सायनेमाइड (H2NCN) एक रंगविहीन, क्रिस्टलीय, प्रस्वेद्य ठोस है। इसका गलनांक ४३�-४४सें. है। इसकी विलेयता जल, ऐल्कोहॉल या ईथर में अधिक किंतु कार्बन डाइऑक्साइड, बेजीन या क्लोलोफार्म में नाम मात्र की है। सांद्र अम्ल के साथ यह लवण बनाता है जिनका जल-अपघटन होता है; हाइड्रोजन सल्फाइड के साथ थायोयूरिया तथा अमोनिया के साथ ग्वानिडीन (guanidine) बनाता है। अमोनिया, सायनोजन (cyanogen) क्लोराइड या ब्रोमाइड की अभिक्रिया से सायनेमाइड की प्राप्ति सरलता से होती है; Cl CN +2NH3 = H2NCN + NH4Cl. मरक्यूरिक ऑक्साइड (mercuric oxide) द्वारा थायोयूरिया का अगंधीकरण (desulphurisaion) करके भी इसको तैयार करते हैं। सायनेमाइड को व्यावसायिक मात्रा में तैयार करने के लिए कैल्सियम सायनेमाइड को जल के साथ भली भाँति हिलाकर तथा सल्फ्यूरिक अम्ल द्वारा उदासीन बनाकर छान लेते हैं; फिर इस छने हुए विलयन का शून्य में वाष्पीकरण करते हैं। क्षारीय यौगिकों की उपस्थिति में सायनेमाइड का जलीय विलयन बहुलकीकरण द्वारा एक द्वितय (dimer, dicyanamide) डाइसायनेमाइड, NC, C,NH (:NH), NH2) बनाता है। डाइसायनेमाइड या सायनेमाइड को निष्क्रिय वायुमंडल में १२०�-१२५सें. तक गरम करने से त्रितय, मेलामाइन (melamine), H2NC=N,C (NH2)=N,C (NH2)=N मिलता है; अमोनिया के साथ गरम करने से इसकी प्राप्ति अधिक होती है तथा यह अधिक शुद्ध भी होता है।

सायनेमाइड का हाइड्रोजन परमाणु धातु से विस्थापित होता है। जलीय अथवा ऐल्कोहॉलीय विलयन में क्षारीय धातु हाइड्रोक्साइड या कैल्सियम हाइड्रोक्साइड सायनेमाइड के हाइड्रोजन का एक परमाणु विस्थापित करता है: NaOH+H2NCN=NaNHCN + H2O । हाइड्रोजन का दूसरा परमाणु क्षारीय धातु या कैल्सियम से सीधे विस्थापित नहीं होता: सोडियम सायनाइड को कैस्नर (Kastner) विधि से तैयार करने में डाइसोडियम सायनेमाइड एक माध्यमिक यौगिक के रूप में मिलता है। कैल्सियम कार्बाइड (CaC2) को नाइट्रोजन के साथ १०००सें. के लगभग गरम करने से कैस्लियम सायनेमाइड मिलता है; दूसरी धातुओं के कार्बाइड भी ऊँचे ताप पर नाइट्रोजन के साथ गरम करने से तत्संबंधी सायनेमाइड बनाते हैं। कुछ धातुओं के सायनाइड गरम करने से तत्संबंधी सायनेमाइड तथा कार्बन में विघटित होते हैं। कैल्सियम, मैग्नीसियम, सीसा तथा लोहे के सायनाइड में इस प्रकार का विघटन केवल गरम करने से होता है। किंतु जिंक, कैडमियम, कोबाल्ट, निकल तथा लिथियम के सायनाइड में ताप के अतिरिक्त उत्प्रेरक की भी आवश्यकता पड़ती है।

कैल्सियम सायनेमाइड अधिक मात्रा में कैल्सियम कार्बाइड और नाइट्रोजन की अभिक्रिया से तैयार की जाती है। ऐडोल्फ फ्रैंक (Adolf Frank) तथा निकोडम कैरो (Nikoden Caro) ने सन् १८९५ के लगभग ज्ञात किया कि व्यावसायिक कैल्सियम कार्बाइड (शत प्रतिशत शुद्ध नहीं) ८०० सें. से अधिकताप पर नाइट्रोजन के साथ बड़ी सुगमता से अभिक्रिया करता है: CaC2 + N2 = CaN CN + C + 69,200 कैलोरी। कैल्सियम कार्बाइड को अभीष्ट ताप पर गरम करके उसके ऊपर नाइट्रोजन को प्रवाहित करते हैं; नाइट्रोजन कैल्सियम कार्बाइड के साथ अभिक्रिया करता है; इस अभिक्रिया में अधिक ऊष्मा उत्पन्न होती है जिससे कैल्सियम कार्बाइड का ताप और अधिक हो जाता है। अत: नाइट्रोजन तब तक क्रिया करता रहता है जब तक सबका सब कैल्सियम कार्बाइड समाप्त नहीं हो जाता। प्रयोगों द्वारा ज्ञात किया गया कि ताप बढ़ाने से इस क्रिया की गति बढ़ती है। किंतु १२००सें. से अधिक ताप पर कैल्सियम सायनेमाइड का विघटन होने लगता है। अत: इस क्रिया के लिए उपयुक्त ताप ११००�-११३० सें. है। कैल्सियम क्लोराइड या कैल्सियम क्लोराइड तथा कैल्सियम फ्लोराइड का मिश्रण इस क्रिया के लिए उत्प्रेरक हैं; नाइट्रोजन कम-से-कम ९९.७% शुद्ध होना चाहिए तथा कैल्सियम कार्बाइड का चूर्ण निष्क्रिय वायुमंडल में बनाना चाहिए।

