सिलिकन (Silicon) आवर्त सारणी के चतुर्थ समूह का दूसरा अधातु तत्व है। इसके तीन स्थायी समस्थानिक, जिनके परमाणु भार क्रमश: २८,२९ है। यह स्वतंत्र अवस्था में नहीं मिलता।

सिलिकन डाई आक्साइड अथवा सिलकन को वैज्ञानिक प्राचीन काल से तत्व मानते आए हैं। सर्वप्रथम फ्रांसीसी वैज्ञानिक लेवाजिये ने यह बताया कि यह तत्व न होकर आक्साइड यौगिक है। १८२३ ई. में स्वीडन के रसायन व बर्जीलियस ने इस तत्व के पोटैशियम सिलिको फ्लोराइड (K2 Si F6) का पोटैशियम धातु द्वारा अपचयन कर प्राप्त किया। १८५४ में फ्रांसीसी वैज्ञानिक सांत क्लेर देविल (Sainte Claire Deville) ने इसे विशुद्ध अवस्था में तैयार किया।

उपस्थिति-भूपर्पटी का चौथाई भाग सिलिकन है। यह ऑक्सीन के बाद सबसे अधिक मात्रा में पाया जाने वाला तत्व है और संयुक्त अवस्था में प्राय: सभी स्थानों में पाया जाता है। ऑक्सीजन जन से संयुक्त केवल सिलिकन डाईऑक्साइड (Si O2) है। रेत अथवा सिलिकेट्स के रूप में पत्थरों, मिट्टी तथा खनिज पदार्थों में सिलिकन सर्वदा उपस्थित है। अनेक पौधों तथा पशु शरीर में भी यह मिलता है।

निर्माण-विद्युत भट्ठी में कार्बन द्वारा सिलिकन के डाईआक्साइड को अपचन कराकर सिलिकन प्राप्त किया जाता है। ऐल्यूमिनियम, पोटैशियम या जिंक की सिलिकन क्लोराइड (Si Cl4) पर क्रिया द्वारा भी सिलिकन तत्व बनाया गया है। रक्त तप्त टेंटेलम पर सिलिकन क्लोराइड के विघटन द्वारा विशुद्ध अवस्था में सिलिकन प्राप्त होता है।

गुण धर्म -विशुद्ध सिलिकन मिलना कठिन है। अन्य तत्वों की सूक्ष्म मात्रा द्वारा इसके गुणों में बहुत अंतर आ जाता है, जिसके कारण विभिन्न विधियों से प्राप्त सिलिकन के गुण भिन्न-भिन्न ही मिलते हैं। विशुद्ध सिलिकन के कुछ स्थिरांक जैसे संकेत (Si) परमाणु संख्या १४, परमाणु भार २८.०८६, गलनांक १४१०सें., क्वथनांकन २६८०सें., घनत्व २.३३ ग्राम प्रति घ. सेंमी. परमाणु व्यास १.३२ एंगस्ट्राम, विशिष्ट ताप ०.१६२ कैलोरी और वर्तनांक ४.२४ हैं। सिलिकन क्रिस्टलीय और अक्रिस्टलीय दोनों अवस्थाओं में मिलता है। क्रिस्टल सिलिकन में धातु की सी चमक और विद्युत चालकता होती है। यह काँच से भी कठोर है।

सिलिकन जल या साधारण अम्लों से प्रभावित नहीं होता। केवल हाइड्रोफ्लोरिक अम्ल की क्रिया द्वारा फ्लोरोसिलिसिक अम्ल (H2 Si F6) बनाता है। उबलते क्षार के विलयन की अभिक्रिया द्वारा सिलिकेट बनता है। फ्लोरीन तथा क्लोरीन गैस सिलिकन से शीघ्र किया कर क्रमश: सिलिकन फ्लोराइड (Si F4) और सिलिकन क्लोराइड (Si Cl4) बनाते हैं। उच्च ताप पर ऑक्सीजन, जलवाष्प तथा अनेक धातुएँ सिलिकन से अभिक्रिया करती हैं।

सिलिकन चतुर्थ समूह का तत्व होने के कारण कार्बन से अनेक गुणों में मिलता-जुलता है। सिलिकन परमाणु के बाहरी कक्ष में चार इलेक्ट्रॉन हैं। ये इलेक्ट्रॉन अन्य तत्वों के इलेक्ट्रॉनों से मिलकर चार सहसंयोजक बंध बनाते हैं। इन बंधों में कार्बन से अधिक आयनिक गुण वर्तमान हैं। फिर भी इसके सहसंयोजक बंध बनाते हैं। इस बंधों में कार्बन से अधिक आयनिक गुण वर्तमान हैं। फिर भी इसके सहसंयोजक गुण प्रधान होते हैं। कभी-कभी चार संयोजकता से अधिक के यौगिक भी मिलते हैं।

