंद्र कपूर)