साहित्य अकादेमी अथवा 'नेशनल अकादेमी ऑव लेटर्स' का विधिवत् उद्घाटन भारत सरकार द्वारा १२ मार्च, १९५४ को हुआ था। भारत सरकार के जिस प्रस्ताव में अकादेमी का विधान निरूपित किया गया था, उसमें अकादेमी की परिभाषा यह दी गई थी-'भारतीय साहित्य के विकास के लिए कार्य करने वाली एक राष्ट्रीय संस्था, जिसका उद्देश्य होगा ऊँचे साहित्यिक प्रतिमान कायम करना, विविध भारतीय भाषाओं में होने वाले साहित्यिक कार्यों को अग्रसर करना और उनमें मेल पैदा करना तथा उनके माध्यम से देश की सांस्कृतिक एकता का उन्नयन करना।' यद्यपि यह संस्था सरकार द्वारा स्थापित की गई है, फिर भी इसका कार्य स्वायत्त रूप से चलता है।

अकादेमी की चरम सत्ता ७० सदस्यों की एक परिषद् (जनरल काउंसिल) में न्यस्त है, जिसका गठन इस प्रकार से होता है: अध्यक्ष, वित्तीय सलाहकार, भारत सरकार द्वारा मनोनीत पाँच व्यक्ति, पंद्रह राज्यों के पंद्रह प्रतिनिधि, साहित्य अकादेमी द्वारा मान्यता प्राप्त सोलह भाषाओं के सोलह प्रतिनिधि, भारत के विश्वविद्यालयों के बीस प्रतिनिधि, परिषद् द्वारा चुने हुए साहित्य क्षेत्र में विख्यात आठ व्यक्ति एवं संगीत नाटक अकादेमी और ललित कला अकादेमी के दो दो प्रतिनिधि। इसके प्रथम अध्यक्ष थे जवाहरलाल नेहरू और उपाध्यक्ष डॉ. जाकिर हुसेन।

पांडेय बेचन शर्मा उग्र

हरिनारायण आप्टे

टामस हार्डी

विनायक दामोदर सावरकर

हिमालय-प्रकृति का क्रीड़ास्थल

साहित्य अकादेमी की सामान्य नीति और उसके कार्यक्रम के मूलभूत सिद्धांत परिषद् द्वारा निर्धारित होते हैं और उन्हें कार्यकारी मंडल के प्रत्यक्ष निरीक्षण में क्रियान्वित किया जाता है। प्रत्येकश् भाषा के लिए एक परामर्श मंडल है, जिसमें प्रसिद्ध लेखक और विद्वान होते हैं, जिसके परामर्श पर तत्संबंधी भाषा का विशिष्ट कार्यक्रम नियोजित और कार्यान्वित होता है। इनके अतिरिक्त कतिपय विशिष्ट योजनाओं के लिए विशेष संपादक मंडल और परामर्श मंडल भी हैं।

परिषद का कार्यक्रम ५ वर्ष का होता है। वर्तमान परिषद् का निर्वाचन १९६३ में हुआ था और उसका प्रथम अधिवेशन मार्च, १९६३ में। अकादेमी के अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, कार्यकारी मंडल के सदस्यों एवं अधीनस्थ समितियों का निर्वाचन परिषद् द्वारा होता है।

भारत के संविधान में परिगणित चौदह प्रमुख भाषाओं के अतिरिक्त साहित्य अकादेमी ने अंग्रेजी और सिंधी भाषाओं को भी न्यूनाधिक रूप में अपना कार्यक्रम क्रियान्वित करने के लिए मान्यता दी है। इन भाषाओं के लिए पृथक् परामर्श मंडल भी गठित किए गए हैं।