यौगिक-सिलिकन के यौगिकों में बहुलकीकरण (polymerization) की विशेष प्रवृत्ति रहती है। यह जल के साथ शीघ्र जल अपघटित हो सिलिकन डाईऑक्साइड (Si O2) या अन्य सिलिकेट में परिणत हो जाते हैं। रेत अथवा सिलिका अत्यंत सामान्य यौगिक है। यह क्रिस्टलीय तथा अक्रिस्टलीय दोनों दशाओं में मिलता है। क्रिस्टलीय सिलिका को क्वार्ट्ज कहते हैं जो रंगहीन पारदर्शी गुण का है। सूक्ष्म मात्रा में अशुद्धियों की उपस्थिति से यह विभिन्न रत्न बनाता है जैसे नीलमणि, सूर्यकांतमणि, सुलेमानी पत्थर आदि।

सिलिकन के हैलोजनों से प्राप्त सिलिकन फ्लोराइड (Si F4) गैस है, सिलिकन क्लोराइड (Si Cl4, क्वथनांक ५७सें.) तथा ब्रोमाइड (Si I4, क्वथनांक १५३सें.) द्रव है और सिलिकन आयोडाइड (Si I4) ठोस है जिसका गलनांक १२१सें., तथा क्वथनांक २९०सें. है।

सिलिकन डाईआक्साइड तथा कार्बन के मिश्रण को विद्युत भट्ठी में गर्म करने से सिलिकन कार्बाइडश् (Si C) बनता है जो अत्यंत कठोर पदार्थ है (सं.-सिलिकन कार्बाइड)।

कार्बनिक यौगिकों में सिलिकन परमाणु प्रविष्ट करने पर बने पदार्थों को सिलिकोन कहते हैं।

इनके असाधारण गुणों के फलस्वरूप अनेक उपयोग हैं। सिलिकोन की ग्रीज न सूखने वाली होती है और उच्च निर्वात (Vacuum) में काम आती है। कुछ ऐसे तैल पदार्थ भी बने हैं जिनकी किसी सतह पर परत चढ़ाने पर उसकी रक्षा हो सकती है। आजकल अनेक ऐतिहासिक इमारतों के बचाव के लिए उनकी सफाई करने के पश्चात् सिलिकोन का लेप लगाया जाता है।

पृथ्वी की चट्टानें सिलिकेट पदार्थों से बनी हैं। अनेक स्थानों पर विशुद्ध क्वार्ट्ज भी मिलता है परंतु अन्य धातुओं के सिलिकेट ही प्राय: मिलते हैं। कुछ सिलिकेट कृत्रिम विधियों द्वारा भी बनाए गए हैं।

सोडियम या पोटैशियम के जल विलयन को सांद्र करने से काँच सा पदार्थ मिलता है जिसे जलकाँच (water glass) कहते हैं। वास्तव में साधारण काँच को भी मिश्रित सिलिकेटों का सांद्र विलयन समझना चाहिए। सिलिकेटों की संरचना पर बहुत अनुसंधान हुआ है और इसी के आधार पर सिलिकेट समूहों का विभाजन भी हुआ है। कुछ सिलिकेटों की बनावट तीनों आयामों (dimensions) के जाल की सी होती है। कुछ की बनावट मुख्य तथा दो आयामों की होती है। यह चादर की सी बनावट के सिलिकेट हैं, जैसे अभ्रक (mica) आदि। कुछ लंबी शृंखला के या गोलाकार बनावट के सिलिकेट भी होते हैं। कुछ सिलिकेट छोटे परमाणु के भी होते हैं जिनकी बनावट चतुष्फलकीय (tetrahedral) रूप की होती है।

उपयोग-सिलिकन का उपयोग मिश्र धातु बनाने में होता है। सिलिकन मिश्रित लोह रासायनिक रूप से प्रतिरोधी होता है। विद्युत उद्योग में भी ऐसी मिश्र धातु का उपयोग हुआ है। सिलिकोन पदार्थों का वर्णन ऊपर किया जा चुका है। सिलिकेट पदार्थ चीनी मिट्टी के उद्योग, भट्ठियाँ बनाने में और काँच उद्योग में काम आते हैं। इनके अतिरिक्त धातुकर्म में सिलिका का उपयोग अशुद्धियों को हटाने के लिए किया जाता है। (रमेशचंद्र कपूर)