सिरिस फ्रांसिस हेअर (लुथरन सोसायटी) सिरिल फ्रांसिस हेअर का जन्म २८ फरवरी, १८०० को अमरीका के बोस्ट नगर में हुआ था। यहाँ के विश्वविद्यालय से उन्होंने एम.ए. की परीक्षा पास की। इसके बाद उन्होंने न्यूयार्क विश्वविद्यालय से पी-एच.डी. तथा डी.डी की डिग्रियाँ प्राप्त कीं।
सी.एफ, हेअर साधारणत: फादर हेअर के नाम से पुकारे जाते थे। वे अमरीका में ही प्रचार करते और होम मिशन का काम चलाते थे। बाद में वे जनरस सोसायटी की ओर से विदेश के लिए मिशनरी नियुक्त किए गए परंतु उन्होंने इसे अस्वीकार कर दिया क्योंकि वे लूथरन सोसायटी की ओर से ही मिश्नरी होकर जाना चाहते थे। उसके बाद वे अमरीका बोर्ड में काम करने लगे और अंत में पेनसिलवेनिया प्रांत के उपदेशकों की मिश्नरी सोसाइटी के मातहत मिश्नरी नियुक्त स्वीकार की।
फादर हेअर बोस्टन शहर से १४ अक्टूबर, १८४१ को रवाना हुए और छह माह की यात्रा के बाद सिलोन पहुँचे। वहाँ से पालम-कोटा नामक स्थान में पहुँचे। वहाँ पर मिशन का काम पहले से चालू हो चुका था। इसलिए उन्होंने वहाँ अपनी आवश्यकता नहीं समझी और दक्षिण भारत के तेलुगु प्रदेश की ओर बढ़े। वे नेलोर नामक स्थान में गए। वहाँ भी मिशन का काम आरंभ हो चुका था सो वे उत्तर की ओर आगे बढ़े। नेलोर से उनके साथ ह्वान हुएन नामक मिश्नरी भी साथ गए। वहाँ से सौ मील दूर स्थित ओन्गोले पहुँचकर उन्होंने देखा कि वह मिशन स्टेशन के लिए बहुत उपयुक्त स्थान है, परंतु वे वहाँ न ठहरकर और आगे बढ़ गए। पचास मील उत्तर की ओर और आगे जाने पर वे गुंटूर नामक स्थान पर पहुंचे।
गुंटूर में सर हेनरी स्टोक्स नामक अंग्रेज जिला मजिस्ट्रेट रहते थे जो ऐंग्लीकन मंडली के सदस्य थे। वे अपनी मंडली से बहुत समय से विनय कर रहे थे कि वह गुंटूर में मिशनरी का काम आरंभ करे परंतु मंडली ने कोई ध्यान नहीं दिया। फादर हेअर से मिलकर वे अत्यंत प्रसन्न हुए और समझा कि परमेश्वर ने ही उनकी प्रार्थना के उत्तर में इस मिश्नरी को भेजा है। उन्होंने फादर हेअर का हार्दिक स्वागत किया और उन्हें एक मकान देकर उनसे विनती की कि वे अपना मिशन आरंभ करें।
गुंटूर से पचास मील की दूरी पर मसूलीपट्टम नामक एक स्थान है जहाँ मिशन स्टेशन खोला जा चुका था और पादरी राबर्ट नोब्ल वहाँ काम करते थे। यह स्टेशन कुछ समय पहले ही खोला गया था इसलिए सर हेनरी स्टोक्स की विनय स्वीकार करने के पहले फादर हेअर ने पादरी नोब्ज से परामर्श करना उचित समझा। उन्होंने नोब्ल से मिलकर यह निश्चय कर लिया कि उनका मिशन गुंटूर में स्टेशन नहीं खोल रहा है। नोब्ल सहाय ने फादर हेअर से कहा कि उनका आगमन मानों परमेश्वर की प्रेरणा और अगुवाई से ही हुआ है, क्योंकि वे इस क्षेत्र के लिए निरंतर प्रार्थना कर रहे थे। उनका आगमन मानों उनके ही प्रार्थनाओं का उत्तर है।
इस सब साक्षियों और प्रमाणों से फादर हेयर को भी ऐसा मालूम हुआ कि परमेश्वर ने ही उनको इस क्षेत्र के लिए बुलाया है और अगुवाई की है। इसलिए उन्होंने वहाँ मिश्नरी का काम करना आरंभ कर दिया। उन्होंने ३१ जुलाई, १८४२ को यह निश्चय किया। पहली आराधना की सभा स्टोक्स साहब के मकान में हुई जिसमें फादर हेअर (लुथरन मिश्नरी), सर स्टोक्स (ऐंग्लीकन), बैपटिस्ट मिश्नरी जो उनके साथ आए थे, और लंदन सोसायटी के कुछ मिश्नरी, जो विशाखापटनम जाने के लिए रास्ते में वहाँ रुक गए थे, शामिल थे। इस प्रकार गुंटूर में लूथरन मिशन का काम आरंभ हुआ और कुछ समय बाद बहुत ही प्रख्यात क्षेत्र हो गया।
पैरा है १० दिसंबर, १८६६ को डॉक्टर हेअर स्वदेश लौटे। वे जर्मनी से होकर जा रहे थे। जिस समय वे जर्मनी में थे उस समय उन्होंने सुना कि लूथरन मिशन अपना काम चर्च मिशन सोसायटी को सौंप रही है। यह उन्हें पसंद नहीं था। इसलिए वे इसका विरोध करने अमरीका गए। उन्हीं दिनों पेंसिलवेनिया के उपदेशकों की बैठक हो रही थी। डाक्टर हेम्रर अपने साथ दो व्यक्ति ले गए थे जो भारत में मिशनरी के काम के लिए तैयार थी। १८६९ में वे भारत आए और सोसायिटी को मिशन स्टेशनों को सौंपने की तैयारी करने लगे और यह पूरी हो जाने पर दो नए मिशनरी आए जो पहले से सेवा के लिए तैयार थे।
श्उस समय गुंटर में ६८० सदस्य थे और १९२ उम्मेदवार शिक्षकों को मिलाकर ३४ देशी कर्मचारी थे।
१ दिसंबर, १८६९ से डाकेटर हेम्रर राजमुंदरी में मिशनरी का काम करने लगे जहॉ उपयुक्त एच.सी. स्मिट और जे.सी.एफ. बेकर नए मिशनरी उनसे मिले। बेकर साहब पॉच छह महीना पीछे आए थे परंतु इसी बीच में स्मिट साहब की मृत्यु हो गई थी। २६ नवंबर, १८७१ को डॉक्टर हेम्रर अमरीका लौट गए।
डाक्टर हेम्रर की मृत्यु १५ मार्च, १८८० को बोस्टन नगर में हुई। वे लूथरन सोसायटी से बड़ा प्रेम रखते थे और इसी सोसायटी का काम करना पसंद करते थे। वे लूथरन सोसायटी के कर्मठ सदस्य थे। उनका नाम लूथरन सोसायटी के इतिहास में स्वणाक्षिरों से लिखा हुआ है। वे प्रत्येक मनुष्य को अपना मित्र समझते थे और हर जाति के महान पुरुषों का आदर करते थे।