साहित्य अकादेमी का मुख्य कार्यक्रम अनेक भाषाओं के देश भारत की विशिष्ट परिस्थिति से उत्पन्न चुनौती का सामना करने की दिशा में है, कि यद्यपि विभिन्न भाषाओं में रचा जाने पर भी भारतीय साहित्य एक है, फिर भी एक ही देश में एक भाषा के लेखक और पाठक अपने ही देश की पड़ोसी भाषा की गतिविधि के संबंध में प्राय: अनजान रहते हैं। इसलिए यह आवश्यक है कि भाषा और लिपि की दीवारों को लाँघकर भारतीय लेखक एक-दूसरे से अधिकाधिक परिचित हों, और इस देश की साहित्यिक विरासत की विविधता और अनेक रूपता का रस अधिकाधिक ग्रहण कर सकें।

अकादेमी के कार्यक्रम में इस चुनौती का उत्तर दो तरह से दिया गया है। एक तो सभी भारतीय भाषाओं में जो साहित्यिक कार्य चल रहा है उनके विषय में जनकारी देने वाली सामग्री प्रकाशित की जा रही है, उदाहरणार्थ 'भारतीय साहित्य की राष्ट्रीय ग्रंथ सूची,' 'भारतीय साहित्यकार परिचय,' 'विभिन्न भाषाओं के साहित्य के इतिहास,' 'अकादेमी की पत्रिका,' 'डियन लिटरेचर' इत्यादि, और दूसरे प्रत्येक भाषा से चुने हुए प्राचीन और नवीन श्रेष्ठ ग्रंथों का अनुवाद अन्य भाषाओं में कराया जाता है, जिससे हिंदी, बँगला, तमिल आदि प्रमुख भारतीय भाषाओं के उत्तम लेखकों को देश की सभी प्रमुख भाषाओं में पाठक प्राप्त हों।

साथ ही प्रमुख विदेशी श्रेष्ठ ग्रंथों का सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं में अनुवाद करने का भी कार्यक्रम है, जिससे विश्व के महान साहित्यिक ग्रंथ अंग्रेजी जानने वाली अल्पसंख्यक जनता को ही नहीं, वरन् सभी भारतीय पाठकों को सुलभ हों। साहित्य अकादेमी यूनेस्को के 'ईस्ट वेस्ट मेजर प्रोजेक्ट' नामक कार्यक्रम की पूर्ति में भी सहयोग देती है और विदेशों की साहित्य एवं सांस्कृतिक संस्थाओं से साहित्यिक सूचनाओं और साहित्यिक सामग्री का आदान-प्रदान भी करती है।

अकादेमी के महत्वपूर्ण प्रकाशनों में 'भारतीय साहित्य ग्रंथ सूची' (बीसवीं शती), भारतीय साहित्यकार परिचय,' 'आज का भारतीय साहित्य,' 'समसामयिक भारतीय कहानियों के प्रतिनिधि संकलन, भारतीय कविता, कालिदास की कृतियों का प्रामाणिक संस्करण, संस्कृत साहित्य के संकलन, बँगला, उड़िया, मलयालम, असमिया, तेलुगु आदि भाषाओं के साहित्येतिहास; असमिया, कश्मीरी, मलयालम, पंजाबी, तमिल, तेलुगु, उर्दू के काव्य संग्रह; असमिया, पंजाबी आदि लोक गीतों के संग्रह; भक्ति काव्य के संकलन इत्यादि हैं। अप्रैल, १९६४ तक अकादेमी के ३१५ प्रकाशन सब भाषाओं में हो चुके थे जिनमें से ४३ हिंदी में हैं।

हिंदी संबंधी कार्य के लिए परामर्शदात्री समिति के सदस्य हैं (१९६४ में): सर्वश्री मैथिलीशरण गुप्त (अब स्व.) सुमित्रानंदन पंत, डॉ. लक्ष्मीनारायण सुधांशु,' डॉ. रामकुमार वर्मा, रामधारी सिंह 'दिनकर', बालकृष्ण राव, डॉ. हरिवंश राय बच्चन, डॉ. नगेंद्र, डॉ. शिवमंगल सिंह 'सुमेरु' तथा डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी (संयोजक)।