कैल्सियम सायनेमाइड को व्यावसायिक मात्रा में तैयार करने की विधि को असंतत विधि (Discontinuous process) कहते हैं। आजकल इस विधि में ४ से १० टन की धारितावली भट्ठियाँ उपयोग में लाई जाती हैं। भट्ठियाँ ढलवे लोहे की होती हैं, इनका भीतरी भाग अगलनीय मिट्टी तथा तापसह ईटों से अग्नि के प्रभाव से मुक्त रहता है। एक वृहद् कागज बेलन भट्ठी की खोह में कैल्सियम कार्बाइड के लिए रखा रहता है। फ्लोरस्पार (Fluorspar) की अल्प मात्रा कैल्सियम कार्बाइड के साथ मिलाई रहती है। फ्लोरस्पार उत्प्रेरक तथा अभिक्रिया को नियंत्रित करने का कार्य करता है। भट्टी का मुँह एक ताप अवरोधक ढक्कन से ढक दिया जाता है। गरम करने का विद्युत का एक 'इलक्ट्रोड' ढक्कन के द्वारा मध्य छिद्र द्वारा कैल्सियम कार्बाइड तक रहता है तथा दूसरा भट्ठी के तल में। भट्ठी के तल और पार्श्व के छिद्रों द्वारा नाइट्रोजन प्रवाहित करते हैं। रासायनिक क्रिया का प्रारंभ भट्ठी के भीतरी भाग को १०००�-११००सें. तक गरम करके करते हैं, तत्पश्चात् जब तक सबका सब कैल्सियम कार्बाइड नाइट्रोजन से क्रिया नहीं कर लेता।, यह क्रिया स्वयं होती रहती है। इनमें लगभग २४ से ४० घंटे का समय लगता है। क्रिया समाप्त हो जाने पर कैल्सियम सायनेमाइड को भट्ठी से निकालकर निष्क्रिय वायुमंडल में इकट्ठा करते हैं।

कैल्सियम सायनेमाइड को व्यावसायिक मात्रा में तैयार करने की दूसरी विधि को संतत विधि (eontinuous Process) कहते हैं। इस विधि में कैल्सियम कार्बाइड को १० प्रतिशत कैल्सियम क्लोराइड के साथ मिलाकर लोहे के छिद्रयुक्त बड़े-बड़े बर्तनों में भरते हैं, फिर इस बर्तनों को एक नाइट्रोजन गैस से भरी हुई सुरंग में घुमाते हैं। सुरंग का एक भाग बाहर से गरम किया जाता है; यहीं पर क्रिया होती है। इससे अगले भाग में नियंत्रित वायुशीतक का प्रबंध रहता है, यह क्रिया के लिए उपयुक्त ताप बनाए रखता है। सुरंग का अंतिम भाग शीत कक्ष का कार्य करता है।

ऊपर की विधियों से प्राप्त किया हुआ कैल्सियम सायनेमाइड गहरा भूरे रंग का चूर्ण होता है। इसका यह रंग कार्बन के कारण होता है। चीनी मिट्टी की नली में - ७५०�-८५०सें. पर २ घंटे तक तप्त किए हुए कैल्सियम कार्बोनेट के ऊपर हाइड्रोसायनाइड वाष्प प्रवाहित करने से ९९% शुद्ध कैल्सियम सायनेमाइड मिलता है; तप्त कैल्सियम कार्बोनेट के ऊपर आयतन के अनुसार १० भाग अमोनिया और २ भाग कार्बन मोनोक्साइड प्रवाहित करने से ९२% शुद्ध कैल्सियम सायनेमाइड मिलता है। ११०�-११५सें. और ६ वायुमंडल दबाव पर कैल्सियम साइनेमाइड जलवाष्प द्वारा अमोनिया और कैल्सियम कार्बोनेट में विघटित होता है; CaNCN + 3H2O = CaCO3+2NH3 + 18000 कैलोरी।

साधारणत: कैल्सियम सायनेमाइड का उपयोग उत्तम उर्वरक के रूप में होता है। इनका नाइट्रोजन मिट्टी में अमोनिया बनाता है और इस रूप में यह निक्षालय (leaching) के लिए अवरोधक का कार्य करता है। इससे विलेय कैल्सियम मिलता है जो पौधों के लिए पुष्टिकारक होता है तथा मिट्टी की अम्लता को ठीक रखता है। मिट्टी की नमी से इसका जल-अपघटन होता है। इससे सायनेमाइड बनता है जो पौधों के लिए हानिकारक है किंतु यह शीघ्र ही अमोनिया में बदल जाता है। बीज या पौधों को इससे हानि न हो, अत: इसको बीज बोने के पहले मिट्टी में काफी नीचे रखते हैं जिसमें अंकुर के जड़ के स्पर्श में आने के पहले ही इसकी सब रासायनिक क्रियाएँ पूर्ण हो जाती हैं। घास पात आदि को नष्ट करने के लिए १०० पाउंड प्रति एकड़ के हिसाब से कैल्सियम साइनेमाइड का चूर्ण छिड़कते हैं। इसमें कम लागत लगती है।

उद्योग में भी कच्चे माल के रूप में इसका विशेष महत्व है। इससे कैल्सियम सायनाइड पर्याप्त मात्रा में तैयार की जाती है। डाइ-साइनोडायमाइड (dicyanodiamide), मेलामाइन (melamine) तथा ग्वानिडीन (guanidine) यौगिक भी इससे तैयार किए जाते हैं। मेलामाइन से मेलामाइन प्लास्टिक तैयार किया जाता है जो कई अर्थों में दूसरे प्लास्टिकों से अच्छा होता है। (बैजनाथ प्रसाद)