सार्जेंट, जान सिंगर (१४४५-१४९१) ऐंग्लो अमरीकी चित्रकार। फ्लोरेंस में उत्पन्न हुआ, किंतु उसकी बाल्यावस्था के खेलने खाने के दिन अधिकतर कलानगरी रोम में बीते। उसकी माँ स्वयं जलरंगों की अच्छी कलाकार और अन्य शिक्षा के साथ कला की ओर भी प्रेरित किया। बचपन से ही चित्र कौशल की सूक्ष्मताओं, हर मुद्रा, भावभंगिमा, मोड़तोड़, अनुपात और संयोजन को ज्यों-का-त्यों उतारने का उसका गंभीर प्रयास दीख पड़ा, बल्कि १८७३ में उसकी इसी मौलिक प्रतिभा के कारण फ्लोरेंस की कला ऐकेडेमी द्वारा उसके एक चित्र पर पुरस्कार भी प्रदान किया गया। अठारह वर्ष की आयु में उसे पेरिस में दाखिला मिल गया। न सिर्फ अपने आकर्षक व्यक्तित्व, गंभीर एवं शांत स्वभाव, वरन् इस अपरिपक्वावस्था में भी ऐसी सच्ची लगन, कार्य तत्परता और अनवरत कला साधना में जुटे रहने की उसकी श्रमशील गुणग्राहक प्रवृत्तियों ने सबको मुग्ध कर लिया। वेलाजकेज और फ्रांज हाल्स के तमाम वैज्ञानिक मतों एवं टेकनीकों को उसने प्रयत्न से आत्मसात कर लिया। एक स्थल पर उसने स्वयं स्वीकार किया है-'मैं उतना प्रतिभावान् नहीं हूँ जितना परिश्रमी। परिश्रम से ही अपनी कला को साध पाया हूँ।'

उसने केसिंगटन में अपना स्टूडियो स्थापित किया, किंतु १८८५ में वह ३३, टाइट स्ट्रीट, चेल्सिया जा बसा। दोनों स्टूडियो को अंत में अपना एक निजी मकान खरीदकर उसने संयुक्त कर दिया जहाँ वह मृत्युपर्यंत कला साधना में जुटा रहा। मैडेम गात्रियों के पोट्रेट चित्र पर अचानक बड़ा हंगामा मचा, पर पोट्रेट पेंटर के रूप में इसके बाद उसकी अधिकाधिक माँग हुई। कितने ही राजकुमार, राजकुमारियों, कवि कलाकारों, अभिनेता-अभिनेत्रियों, नृत्यकार, संगीतज्ञों, राजनीतिज्ञों, कूटनीतिज्ञों, ड्यूक डचेस, काउंट काउंटेस, लार्ड लेडीज, अमीर उमरावों, संभ्रांत एवं अभिजात वर्ग के व्यक्तियों के पोट्रेट चित्र उसने बनाए जिससे उसकी ख्याति चरम सीमा पर पहुँच गई। जलरंगों में उसके ८० चित्र मिलते हैं जिनमें विस्मयकारी सधा सौंदर्य और हल्के ढंग की रंगयोजना है।

जीवन के अंतिम २० वर्षों तक वह ऐतिहासिक धर्म प्रसंगों के चित्रण में व्यस्त रहा। बोस्टन पब्लिक लाइब्रेरी के बड़े हाल में, जो 'सार्जेंट हाल' के नाम से मशहूर है, उसकी इस रंगमयी सज्जा की कौतूहल भरी झाँकी प्रस्तुत है।